मिथिला केँ छूछ आलोचक सँ बचाउ, धरोहर केँ जोगाउ, मूल्यवान परंपरा केँ बढाउ

बच्चा झा निर्मित संस्कृत पाठशाला नवानी केर हालत एखनहु ओतबे खस्ता - मैथिल छूछे गप्पे बुधियार

सम्पादकीय, मई १८, २०१७.

मिथिला मे शिक्षा परम्पराः मुफ्त शिक्षा दान सँ अर्थयुगक शिक्षा अभियान
 
एक युगक बाद मानू जेना फेर सँ मिथिला मे कोनो वीर शिक्षा दान हेतु मिथिला मे सन्दिप युनिवर्सिटीक स्थापना केलनि तेना बुझा रहल अछि। वर्तमान अर्थयुग मे तकनीकी शिक्षाक महत्व कतेक बढि गेल छैक से सर्वविदिते अछि। सरकारी शिक्षण संस्थान मे सीट कम, निजी संस्थान मे फीस अधिक – एहि पेशोपेश मे रहिकय जनमानस कोनाहू अपन धिया-पुता केँ शिक्षा दियाबय लेल होड़ मे घुड़दौड़ करैत रहैत छथि। आब मिथिलाक केन्द्र मधुबनी जिलाक सिजौल गाम मे अन्तर्राष्ट्रीय स्तरक एकटा निजी विश्वविद्यालयक स्थापना आर ताहि मे इन्जीनियरिंग, पोलिटेकनिक, आइटीआइ, बीएड, मास कम्युनिकेशन, फैशन टेक्नोलोजी आ कोस्मेटोलोजी, फार्मेसी, नर्सिंग, ला, आदि विभिन्न संकाय मे शिक्षादानक व्यवस्था कयल जायत। हिसाब सऽ ई शिक्षादान कहल गेल अछि, हलांकि आब ‘दान’ शब्दक व्यापक अर्थ मे परिवर्तन आबि गेल छैक। मुफ्त मे उच्चतर शिक्षा उपलब्ध करायब आजुक युग मे असंभव छैक, अतः नगण्य मूल्य मे शिक्षा भेटबाक प्रसंग केँ एतय शिक्षादान सँ तूलना कएल गेल अछि।
 
मिथिलाक परम्परा मे मुफ्त शिक्षादान केर बहुचर्चित व्यक्तित्व भेला अछि बच्चा झा। मूल नाम धर्मदत्त झाः मिथिलाक सुपरिचित विद्वान्, जन्मः १८६० ई. – मृत्युः १९१८ ई. ग्रामः लवाणी (नवानी), झंझारपुर अनुमण्डल, मधुबनी, मिथिला – ई थिक ओहि महान प्रणम्य व्यक्तित्वक परिचय। आइ हमरा लोकनि हिनकहि जीवन व योगदान पर चर्चा करैत सम-सामयिक स्थिति पर समीक्षात्मक विश्लेषण करब।
 
१३म शताब्दी मे नव्य-न्याय केर उद्भेदन कएनिहार गंगेश उपाध्याय, ताहि सँ पूर्व न्याय शास्त्र पर गहिंर शोध सँ टीका लिखनिहार पंडित वाचस्पति मिश्र एवं उदयनाचार्य आर हिनका लोकनिक लिखल एक सँ बढिकय एक शास्त्रक गहिंर अध्येता आ व्याख्याता भेलाह नवानी गामक अति सुशिक्षित व सुसंस्कृत परिवारक विद्वान् सपूत पं. धर्मदत्त झा उर्फ बच्चा झा। हिनक विद्वता आ प्रस्तुतिक शैली सँ प्रभावित होएत तत्कालीन राजकीयकृत् धर्मसभा-विद्वत्-सभा सँ ‘सर्वतंत्र स्वतंत्र’ केर उपाधि देल गेल छल। बाल्यकालहि सँ हिनक प्रतिभा देखय-सुनय लोक सभक भीड़ लागि जाएत छल, विद्वान् पिता हिनकर विद्वताक चर्चा आगन्तुक लोक सब सँ करैथ आर फेर हुनका सस्नेह ‘बच्चा’ कहिकय संबोधन करैत बजबैथ, पुनः बच्चा द्वारा सरस्वतीक चमत्कार सुनि लोक सब मंत्र-मुग्ध होएत छल। सभक मुंह सँ ‘बच्चा-बच्चा’ केर चर्चा होएत बादहु धरि हिनकर लोकप्रिय नाम उपनाम बच्चा झा सँ बेसी जानल गेल।
 
