नकारात्मक शक्ति केँ दंडित करू, ‘इग्नोर करू’ कहबाक दिन लैद गेल

सम्पादकीय, मई १७, २०१७. 

…से हमरा कोनो कि कुत्ता कटने अछि?….

 
एकटा अति-प्रचलित गाथा सुनबाक लेल भेटैत अछि – अपना सभक मिथिला समाज मे गोटेक लोक अत्यन्त विचित्र स्वभावक मालिक होएत अछि। अहाँ उपकारो करैत रहबैक त १०० तरहक प्रश्न अहींपर ठाढ करत। ओ स्वयं सेहो ओतेक उपकार अहाँ सँ बेसी नीक ढंग सँ कय समाज केँ आगू बढायत आर तखन यदि अहाँक आलोचना करत त ओहि सँ अहाँ व अन्य लेल एकटा नीक शिक्षाप्रद आ अनुकरणीय उदाहरण ठाढ होयत। मुदा एहेन देखबा मे बहुत कम अबैत छैक। अपने किछु केलक नहि केलक, दोसरक केलहा पर १७ तरहक मीमांसा करैत अपन विद्वता सिद्ध करबाक कुत्सित कार्य कएनिहार हरेक डेग पर भेट जाएत छैक।
 
एहेन बहुत रास उदाहरण मोन पड़ैत अछि। एकटा कथा मे सुनलहुँ जे एक बेर गौतम ऋषि केर कृपा सँ अकलबेरा मे हुनकर आश्रमक मातहत हजारों गरीब आ बेसहारा विप्र समाज केँ भोजन भेटैत छलन्हि। ऋषिक एहि उपकारक जतय सब कियो कर जोड़ि परमात्मा केँ प्रणाम करैत कृतज्ञता प्रकट कएल जाएक, नित्य ऋषिकृपा लेल विशेष सभाक आयोजना कएल जाएक आर सब विप्र सामूहिक यज्ञ निष्पादित करैत हुनक दीर्घायू होयबाक विनीतभाव प्रकट करैथ – एहि सँ डाह कएनिहार गोटेक कुटिल लोक बहुत विचलित भेलाह आर आश्रयदाता गौतम ऋषि कोना एतेक पार लगा रहला अछि तेकरे रहस्य जनबाक लेल तरह-तरह के आरोप-प्रत्यारोप एवम् घंथन-मंथन मे लागि गेलाह।
 
विदिते अछि जे ऋषि-मुनि समाज सिद्ध होएत छलाह। अपन-अपन सिद्धिक मुताबिक भगवान् केर विशेष कृपा सँ किनको लग कोपिला त किनको लग कामधेनु त किनको लग एहेन भोजन पात्र होएत छलन्हि जाहि मे भोजन कतबो कमे कियैक नहि पाकय, भोजन धरि सब केँ पूरा भेट जाएक। एहि सन्दर्भ पौराणिक कथा-गाथाक कमी नहि अछि। विश्वामित्र-वसिष्ठ केर चर्चा सेहो एहने सन्दर्भ दैत अछि। मिथिलाक गौतम ऋषि जिनका न्यायशास्त्रक प्रथम उद्भेदक सेहो मानल जाएत छन्हि, हुनकर सिद्धि सँ जे समाजक कल्याण भऽ रहल छल ताहि सँ सब कियो उपकृत रहय। मुदा गोटेक ईर्ष्यालू मनुष्य अपन आन्तरिक ईर्ष्या सँ जरैत आखिरकार एक दिन ऋषिक समक्ष मरल गाय केँ राखि जबरदस्ती ऋषि केँ गोबध करबाक आरोप लगा देलक, उपरोक्त कथा मे चर्चा आयल छल।
 
