गीत मे मिथिला राज्य बनि गेल, यथार्थ मे एखन देरी

गीत (मिथिला राज्य पर)
 
मिथिला राज्यकेर हम तऽ
जल्दी निर्माण करबौ माए
करए पड़ए हँसि-हँसिकऽ
जानो कुर्बान करबौ माए॥
मिथिला राज्यकेर……..
 
लोरिक-मण्डन-विद्यापति,
जनक-सलहेश-दिनाभद्री॥
जन्मल महावीर विभूती,
एहि तिरहुतियाक नगरी॥
एक जुट्ट कोशी-कमला,
संगहि बलान करबौ माए॥
ई पार ओ पारक नाता,
अंगना-दलान करबौ माए॥
मिथिला राज्यकेर……
 
गुलामी केलियौ क्षणे-क्षण,
आत्मा धिकारौ मने-मन॥
कहिया धरि बेटा सज्जन?
सहै जेतौ दाबन-चापन॥
मारब चाहे मरब काज,
एकटा महान करबौ माए॥
गगनो सँ उच्चगर आब,
ई स्वभिमान करबौ माए॥
मिथिला राज्यकेर……..
 
चोरके कान पकड़ि बहरेबौ,
चट्टे अशान्ति-आगि मिझेबौ॥
केहनो रौद आ बसात हेतौ,
झण्डा मिथिलाकऽ लहरेबौ॥
अपन अधिकार अपने,
आब उत्थान करबौ माए॥
स्थापित सगर संसारमे,
नाम-पहिचान करबौ माए॥
मिथिला राज्यकेर……..
– विद्यानन्द वेदर्दी
राजविराज, सप्तरी
हाल: ललितपुर, काठमाण्डौँ