कृपानुभूति
– प्रवीण नारायण चौधरी
एहेन अनुभूति जाहि मे ईश्वर शक्तिक प्रत्यक्ष सहयोग भेटैत बुझाएत अछि आर ई हमरा बुझने हरेक आस्तिक-आस्थावान मनुष्य संग घटैत अछि।
पहिले बेर बाबाधाम जाएत रही। सुल्तानगंज मे गंगा जल भरैत समय धरि एतेक उत्साह आ जिज्ञासा सब मन मे छल जेकरा शब्द मे उल्लेख करब हमरा सँ संभव नहि अछि। बाबाधाम लोक जखन जाएत अछि त निश्चिते किछु न किछु कामना सेहो मन मे पोसने रहैत अछि, ओना एहनो भक्तक कमी नहि जे बस बाबा केर सेवा टा केँ धर्म मानि बिना कोनो मनोकामना धारने मात्र आ मात्र हुनकर कामना-लिंग केर दर्शन हेतु जाएत अछि। कहल जाएत छैक जे अहाँ कोनो कामना संग जाउ, अथवा बिना कामनाक जाउ, बाबा अन्तर्यामी छथि – ओ सब किछु जनैत छथि – अहाँ केँ मांगबाक आवश्यकता नहि पड़त, मांगि लेलहुँ त कोनो बाते नहि। भक्त पर निर्भर करैत छैक जे ओ केहेन मोन सँ बाबा केर धाम जाएत अछि। हम लेकिन सकाम भाव सँ पहिले बेर जाएत रही। मोन मे घरवालीक टोकलहबा किछु बात लहका मारि देने छलय आ दाढी-ताढी पोसैत बड़का जोगी जेहेन लागि रहल छलहुँ, घरवालीक टोक केँ समुचित जबाब देबाक जे योजना बनेलहुँ से पूरा भेले पर दाढी कटायब, मुदा कतेको महीना बीतल जा रहल छल आ कामना पूरा नहि भेल छल। त अन्त मे कियो मित्र कहलनि जे बाबाधाम जे जाएत अछि ओकर कामना निश्चित पूरा होएत छैक, त अपन कामना केँ गुप्त रखने हमहुँ कामर उठा लेने रही।
कामर उठेलाक बाद मनक शक्ति, शरीरक शक्ति, संकल्प शक्ति आ आत्मशक्ति – एहि सब आन्तरिक शक्तिक बीच एकटा होड़बाजी चलैत छैक। गंगाजल सँ भरल कामर उठा लेलहुँ त आब १०५ किलोमीटर केर कठिन खाली पैरे यात्रा करबाक अछि, कंकड़-पाथर गड़त, काँट गड़त, धिपल सड़क पर पैर पाकत, देह सँ धाह फेकत, पसीना-पसीना भेल रहब, मोन त एकदमे खिन्न रहत, मुदा महामंत्र ‘बम-बम’ केर जप करैत आर लोक सब केँ चलैत देखबैक त अहुँ केँ चलबाक प्रेरणा भेटत…. टूटल शरीर केँ आराम दैत बेर-बेर कामर उठाकय आगू बढहे पड़त… नहि त दूरी कोना घटत…. ताबत पैर मे सौ तरहक घटना सब अभरैत देखायत, देह मे सेहो ऐंठन आदि होमय लागत, चलितो रहब त आँखि निंद्रा मे डूबय लागत…. हारल-थाकल मोन डेराय लागत जे एखन एतबे दूर मे ई हाल छौक त बाद मे कि हेतौक, आदि। हमर पहिल दिनक यात्रा मात्र १७ किलोमीटर चलबाक छल, सरदार बम कहने रहथि। सुल्तानगंज सँ रणगाँव। रुकैत-रुकैत गेला सँ पहिल दिन कोनो खास असैर भेल या मोन थाकि गेल तेहेन कोनो बात नहि रहैक। आरामे सँ गेलहुँ, धरि पैर मे दू टा फोका भऽ गेल छल।