श्रुति-आधारित कथाक सत्यता जाँच करय सँ बेसी महत्वपूर्ण छैक जे ओहि कथा सँ नैतिक पाठ ग्रहण करी आर अपन जीवन मे व्यवहार कएल जा रहल दैनिकचर्या मे सुधार आनी। कहल गेल छल ओहि कथाक अन्त मे जे ऋषि अन्ततोगत्वा दुःखी मन सँ कृतघ्न प्रकृतिक मिथिलावासी केँ श्रापित कएने छलाह। ओहि काल मे ओ श्लोक केर प्रयोग कएल गेल छल। श्लोक मे हमरा लोकनिक कमजोरी केँ दरसाओल गेल अछि। रणेभीता – रण मे जाय सँ डेराएत छी; गृहेसुरा – अपन घर मे सूरमा बनबाक नाटक करैत छी, परस्परविरोधिनम् – अपनहि ज्ञान केर सीमा केँ ब्रह्माण्डक सब भेद बुझनिहार मानि दोसरक ज्ञान केँ तुच्छ मानैत तुरन्त खन्डन-मन्डन मे आगू होयब, दोसरक मत केँ काटब – ई सब दुर्गुण कृतघ्न मैथिल मे विद्यमान अछि। सहज भाव सँ उपकार मानि लेब आ अपन कर्तब्यपरायणता सँ संसारक सेवा मे लागब – ई एहि तरहक लोक सँ कहियो संभव नहि भऽ पबैछ।
 
पैछला १९४० ई. सँ २०१७ ई. धरिक लंबा समयावधि मे हमरा लोकनि अपन संवैधानिक सम्मान लेल भारत मे आ २०३६ विसं सँ २०७४ विसं धरिक अवधि सँ नेपाल मे संवैधानिक सम्मा लेल टुकधुम-टुकधुम दबले स्वर मे अपन पहिचान केँ स्थापित करबाक स्वर मुखर होएत रहल अछि; परञ्च शत-प्रतिशत जनमानस एहि महत्वपूर्ण मांग केँ आत्मसात करैत संघर्ष केँ बढेबाक बदला ओहो जे मद्धिम किंवा धीमा आवाज अछि तेकरे दूसय मे लागल अछि लोक। स्वयं अपन मातृभाषा केँ तिरस्कार करैत प्रोफाइल पर बहुभाषिक होयबाक दंभ भरैत अछि अप्पन मिथिलाक लोक, कि एहि सँ बढिकय दोसर कोनो कृतघ्नता भऽ सकैछ जे अपनहि माय, मातृभाषा आ माटि-पानि केँ दुत्कारि हम सब क्षणिक मुकुट धारण कय चमैक लैत छी। संसारक कोनो कोण मे सभ्य समाज अपन मातृभूमि प्रति गद्दारीक भावना नहि राखि सकैत अछि, परन्तु ऊपरवर्णित कृतघ्न मैथिल समाज जहिना गौतम केँ पटकनियां देलक गोबध केर पाप चढाकय, तहिना विभिन्न बहन्ने आ कर्तब्यहीनता सँ अपन व्यक्तिगत हितसाधना केँ मात्र सर्वोपरि मानि समाज, समुदाय आ संगठन प्रति कोनो जिम्मेवारी निर्वाह करय सँ कन्नी कटैछ। जरुरत छैक जे वर्तमान संघीय प्रणालीक राष्ट्र अन्तर्गत हमर हक आ अधिकार – स्वशासन पद्धति अन्तर्गत अपन लोक बीच जनजागरण करय, तेहेन कार्य करनिहार केँ प्रोत्साहित करय, मुदा….. करैछ ठीक बिपरीत। वर्तमान राज्य आ राजनेताक खुलेआम भ्रष्टाचार विरुद्ध बजबाक, रण मे जेबाक शक्ति प्रदर्शन नहि कय कमजोर आ धीमा स्वर मे संघर्षक आवाज बुलन्द कएनिहारक थोड़ेक लोकप्रियता सँ एहेन लोक एतेक डाह करत जे बिना बातोक बात आ आरोप सँ ओकरे चरित्र हत्या करय पर उतारू रहत।
 
