मैथिलीक यात्री आ हिन्दीक नागार्जुन केर जयन्तीपर याद करैत युवा सर्जक ‘विकास वत्सनाभ’

जनकवि हूँ, मैं साफ कहूँगा, क्यों हकलाऊँ

११ जून १९११, जेठक दपदप इजोरिआ सँ नहाएल प्रकृतिक आँगन मे एकटा सोनाहुल इजोत होइत छैक। एहि उजास सँ साहित्याकाश पर काबीज अन्हरिया नहुए-नहु फाटए लगैत छैक। अभीप्सित समाजक उपेक्षाक नोर सँ आखर मे चिनगी लगैत छैक। अनाथ स्वर केँ स्वयं बैद्यनाथ भेटैत छैक जे अपन नामक अनुकूल साहित्यिक बसहा पर कष्ट आ संताप केँ ढोबैत बौआए लगैत छैक। ई बैद्यनाथ छथि मिथिलाक भूमि सतलखा सँ उदित समकालीन कविताक दिवाकर बैद्यनाथ मिश्र यात्री। आधुनिक कबीर आ जनकविताक शीर्षथ उन्नायक अपना सबहक चिरप्रिय ‘बाबा’ ।
 
विद्यापतिक मैथिली जे एकाधिक भाषा कें भठ्ठा धरा सृजनताक व्याकरण सिखौलक ताहि मैथिली केँ प्रखरतम समकालीन अभिव्यक्ति सँ पुनः सोंगर लगा ठाढ़ करबाक श्रेय बीशम शताब्दीक महत्वपूर्ण घटना सँ निर्मित व्यक्तित्व यात्री के छनि। मैथिली कविता मे आधुनिकताक पसार, प्रगतिवादक स्वर,यथार्थवादक विस्तार,जनतेचनाक हुंकार,लोकसरोकारी प्रवृतिक विचार एहि लेखनी सँ अपन पाँखि खोलैत अछि। हिनक कविताक कथानक मे मिथिलाक गाम ,लोकाव्यवहार,माटि-पानिक सुवास,लोकक संघर्ष आ समृद्ध अतीतक अप्रतिम अभिव्यक्ति भेटैत अछि।
 
हिनक कविता मे उपस्थित बिम्ब,लोकमुखी शब्द,चोटगर लोकोक्तिक प्रयोग,निर्भीक शैली आ लोकसरोकारी प्रवृति एकदिस मैथिली कविता मे मुक्त वृत्तिक प्रयोग केँ स्थापित करैत अछि तँ दोसर दिस एहि तथ्यक पुष्टि करैत अछि जे मैथिली कविता एहि नव भंगिमा केँ आत्मसात कए अपन अभिव्यक्ति केँ नव आयाम दैत अछि तथा एहि सँ भाषाक माधुर्य आ एकर आत्मा कतहुँ खंडित नहि होइत अछि। हुनक एहि प्रयोगवादी प्रवृति केँ नवका पीढ़ी सहृदय स्वीकार करैत अछि।
 
बाबाक रचना मे एकदिस ठेंठ शब्दक प्रयोग सम्मोहित करैत अछि त दोसर दिस हिनक जनवादी तेवर मैथिलीक जन-जन मे अपन लोकप्रियता सुनिश्चित करैत अछि। चाहे फेकनी केँ कपलेसर पठेबाक खगता हो वा क्विन विक्टोरियाक पालकिक विरोध हो, साहित्यिक ई अमोघ अस्त्र सब ठाम कलमक धार पिजबैत ठाढ़ भेटैत अछि। चाहे हिन्दीक खुंढ सँ शोणितायल मैथिलीक मरहम करबाक हो वा मिथिलाक पाग सम्पूर्ण विश्व केर माथ पर रखबाक हो, एहि सभ विमर्श मे खाधिक कुरता पहिरने ,एकटा झोड़ा टंगने ,नगरे-नगरे बौआइत, पाकल दाढ़ी बला ओहि फकीर केँ सदिखन मिथिलाक माटि-पानि मे लेढ़ायल देखैत छी।
 
कखनो मोन विरक्त होइत छनि तँ अहिबातलक पातील फोड़ि चलि जाइत छथि आनठाम मुदा अपन देहरिक सोह मे, यश-अपयश मे ,लाभ-हानि मे ,भय-शोक मे पुनः अपने भूमि मोन परैत छनि। कौखन नेना भेल होमक काठी गड़ने विलाप करैत छथि, कौखन बूढ़ ब’रक संताप गबैत छथि। ई कविता नहि परिवेश सँ कवि केर सरोकार लिखैत छथि,खतबे-बेलदार लिखैत छथि ,आन्हर सरकार लिखैत छथि ,कौशिकीक हाहाकार लिखैत छथि,झाँपल पारो केँ उघार लिखैत छथि ,नवतुरिया केँ खेबनहार लिखैत छथि,पत्रहीन नग्न गाछक अवतार लिखैत छथि,बूढ़ ब’रक श्रृंगार लिखैत छथि ,तरुणिक उजरल संसार लिखैत छथि।
 
एतेक लिखितो मैथिली धरि कमे लिखी पबैत छथि। कहैत छथि-पेट तँ हिंदिए सँ भरैत अछि तें अपन कोढ़-करेज खखोड़ि जे किछु होइत अछि से ओकरे पीड़ी पर चढ़ा दैत छी। हुनक कहब छनि जे प्रतेक भाषाक अपन भूगोल होइत छैक आ से बूझब अत्यावश्यक होइत छैक। हुनक आह्वन मे नवतुरिया सदिखन आगाँ एबाक आग्रही रहैत छल आ तें ओ कवि के ललकारा देबाक आग्रह कएलनि। हुनक कविता मे जे विशेष आकर्षण रहैत अछि तकर मूल कारण जे ओ अपन भाषाक भूगोल बूझि आर्थिक,सामाजिक ,सांस्कृतिक परिवेश मे अपन अजस्र शब्दकोशक समधानल प्रयोग करैत छथि।
 
नागार्जुन केँ नाम सँ हिंदी मे विख्यात कवि हिंदी साहित्य मे सेहो समानरूपे पूजनीय छथि। हिनक एहि लोकप्रियतका जड़ि मे कतहुँ ने कतहुँ मातृभाषा मैथिली अछि जकर संपर्क सँ उपजल विशिष्टता हिनका हिनक समकालीन कवि सँ सर्वथा पृथक करैत अछि। लोकभाषाक एहि संपर्कक कारण सँ अत्याधुनिक होइतो हिनक कविता आधुनिकताक अधम तत्व सभ सँ प्रभावित नहि होइत अछि।
 
यात्रीजी मैथिली कविता केँ नवीन शिल्प आ आधुनिक तकनीकी सँ लैस करैत एकरा सभ परिस्थिति मे संघर्ष करबाक उत्स देलैन। एहि उत्स सँ सिंचित मैथिली कविता एखन खूब लहलहाए रहल अछि।साहित्याकाशक एहि जाज्वलयमान नक्षत्र केँ मैथिली कविताक दिस सँ कोटिशः प्रणाम।
– विकास वत्सनाभ, ११.०६.२०१७ – हैदराबाद सँ!