हाय रे मिथिलाक आतूर बुधियार सब, अपन टेटर सूझत नहि आ दोसर पर तंज कसनाय नहि छूटत!

सन्दर्भः रजनी पल्लवी द्वारा लगनी – मिथिलाक पारंपरिक गीत तैयारी करबाक एक जाँत पीसैत फोटो पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी

हम सब गर्व करैत छी मिथिलाक एहि युवती – स्वर आ सुर केर धनी – मिथिलाक पौराणिक आ पारंपरिक गीत सभक संरक्षण मे अपन महत्वपूर्ण योगदान देनिहाइर रजनी पल्लवी पर! एहि सुन्दर सन फोटो मे गामक आय-माय-दाय संग जाँत सँ चाउर-गहुुँम किछु पीसि रहली अछि। दृश्य थिकैक लगनी गीत लेल जेकरा ओ अपन आगामी एल्बम मे देखौती।
 
अफसोस करैत छी ढेर होशियार मैथिल स्वजन-बंधु सब पर जे रजनी द्वारा शेयर कएल एहि फोटोक वास्तविकता बिना बुझने ढेर रंगक टिप्पणी करय सँ अपना केँ नहि रोकि सकलाह। लानत अछि मिथिलाक एहि आतूर जनमानस पर जे अपन कमजोरी दूर करबाक बदला दोसर मे तुरन्त दुर्गुण केर नजारा लैत कठोर सँ कठोरतम टिप्पणी करय सँ पर्यन्त नहि चूकैत अछि। नीक सँ नीक लोक एहि आतूरताक शिकार बनि जाएछ, ईहो एकटा विडंबना बुझाएत अछि। कखनहु-कखनहु मोन पड़ि जाएत अछि मिथिलाक लोक पर गौतम अथवा कोनो ओहने सिद्ध ऋषिक शाप जाहि मे हिनके सब आतूर आ परेशान मैथिल जनमानस केँ देखि ऋषि-मुनि कहने छथि जे गृहेसुरा होयब हमरा लोकनि, रणेभीता यानि सरहन्ना पर युद्धक स्थिति सँ भगनिहार, परस्परविरोधिनम् यानि एक-दोसर केँ मतक फूसियौं खण्डन करय मे लागल रहब… ई पूरा श्लोक नहि याद अछि। जँ किनको बुझल हो त शेयर करब एक रत्ती।
 
रजनी पल्लवी एखन धरि दर्जनों प्राचीन-पारंपरिक गीत केँ नहि मात्र स्वर प्रदान केली, बल्कि ओकरा सभक प्रस्तुति केँ एतेक नीक सँ सजाकय प्रस्तुत केने छथि जे नव पीढी लेल पर्यन्त ओ वरदान जेकाँ साबित भऽ रहल अछि। जतय एक दिशि बहुते रास मिथिलाक जनमानस निज मातृभाषा सँ द्रोह करैत अपने सँ अपन धियापुता केँ मिथिलाक मिथिलत्व सँ दूर कएने जा रहल अछि, ओत्तहि रजनी सन-सन रोल-मोडेल युवती हमरा सभक संस्कृति आ पहिचानक वैशिष्ट्य केर रक्षा कय रहली अछि। नमन करैत छी हम हिनकर सृजनशीलता केँ, सदिखन प्रगतिक पथ पर अग्रसर रहैथ यैह शुभकामना अछि हमर हिनका लेल। आरो-आरो नवयुवती लोकनि हिनकर एहि गुण केँ अपना मे धारती त मिथिलाक शीघ्र कल्याण होयत। अदौकाल सँ चलि आबि रहल ई सभ्यताक रक्षा भऽ सकत। नहि त गामक बीग्घा सलटाकय शहरक अदन-पदन धूर कीनिकय “ऐ जी, कनी ककबा लाइये – बुचिया के केस थकैर देते हैं” एहि हिन्दी सँ अपना केँ बड़का शहरी मेलकानि बनेनिहारि घरवालीक पति-परिजन बनिकय मखरैत रहि जायब, २-३ पीढीक बाद नामोनिशान मेटा जायत। सावधान!
 
हरिः हरः!!