मोन पड़ैत छथि डा. लक्ष्मण झा। भारत देश स्वतंत्र भेले छलैक। प्रजातांत्रिक पद्धति सँ जनप्रतिनिधि चुनावक ओ पहिल बेर आम निर्वाचन १९५२ ई. मे ओहो चुनाव लड़लनि, मुदा हारि गेलाह। जँ ओ हारलाह त हुनकर मुद्दा हारल। मिथिला राज्य केर स्थापनाक सपना हारल। लोकलज्जा सँ ओ अपना आप केँ कोठरी मे बन्न कय लेलनि। किताब लिखैत रहलाह। लोकसमाज मे जेबाक नैतिकता नहि रहि गेलनि, कारण मिथिला राज्यक मांग ओ अपना लेल नहि कय लोकसमाजक वास्ते कएने छलाह, मुदा लोकसमाज मे हुनका वोट देबाक समर्पण नहि देखलाह। हम मोन पाड़ैत छी वर्तमान समय धरि मिथिला राज्यक झंडाक संग दहोंदिश आवाज उठेनिहार डा. बैद्यनाथ चौधरी ‘बैजू’ केँ। हुनकर एक-एक संबोधन लोकसमाजक कान केँ हिलबयवला होएत अछि। आजीवन संघर्षक कतेको गाथा ओहि मे छुपल अछि, हजारों-हजार परिवारक कल्याण लेल कएल गेल अनेकानेक संघर्षक व्योरा देल जाएछ, मुदा बदला मे जखन मतदान मार्फत प्रतिनिधित्व प्रदान करबाक बात कहल जाएछ त फेर वैह, जातिवादिताक आधार, भ्रष्ट नेताक बाँटल गेल पैसाक आधार आ वर्चस्वक लड़ाई लड़निहार देखाबटीक जीतक बात अबैत अछि। हारल-थाकल मानसिकताक प्रदर्शन सँ मिथिलावादी लोक पाकल देखाएछ। नेतृत्ववर्गक लोक अपनो मे एहने अहंता आ महात्वाकांक्षाक मारिते रास बात मे फँसल विखन्डित अवस्था मे देखाएछ।
 
युवा पीढी मे सेहो ई रोग आ शोग ओतबे धपायल संक्रमण सदृश स्पष्ट अछि। एक-दोसराक अभियान मे सहयोगक बात त दूर, करनिहारवर्गक गोटेक टन्ना-दुख्खा पर दूसनिहारवर्ग सरेआम बेईज्जती करय लेल आतूर देखाएछ। अपन पेट पोसय सँ फुर्सत नहि, दोसराक खाताक अंकेक्षण करबाक दुस्साहस धरि करय सँ ओ परहेज नहि करैछ। अपन योग्यताभिमान मे चूर सीमा मे खूटेसल मस्तिष्क सँ करनिहार वर्गक अलौकिकता केँ नापबाक कूचेष्टा करैछ। एहेन मे कियो नीक लोक केँ जँ अपन मातृभूमि लेल आगाँ एबाक प्रस्ताव राखब त तुरन्त दुनू कान पर हाथ दैत ‘तौबा! तौबा!! मिथिला राज्य? यूरोप केँ सेहो मिलायब एहि मे कि! जापान बना देबैक राज्य बनाकय! हाहा! ई सब तरफ दिमाग केँ जुनि बहकाउ। हमर जे सामर्थ्य अछि ताहि अनुरूपें समाजक सेवा मे लागल छी, ताहि मे सहयोग करय जाउ।’ कहैत भेटाएत छथि एक जानल-मानल शिक्षाविद् आ समाजसेवी। हिनकर योगदान सँ मिथिलाक नाम विश्वपटल पर प्रसिद्धि प्राप्त करैछ, मुदा जखन ई गाम लौटिकय एकटा विश्वस्तरक कार्य कय दैत छथिन कि दूसनिहार हिनको पाछाँ लागि जाएछ आर उलहन-उपराग दैत कहि बैसैत अछि, “समूचा किसानक जमीन पर अबैध कब्जा जमेबाक लेल युनिवर्सिटीक बहन्ना लगबैत छथि, भू-माफिया छथि, आदि-आदि।” माने जे महाराजा अपन समैध ओतय मधुश्रावणीक भार पठौलनि मुदा दूसनिहार केँ किछुओ नहि भेटलैक त अन्त मे बूटक नाक टेढ छैक कहिकय दूसबाक प्रवृत्ति हमरा लोकनिक मिथिला मे कायम अछि। एहेन मे जँ कियो नीक कार्यकर्ता ई कहिकय साइड भऽ जाय जे “हमरा कोनो कुकूर थोड़े न कटने अछि जे मिथिला लेल एहेन अवस्था मे काज करब” त कोनो अतिश्योक्ति नहि होयत। एहि लेखक मार्फत हमर विनीत अनुरोध अछि अपन जाग्रत मिथिला समाज सँ जे एहेन कृतघ्न लोकक बन्ध्याकरणक उपाय जरुर ताकय जाउ। एहेन नकारात्मक शक्ति केँ ‘इग्नोर करू’ कहिकय बढावा नहि दियौक। अस्तु!
 

हरिः हरः!!