रामचरितमानस सँ सीख – ४
१. मन आ बुद्धि कंगाल मुदा मनोरथ सदैव राजा समान होएत छैक।
२. बुद्धि त अत्यन्त नीचाँ मुदा चाहत बड़ उच्च होएत छैक।
३. चाह होएछ जे अमृत पाबि ली मुदा जुड़ैत छाँछो नहि छैक।
४. रसीला हो या एकदम फीका – अपन कविता केकरा नहि नीक लगैछ!
५. एहि जग मे पोखैर आर नदी जेकाँ मनुक्खक संख्या बेसी छैक जे जल पाबिकय अपनहि बाढि सँ बढैत अछि अर्थात् अपन उन्नति देखि प्रसन्न होएत अछि। मुदा समुद्र जेकाँ कियो विरले सज्जन भेटैत अछि जे चन्द्रमा केँ पूर्ण देखि (दोसराक उत्कर्ष देखि) स्वयं उमैड़ पड़ैत अछि।
६. भाग्य छोट मुदा इच्छा बड पैघ होएत छैक।
(मैथिली जिन्दाबाद पर पढैत रहू पूरा – पूरा…..)
हरिः हरः!!