शुरु मे अपन पिता सँ, पुनः ठाढी (मधुबनी) स्थित गुरु आश्रम मे आर बाद मे वाराणसी सँ आधारभूत एवम् उच्च शिक्षा ग्रहण कएनिहार बच्चा झा अध्ययन पूरा केला उत्तर अपनहि गाम मे अपन निजी पाठशाला मे विद्या-दान आरम्भ कएलनि। ताहि युग मे वर्तमान युग जेकाँ विद्या दान कएनिहार छात्र सँ कोनो शुल्क नहि लैत छल। गाम-गाम केर बच्चा केँ पढौनी करायब बड पैघ धर्म मानल जाय। निश्चिते गुरुजीक आजीविका लेल समस्त गाम आ इलाकाक लोक अपने चिन्तन करैत छल। दानक यथार्थ रूप मे व्यवहार करबाक मिथिला समाज सँ बेसी उत्तम व्यवहार आन ठाम कतहु कम्मे भेटैत अछि। आब भले लोक निजी स्वार्थक आगाँ सामूहिक आवश्यकता केँ नजरंदाज करय, परञ्च आइ सँ गोटेक दसक पूर्व धरि कतेको गाम-ठाम मे वेदविहित विधान मात्र व्यवहार मे रहबाक बात देखल जा सकैत अछि। पाठशाला चलौनिहार गुरु केँ बहुत समस्या होइन त भिक्षा कय लैत छलाह, मुदा छात्र सँ एक पाइ केर मांग नहि होएक। गुरु अपन लूरि-बुद्धि सँ विभिन्न दक्षिणा आर्जन आदिक पैसा सँ अपना भीतरक गुण आ ज्ञान ‘विद्या’ समान प्रधान धन केर रूप मे दान करैथ, यैह हुनकर जीवनक सर्वोच्च कर्म मानल जाएक। आइ-काल्हि त अहाँ कनिटा काज करबाक लेल संकल्पित होउ आ देख लियौक मुंहदूस्सा समाजक गोटेक जोकर एकरा ‘चन्दा के धन्धा’ कहि काज करय सँ पूर्व विध्वंसक असुरवत् काज करय लागत। बच्चा झा द्वारा गुरुकुल पद्धति केर विद्यालय सँ वर्तमान भारत आ नेपालक मिथिलाक्षेत्र सहित आन-आन ठामक विद्यार्थी सबकेँ बहुत लाभ भेटय लागल। ताहि दिन सेहो लोकसमाज मे अपन बच्चा केँ दूर पठेबा सँ लोक घबराइत छल, अतः मिथिलाक मूलकेन्द्र मे जे कोनो विद्यालय संचालित होएत ओहि ठाम छात्र केँ पठा शिक्षार्जन कर्म कएल जाएत छलैक। एहि सँ बहुतो लोक केँ सहजता भेलैक। साक्षरता प्रसार मे बच्चा झा केर विद्यालय कनिकबे दिन मे खूब प्रसिद्धि पाबि गेल।
 
बच्चा झा केर अगाध विद्वताक चर्चा दूर-दूर देश-देशान्तर मे प्रसारित भऽ गेल छलन्हि, परिणामस्वरूप द्वारिकापीठक तत्कालीन शंकराचार्य हिनका सम्मानपूर्वक आमंत्रित कय नव्य-न्याय केर प्रमेय बहुल दुरुह ग्रन्थ सभक अध्ययन हिनकहि सहायता सँ पूरा केने छलाह। नास्तिक तथा आस्तिक दर्शनक मर्मज्ञ विद्वान् बच्चा झा बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न व्यक्तित्च छलाह। स्वाध्याय आ ब्राह्मण संस्कार त हुनकर रग-रग मे रहबे करनि। विद्वत् परम्पराक सब संकाय मे अग्रसर आर कुशाग्र बुद्धि सँ हाजिर-जबाबी हुनकर विशेषता छलन्हि, जे बच्चे सँ आजीवन कायम रहलनि। हिनका द्वारा अनेकानेक कृति रचित अछि जे न्याय, दर्शन आ शिक्षाक क्षेत्र मे उल्लेखनीय योगदान दैत आबि रहल अछि। हिनक चर्चित रचना सब निम्न अछिः
 
व्याप्तिपंचक टीका, अवच्छदकत्व निरुक्ति विवेचन, सव्यभिचार टिप्पण, सत्प्रतिपक्ष टिप्पण, व्याप्तनुगन विवेचन, सिद्धान्त लक्षणविवेक, व्युत्पत्तिवाद गूढार्थ तत्त्वालोक, शक्तिवाद टिप्पण, खण्डन खण्ड खाद्य टिप्पण, अद्वैत सिद्धि चन्द्रिका टिप्पण, कुसुकाञ्जलि प्रकाश टिप्पण, सुलोचन-माधव चम्पुकाव्य, श्रीमद्भगवद्गीता व्याख्यानभूत मधुसूदनी टीकापर गूढार्थ तत्त्वलोक, न्यायवार्त्तिक तात्पर्य व्याख्यान, आदि।
 

