कथाः ठकविद्या

कथा

– प्रवीण नारायण चौधरी

ठकविद्या
 
मास्टर साहेबक आदति छलन्हि जे कक्षा मे अबिते देरी चपरासी बिकाउ केँ कहथिन जे छड़ी लेने आबे। एक त छात्र सब हुनका सँ ओहिना डराएत छल, ताहि पर सँ ओ जानि-बुझि कक्षा मे प्रवेश सँ ठीक पहिने चिकैरकय कहथिन, “ऐ बिकाउ, छड़ी लेने आउ!” हुनकर छड़ियो अयली-बयली नहि होएन। विद्यालयक हाता मे राहड़िक गाछ जेकाँ एकटा जंगली फूल फूलायवला गाछ रहैक जेकर छड़ी एतेक सक्कत आ लमगर होएक जे पुछू जुनि। बिकाउ चट जेबी सँ चक्कू निकालि ओकरा बना-सोनाकय लय अबैत छल। ताबत मास्टर साहेब कक्षा मे प्रवेश कय जाएत छलाह, पैछला दिन कतय धरि कि-कि पढाई भेल तेतबा बात पूछैत छात्र सब सँ अपन मेमोरी रिफ्रेश करबैत छलाह। तेजगरहा विद्यार्थी सब मे होड़ लागि जाएक जे हम कहबैन त हम कहबैन, आ भूस्कोलहा सबहक जे दशा रहैत छल से पुछू नहि। बड चलाख जे रहैत छल से फूसियों ठोर फरफरबैत रहैत छल जे मास्टरसाहेब केँ ई बुझाएन कि ओहो बरोबरि जबाब दय रहल अछि। यथार्थतः मास्टरसाहेबक पढेबाक तरीका मे कक्षा आरम्भ करय सँ पहिने ‘पूर्वाभ्यास’ करायब एकटा नीक आ प्रभावी तरीका छल।
 
बुझले बात छैक जे हरेक कक्षा मे तेजगर विद्यार्थी सब ऐगला बेंच पर बैसय, भूस्कोलहा सब देवालक काते-कात आ पाछू वला बेंच पर बैसब पसीन करय। मास्टरसाहेब केँ सेहो पढबैत-पढबैत एतेक अनुभव भऽ गेल छलन्हि जे कोन बच्चा तेज अछि आ कोन भूस्कोल अछि। पिन-ड्राप साइलेन्स रहैत छल हुनकर क्लास मे। तेजगरे छात्र सब कहियो किछु बाजि देलक त ओ वर्दाश्तो करैत छलाह, बाकी जे कियो टपर-टपर केलक त फेर ओ छड़ी जे लगभग ४ फीट लंबा होएत छल से जाबत १ फीट टूटैत-टूटैत नहि बनि जाय, ओकर देह पर बजैरते रहि जाएक। सच छैक जे ४० छात्र मध्य १० गोट छात्र मेधावी वर्गक होएक, बाकी ३० मे १० गो महाभूस्कोल, बड मोस्किल सऽ कोनो बात बुझैक आ गृहकार्य आदि पूरा करैक, आर बाकी जे २० गो छल से औसत बुद्धिक – दुनू तरफ सऽ प्रभावित, बेर पड़ल त भूस्कोलहा दिश आ फेर बेर पड़ल त तेजगरहा दिश। मास्टरसाहेबक आदति रहनि जे महाभूस्कोल केँ किछु खास नहि कहथिन…. बस विद्यार्थीक बापक भलापन केँ मोन पारि ओकरा बुझबथिन जे तोंही हुनकर आश छहुन आ तोंही एना भोंदू बनल रहमे त केना काज चलतौक। ओ सब बेचारा मूरी गोंतने सब बात सुनि लियय आ मेहनत करबाक नित्य प्रण करय। मुदा बीचला मे रहनिहार २० गो मास्टरसाहेबक छड़ीक शिकार बेसी हुअय।
 
सबसँ बेसी हुनका तामश चढैन फाँकी मारनिहार पर…. गोटेक छात्र एहनो होएक जे जबरदस्ती सेहो उत्तर देबाक चेष्टा करैत छल। मास्टरसाहेब ओकरा फेर तेना घूमाकय पूछथिन जे असलियत बुझा जाएत छलैक आर ओकरा ओ कहथिन जे ई ठकविद्या पढिकय अबैत छह, हौ जीवन भैर पछतेबह। ओह! हाय रे मास्टरसाहेब! ओहि समस्त ठकविद्या पढनिहारक जीवन मे सचमुच आइ धरि ठकबुद्धि सँ काज करैत देखल जाएत अछि। तेजगरहा भले जीवन आर भाग्य मे कतहु फँसि दर-दर ठोकर खा रहल अछि, मुदा ओ औसत बुद्धि केर ठकविद्यानिपूण छात्र सब एखनहु अपन फाँकी मारबाक कला, प्रवृत्ति आ झूठो केँ सच बना देबाक विशेषता सँ अत्यधिक सफल कहाएत अछि। समाज मे ओकर जे प्रतिष्ठा छैक ताहि लेल कतेको लोक लालायित देखाएछ। जखन कि ई प्रतिष्ठा आइयो क्षणिक आ क्षणभंगूर मात्र छैक, लेकिन कलाकारिताक संग अपन प्रस्तुति मे जेना मास्टरसाहेब सनक कड़ा आ तमशाह तक केँ नहि छोड़ैत छल से आइयो संसार केँ ठकय मे कोनो कसैर बाकी नहि रखने अछि।
 
मिथिलाक इतिहास मे गोनू झा केर खिस्सा बड पुरान अछि। कतेक लोक गोनू झा केँ काली माय केर आशीर्वाद-वरदान भेटबाक बात सेहो गछैत छथि। राजा-महाराजा सँ लैत जमीन्दारो सभक खिस्सा मे १० गो ठकबुद्धिक मानव दरबारिया आ चाटुकारिता सँ अपनो आ राजो-काज सबकेँ चलबैत देखाएत अछि। वर्तमान समय त पंचायत प्रतिनिधि सँ लैत जनप्रतिनिधिक हरेक स्तर मे ठकविद्या सँ परिपूर्ण नेतागण केर होड़ केकरा नहि बुझल अछि। उजड़ा-उजड़ा पैजामा, ओ आइरन आ चूनन कएल मखमली या खादी कुर्ता आ ताहि पर सँ एडीडास केर स्पोर्ट शूज – खहखह उज्जड़ देह भीतर कारी स्याह मोन आ हृदय – ओह केहेन बेजोड़ कम्बिनेशन छैक। लेंगड़ी-पछाड़ मे मास्टर जँ छात्रहि हो त फेर उपरोक्त वर्णित संस्मरण केर मास्टरसाहेब सनक चरित्र कतिकाल आ कतेक दूर धरि कारगर हेता। समाज राम भरोसे चलल जा रहल अछि। ई हमरा लोकनि अपना आप सँ पूछी जे कतेक आ कतय कोन बुद्धि सँ अपन जीवन निर्वाह कय रहल छी। ताहि मे कखन ठकविद्याक प्रयोग करैत छी आर कि ई हमर प्रवृत्ति मे त नहि समा गेल अछि। कारण, ठकविद्याक माहिर सभक मृत्यु बड दुर्दशा सँ भेटैत छैक – जेकर चर्चा हम फेर कोनो दोसर लेख मे करब। अस्तु!
 
हरिः हरः!!