दोसर दिन भोरे ४ बजे उठिकय ठाढ भेलहुँ त बुझायल जेना ओ फोका सब टहैक रहल अछि। तड़बा जमीन पर रोपल नहि जा रहल अछि। अरे! ई त अजीब बात भऽ गेल! आब आजुक यात्रा कोना होयत? मन मे यैह प्रश्न…. मुदा सहयात्री सब केँ देखैत अपन यात्रा केँ कोहुना त पूरा करहे पड़त से संकल्प शक्तिक जबाब छल। लोको सब सँ सल्लाह कएलहुँ। सब कहलक जे ई सब त एहि बाट मे आम बात छैक। चलू-चलू…. पैर रोपैत आहिस्ते-आहिस्ते चलबाक छैक। जतय मोन हुअय कने बैसिकय आराम कय लियऽ, फेर चलू, चलिते रहू, जाबत मंजिल नहि भेट जाय, बाबाक दर्शन मात्र लक्ष्य छैक। गंगाजल केँ सुरक्षित लय चलबाक छैक। बाट मे ई नियम छैक। अनुशासित रहिकय बाबा पर ध्यान देबाक छैक। बम-बम बजबाक छैक। बढिते रहबाक छैक। सहिये कहलक लोक सब। ओ सब अनुभवी जे छल। तहिना करबो केलहुँ। माँ सेहो संग मे रहय। ओ पाछू स हिम्मत दैत रहय। हमरा संगे चलैत रहय। बढैत रहलहुँ। मुदा मोनक खिन्नता एतेक बेसी रहय जे मोस्किल स १ किलोमीटर नहि चली आ कि टांग-हाथ चियाइर कय बैसि जाएत रही। माँ सेहो कामर डोलबैत हमरा हिम्मत बढबैक लेल रुकि जाएत छल। माँ त वृद्ध छल, तथापि ओकरा मे एतेक हिम्मत…. हम युवा छी आ हम लचरल छी। एक सौ तरहक बात सब मोन मे अबैत रहल। अपन दुर्गुण सब केँ कारण मानि शरीरक ई दशा बनेबाक कारण बुझि मोन मे हारल-हारल बस आत्मशक्तिक बल पर फेर ठाढ होइ, आगू बढी। दोसर दिन करीब ३० किलोमीटर केर यात्रा पूरा कएल, जतय समूहक लोक सब ठहरल छलाह, ताहि जिलेबिया मोड़ धरि पहुँचल गेल कोनाहू रातिक ८ बजे धरि। मुदा पहुँचलाक बाद आरती मे ठाढ नहि रहल भेल। अर्राकय खैस पड़लहुँ। तड़बा रोपाइते नहि छल। फोकाक टहक हृदयविदारक दर्द आ पीड़ा मे रखने छल। देह सँ धाह दैत छल। बोखार मे रही।
सरदार बम बाबाक अनन्य भक्त छथि। हुनका समूहक सब बम (कमरिया) केर चिन्ता रहैत छन्हि। स्वयं आरती कय रहल छलाह। हमरा खसैत-पड़ैत देखि लेने छलाह। आरती केलाक बाद ओ अपन हाथ सँ आरतीवला घी माथ पर रगैड़ देलनि। कहलैन जे कोनो दिक्कत नहि छैक। किछुए मिनट मे चमत्कार भऽ जायत। अहाँ एकदम दुरुस्त भऽ जायब। खिन्न मोन लेल ई दुइ शब्द मानू कोनो ईश्वरीय शक्तिक हमरा भीतर प्रवेश करेबाक प्रक्रिया छल। सच मे! मात्र ३० मिनट मे हमरा खूब पसीना आयल आ मोन एकदम हल्लूक बुझाय लागल। एम्हर कमरथुआ सभक भोजन कनेक हँटिकय धर्मशाला सँ नीचाँ कतहु बनल छलैक, मुदा हमरा लेल पत्तल मे ऊपरे कियो लेने एलाह। भोजन भेलैक। आराम केलहुँ। भोरे उठलहुँ, अवस्था दयनीय छल। मुदा आत्मशक्ति आ संकल्पशक्ति, मानसिक ओ शारीरिक शक्ति पर हावी देखायल। मोने-मन हँसी सेहो छूटय। अपनहि भीतर एहि तरहक द्वंद्व देखि बेर-बेर हँसाएत छल। भगवानक लीला सब पढने त बहुत रही, मुदा सुखद आश्चर्य जे बाबाधामक यात्रा पर अनुभव करबाक लेल पहिले बेर भेटल छल। दिक्कते मे सब तरहें फेर तैयार भेलहुँ। भोरका आरती कएल गेल। मुदा ताबत बाहर जबरदस्त बरखा होमय लागल। कियो कमरिया बाहर निकलय लेल तैयार नहि। अक्टूबर महीना रहैक। पानि मे भीजलाक बाद जाड़क भय…. दोसर बात, अपन-अपन सामान सेहो कामर मे बान्हिकय चलबाक युग रहैक, तेकरो भीजबाक डर।
