स्वाध्यायः रामचरितमानस सँ सीख – १३
आइ रामचरितमानस केर तेरहम भाग मे नाम केर महत्व कतेक पैघ अछि ताहि पर महाकवि तुलसीदासजी द्वारा सुन्दर वर्णन भेटल अछि। एहि मे एकठाम महाकवि अपन बुझाइ मे नाम केँ ब्रह्म सँ सेहो उच्च स्थान देलनि अछि। बहुत सहज रहितो ई दर्शन आमजन केर समझ सँ ऊपर होयत ई भय होएत अछि हमरा, तथापि अपन मातृभाषा मैथिली मे राखैत ई भान भऽ रहल अछि जे अधिकांश सज्जन त अवश्ये टा बुझब। जे भक्त हृदयक पाठक होयब ओ नाम केर महत्व अपनो बुझैत हेबैक, ज्ञानीजनक त हम बाते कि करू। आउ देखी विस्तार सँः
रामचरितमानस सँ सीख – १३
१. ब्रह्माक बनायल प्रपञ्च सँ मुक्त भेल वैराग्यवान स्वतंत्र पुरुष नामक जप करैत अछि तथा रूप सँ रहित अनुपम, अनिवर्चनीय, अनामय ब्रह्मसुख केर अनुभव करैत अछि।
२. जे जिज्ञासू परमात्माक गूढ रहस्य केँ जानय चाहैत अछि ओहो जीभ सँ नाम केर जप कय केँ ओकरा जानि लैत अछि।
३. साधक लौ लगाकय (दीप जराकय लौ केर दर्शन-साधना) नाम जप करैत अछि आर अणिमादि आठो सिद्धि केँ पाबिकय सिद्ध भऽ जाएत अछि।
४. संकट सँ घबरायल आर्तभक्त नाम जप करैत अछि त ओकर भारी सँ भारी बिपत्ति-संकट मेटा जाएत छैक आर ओ सुखी भऽ जाएत अछि।
५. जगत मे चारि प्रकारक लोक भगवान केर भजन करैत अछि – क. अर्थार्थीः धनादिक चाहत सँ भजन कएनिहार, ख. आर्त – संकट केर निवृत्तिक वास्ते भजन कएनिहार, ग. जिज्ञासू – भगवान केँ जनबाक इच्छा सँ भजन कएनिहार, आ, घ. ज्ञानी – भगवान केँ तत्त्व सँ जानिकय स्वाभाविक प्रेम सँ भजन कएनिहार। ई सब रामभक्त थिक आर चारू पुण्यात्मा, पापरहित आर उदार होएछ।
६. चारू तरहक चतुर भक्त लोकनि केँ नामहि केर आधार छैक। ओना त चारू युग मे आर चारू वेद मे सेहो नाम केर प्रभाव छैक, मुदा कलियुग मे नाम केर सिवा दोसर कोनो उपाइयो नहि छैक।
७. जे सब तरहक भोग आ मोक्ष आदिक कामना सँ रहित अछि, ओकरो नामरूपी सुधाक निरन्तर आस्वादन चाहबे करी।
८. निर्गुण आ सगुण ब्रह्म केर दुइ स्वरूप होएछ, ई दुनू अकथनीय, अथाह, अनादि आर अनुपम छैक। तुलसीदासजी कहैत छथि, “हमरा बुझाइ मे नाम एहि दुनू सँ पैघ छैक जे अपन बलसँ दुनू केँ अपना वश मे कय केँ रखैत अछि।”
९. निर्गुण ओहि अप्रकट अग्निक समान होएछ जे काठक अंदर मे त होएत छैक मुदा देखाएत नहि छैक। सगुण ओही काठ मे प्रकट अग्निक समान होएछ जे प्रत्यक्षतः (सद्यः) देखाय दैत अछि।
१०. ब्रह्म व्यापक छैक, एक छैक, अविनाशी छैक; सत्ता, चैतन्य आर आनन्द केर धनराशि छैक। नामक निरूपण कयकेँ यानि नामक यथार्थ स्वरूप, महिमा, रहस्य आ प्रभाव केँ जानिकय नामक जतन कएला सँ वैह ब्रह्म एना प्रकट भऽ जाएछ जेना रत्न केँ जानि लेलाक बाद ओकर मूल्य।
११. निर्गुण सँ नामक प्रभाव बड पैघ होएत छैक, तैँ नाम सगुण राम सँ सेहो बड पैघ छैक।
हरिः हरः!!