भारतीय न्याय व्यवस्था आ विश्व स्तर पर सेहो जे न्याय व्यवस्था अछि ताहि मे मिथिलाक योगदानक चर्चा परापूर्वकाल सँ होएत छैक। हालहि एक सभा-सन्दर्भक प्रसंगवश मिथिला केर चर्चा करैत बहुचर्चित सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश श्री मार्कण्डेय काटजू एहि बातक चर्चा करैत वाचस्पति मिश्र, उदयनाचार्य, गंगेश उपाध्याय, बच्चा झा, गंगाधर झा, अमरनाथ झा समान महत्वपूर्ण विद्वानक चर्चा कएने छलाह। चर्चित मिथिला विद्वान् लेल निजहित कहियो विषय नहि रहल। देशहित, विश्वहित आ मानवहित – सदिखन जीवमण्डल मे निहित समस्त अधिभूत पर समान रूप सँ चिन्तन करब एतुका विशेषता रहल अछि। अपने गरीबी मे रहितो समस्त मानव कल्याणार्थ जे काज होयत ताहि लेल आगू रहबाक बात सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय अन्तर्गत श्यामा महाविद्यालयक पूर्व प्राचार्य पंडित जीवनन्दन झा कहैत छथि। वाचस्पति मिश्र केँ भोजन मे एक बेर तेत्तर केर चटनी भेटला सँ ओहि स्वाद प्रति विशेष टिप्पणी करैत ओहि भोजन केँ अपूर्व कहने छलाह। एहेन कतेको रास विद्वानक चर्चा करैत छथि जे अपन स्वार्थ केँ कहियो नहि देखलनि। सच्चे कहल गेल छैक जे कीर्ति वैह अमर होयत जाहि मे त्यागक भावना निहित अछि। वर्तमान अर्थयुग मे बिना अर्थक प्रयोग कोनो कार्य आरम्भो नहि भऽ सकैत छैक, ताहि हेतु अर्थक प्रयोग लेल जे अनुशासन छैक तेकर सहारा लैतो जँ मिथिलाक विद्वत् परम्परा बचायल जा रहल अछि त निश्चित ओ नमन योग्य अछि। बस मुनाफाखोरी आ छात्रक भविष्य संग धोखा कदापि नहि हो, ई ध्यान राखय पड़त।

सब सँ ऊपर राखल गेल फोटो ओहि महान पाठशाला केर वर्तमान थिक जेकर नींब बच्चा झा रखने छलाह। विगत किछेक दसक पूर्व धरि एतय महान् विद्वान् ओ शिक्षा दानी बच्चा झा केर बनाओल गेल रीत मुताबिक शिक्षण व्यवस्था कायम रहल छल। परञ्च घोर कलियुगक अर्थ व्यवस्था मे एहेन श्रेष्ठ मन्दिरक कि दशा अछि से लिखबाक जरुरत नहि छैक। जतय तीन दसक पूर्व तैक ब्रह्म मुहुर्त मे सैकड़ों छात्रक मुख सँ वैदिक ऋचा केर गान होएत छलय, विभिन्न पाली मे व्याकरण, साहित्य, न्याय दर्शन संबंधी शास्त्रार्थ विवेचनादि सँ प्रांगण गुंजायमान रहैत छलय – तेकर खंडहर – अवशेष बँचल देखा रहल अछि। शारदा भवन विद्यालय, जतय व्याकरण, साहित्य दर्शन आदि केर उच्च शिक्षा प्राप्त कयकेँ कतेको रास विद्वान देश-विदेश मे प्रसिद्ध भऽ गेलाह, आप नाम मात्रक संस्कृत उच्च विद्यालय बनिकय रहि गेल अछि। भवन जर्जर भऽ गेल छैक। किछु वर्ष पूर्वहि सम्पन्न बिहार सूबाक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एकर जीर्णोद्धारक बात अपन सेवा यात्रा मे कहलैन, बस कहि देलैन, भऽ जेतैक – भेबो कएल हेतैक – गोटेक ठीकेदार आ नेताक वारा-न्यारा भेल हेतैक एहि लूटतंत्र मे। (तस्वीर आ समाचार अंशः साभार – जागरण, १९ जनवरी, २०१२) अपना केँ सब सँ बेसी काबिल बुझनिहार ओहि आलोचक-विश्लेषक मिथिलाक उच्च सँ उच्च वर्गक मनुक्ख केँ ई सब दयनीयता अपन निजी दरिद्रता जेकाँ नहि लगैत छन्हि, बस कियो चन्दा उगाही केलक आ कि प्रायोजन खर्च कतहु सँ उठाकय कोनो सार्वजनिक हित केर काज केलक, मैथिल अस्मिता केँ बचेलक, मिथिला लेल संघर्ष केलक – ताहि मे ओकर नाम कियैक भऽ गेलैक अथवा कियैक भऽ रहलैक अछि से हुनका दग्ध कय देतैन आ बिना चवन्नीक योगदान देने ओ बैसिकय पूक्की पाड़ैत भेटा जेता जे देखू-देखू, चन्दा उठाकय फल्लाँ-फल्लाँ काज भऽ रहल य वा करत। विडंबना! चिन्तन सब कियो करी। हालत मे सुधार सब मिलियेकय आनि सकब। मिथिला सनातन पहिचान केँ बचौने छैक सभक सामूहिक सहयोग सँ, एकर स्वयंसेवा आ स्वसंरक्षण बचौने रहलैक अछि। सावधान होइ। छूछ आलोचना सँ बची।

हरिः हरः!!