हमरा मन मे कौल्हका दूरी आ चलबा मे कष्टक बात फेर आबि गेल छल। हम सोचलहुँ जे आर लोक सब केँ कोनो दिक्कत त होएन नहि छैक, परेशानी मे त हम रहैत छी। कियैक न कोनाहू प्लास्टिक सँ झाँपि-तोपि कनी-कनी आगू बढैत चली। हम आज्ञा मांगल सरदार बम सँ। कहलियैन मनक बात। कहला जे बहुत नीक सोचलहुँ। अहाँ जखन जेबाक लेल तैयार छी त आरो लोक सब चलता। ओ सब केँ आदेश केलखिन, आर हमरा प्लास्टिक केर गाँती बनाकय पहिराकय विदाह कय देलनि। पुर्णियां धर्मशाला सँ असगरे निकललहुँ। निकललाक बाद कतेक दूर धरि चलैत चलि गेलहुँ, मुदा कतहु कियो दोसर कमरिया नजरि नहि आयल। कनेक घबराहट होमय लागल। कहीं रस्ता त नहि भटैक गेलहुँ। ओतय पहाड़ीक बीच सँ सड़क धेने जा रहल छलहुँ….. मन मे दुविधा आयब शुरुहे भेल छल आ कि एकटा आदिवासी सनक लोक टोकैत ध्यान भंग केलक। कहलक, “ओ बमजी! इधर कहाँ जा रहे हैं? बम लोगों का चलने का रास्ता उधर से है।” इशारा करैत देखेलक…। सही मे! लाल-लाल वस्त्र पहिरने ललका धारी सनक कमरिया सभक लाइन दूर दिशा सँ गुजरैत देखायल। ओ कहलक जे घुमिकय जाउ, अहाँ असली रस्ता पाछुए छोड़ि देलियैक।
घुमिकय जखन असली रस्ता तकैत एलहुँ त एकटा मोड़पर ग्रामीण बम सब बैसल छलाह। ओ देखलाह जे हम फेर जिलेबिया दिशि जा रहल छी त आवाज दैत रस्ता देखौलनि। तखन आस मे विश्वास जागल। कहला जे अहाँ १ घंटा पहिने निकलल रही, एम्हर कतय गेल रही आ फेर वापस कियैक जा रहल छी…. सब बात कहलियैन। प्रो. भोला झा – वयोवृद्ध भक्त – बाबाक परम समर्पित उपासक। ओ ई सुनैत देरी जे हमरा कियो बीच पहाड़ी मे भेटल, ओ दण्डवत् प्रणाम करैत ओहि व्यक्ति केँ स्वयं महादेव होयबाक बात कहय लगलाह। हमरो देह सिहरय लागल। तखन सोचलहुँ जे पीच रोड धेने जे हम गेल रही से अलग बाट छलैक, पैदल पगडंडीक बाट एहि मोड़ सँ फूटैत छैक। बीच मे कतहु कोनो बस्तियो नहि छैक। तखन जे भेटल छलाह ओ सचमुच स्वयं महादेव या हुनकर पठाओल कोनो विशेष दूत छलाह। हमहुँ मोने-मन प्रणाम कएलहुँ। आर कृपानुभूतिक यथार्थ ई कही जे आब हमर शरीरक दर्द, मनक खिन्नता आ शरीरक दुर्बलता सब छूमंतर भऽ गेल छल। हमर यात्रा बड़ आराम आ सहजता सँ आगू पूरा भेल। आनन्द-परमानन्दक बरसात होएत रहल। बाबा मे अटूट आस्था बनि गेल। मनोकामना आदिक तुच्छ बात बिसरा गेल सच मे। बाबा मात्र सब किछु बनि गेलाह। दर्शन लाभ स्वतः वरदायक सिद्ध भेल। बाबाक कृपा एहिना सब भक्त पर बनल रहैत अछि। हुनका बेर-बेर प्रणाम!!
हरिः हरः!!