रामचरितमानस सँ सीख – २

स्वाध्याय

काल्हि प्रथम दिवस पहिल भाग मे गुरु, संत, सत्संग केर अतिरिक्त दुष्ट केर विषय मे पढने रही। दुष्टक परिभाषा आन कोनो ठाम उद्धृत कएल गेल सँ बहुत बसी सटीक आ सीखय योग्य कहल गेल अछि जे अकारणे अपन हितो करनिहारक अहित सोचय ओ दुष्ट थिक। दुष्टक चर्जे मे दोसर केँ कष्ट देनाय आ हानि पहुँचेना लिखल छैक। आब आगू देखीः

१. दुष्टक कार्य घी मे माछी जेकाँ होएत छैक, जेना माछी घी मे खैसि घी सेहो खराब कय दैत छैक आर स्वयं त मरिते अछि।

२. तहिना दुष्टक तूलना ओला सँ होएछ, ओ वृष्टिक संग आबि खेती केँ नाश कय अपनो गैल जाएत अछि, तहिना दुष्ट दोसराक काज बिगड़बाक लेल अपन शरीर तक छोड़ि दैत छैक।

३. राजा पृथु भगवान् केर यश सुनबाक लेल दस हजार कान मांगलनि। दुष्ट दस हजार कान सँ दोसराक पाप केँ सुनैत अछि।

४. कौआ केँ कतबो प्रेम सँ पोसब, मुदा ओ मांस कहियो नहि त्यागि सकैत अछि।

५. संत आ असंत दुनू दुःख देनिहार होएत छथि, संत त बिछुड़ैत समय प्राण हैर लैत छथि, मुदा असंत त भेटैत देरी दारुण दुःख देब शुरु कय दैछ।

६. संत-असंत दुनू एक संगे पैदा लैत छथि मुदा कमल आ जोंक जेकाँ हुनका सभक गुण अलग-अलग होएत छैक। कमल दर्शन आ स्पर्श सँ सुख दैत अछि, मुदा जोंक शरीरक स्पर्श करैत देरी खून चूसब शुरू कय दैछ।

७. भला लोक भलाई केँ ग्रहण करैत अछि आ नीच नीचता टा केँ ग्रहण करैत अछि। अमृतक सराहना अमर करबा लेल होएत छैक आ विष केँ मारय मे।

हरिः हरः!!