स्वाध्यायः रामचरितमानस सँ सीख – ८
रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीताराम!
ईश्वर अल्लाह तेरे नाम, सबको सम्मति दे भगवान्!!
महात्मा गाँधीक एहि महावाक्य संग पुनः आइ रामचरितमानस सँ शिक्षाक आठम् भाग अपने सभक सोझाँ राखि रहल छी। विश्वास अछि जे क्रम मे एकर सब भाग अपने लोकनि ग्रहण कय रहल होयब।
१. भगवान् केर महिमाक पूरा वर्णत त कियो नहि कय सकैत अछि मुदा जेकरा सँ जतेक बनि पड़य ओतेक भगवानक गुणगान करबाक चाही।
२. कनिको भगवानक भजन मनुष्य केँ सहजता सँ ई भवसागर टपा दैत छैक।
३. परमेश्वर एक छथि, हुनकर कोनो इच्छा नहि छन्हि, हुनकर कोनो रूप आ नाम सेहो नहि छन्हि, ओ अजन्मा, सच्चिदानंद आ परमधाम छथि। आर, ओ सबमे व्यापक एवं विश्वरूप छथि, वैह भगवान् दिव्य शरीर धारण कय केँ नाना प्रकारक लीला करैत छथि।
४. प्रभुजीक लीला सिर्फ भक्तक लेल टा होएत छैक, ओ परम कृपालु आ शरणागत केर बड पैघ प्रेमी छथि। ओ जँ केकरो पर एक बेर कृपा कय देला तिनकापर फेर कहियो क्रोध नहि केलनि।
५. परमेश्वर केर बल केँ सब कियो गेलक अछि कियैक तँ ई महान फल देबयवला होएछ, यैह मार्ग हमरा लोकनि लेल सेहो सुगम अछि।
६. बड पैघ नदीपर बनल पुलक सहारे छोट सनक चुट्टी सेहो पार उतरैत अछि, तैँ हम सब सेहो मुनि-संत लोकनि द्वारा भवसागररूपी नदी पर बनायल गेल पुलक सहारे सहजता सँ पार उतैर सकैत छी।
हरिः हरः!!