मिथिलाक महिला आ आधुनिकता
मैथिलानीक दर्शन एक सम्भ्रान्त देवीक दर्शन समान बुझैछ। स्मृतिमे आनि दैछ ब्रह्माण्डीय सत्य – सीता सँ श्रेष्ठ दोसर कियो नहि! हरेक दृष्टिकोणसँ आ साक्षात् ब्रह्माजीकेर दरबारमे लेल गेल निर्णयक आधार पर “सीता समान दोसर कियो नहि”, चाहे सरस्वती, चाहे लक्ष्मी, चाहे दुर्गा, चाहे काली, चाहे अनेकानेक ऋषिकन्या, देवकन्या, स्वर्गपरी, वा कियो भेलीह लेकिन सीताकेँ सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी सम्मान सनातनकालीन हिन्दू संस्कृतिमे मान्य अछि।
आँचर माथपर नहि अछि, वैज्ञानिक कारणोसँ स्त्री टा नहि पुरुषोकेँ माथकेँ बाहरी वायुमण्डलमे विचरण करबाक समय कम सऽ कम जरुर झाँपिकय रखबाक आवश्यकता अछि। यैह आवश्यकता समय संग सिरस्त्राण बनबाक परंपरा बनि गेल अछि। सीथमे सेनुर जेकर झपना मणिटीका (माँगटीका), माथपर बिन्दी जे श्री व ऐश्वर्यकेर द्योतक थीक तेकर प्रतिनिधि करय लेल, नाकमे नथिया, कानमे बाली, गलामे हार, हाथमे चुडी, हाथक आंगुरमे औंठी पयरमे पायल, पयरक आंगुरमे बिछिया - एतेक श्रृंगार तँ मात्र गहनाक मादे न्युनतम देखाइछ। मंगलसूत्र, पोते, डाँडमे डँडकस (कमरबन्द), हस्तशंकर, पाइट (बाजुबन्द), हौँसली, आ जतेक जुडत ततेक, अपनो ओजनसँ बेसी ओजनक गहना पुरा सकैत छी। नारीक श्रृंगारक ई इतिहास अछि। परिधानक साधारण व्याख्या यैह जे कोनो अंग आ देहक चामतक कतहुसँ नहि देखाय। खास कयके नाजुकताकेर बचाव हेतु एहेन परिधान पहिरब नारी लेल परंपरामे देखा रहल छैक जे नहि सिर्फ ओकर शरीरक रक्षा हवा-पाइन-रौद आदिसँ करौक, वरन् बाहरी दृष्टि-नजैर आदिसँ सेहो नारीक अस्मिताक रक्षा परिधानमे समाहित रहैत छैक। एकर अतिरिक्त केशक श्रृंगारमे फीता, चोटी, क्लीप आदिक प्रयोग; सीथ आ लटकेर व्यवस्थापन सेहो बड पैघ मान्यता रखैत छैक। देह आ मुखारविन्दक श्रृंगार सेहो आदिकालसँ विभिन्न प्रकारक लेप, चन्दन, इत्र आदिक प्रयोगसँ प्रसिद्ध छैक। नारीक स्वभाव सेहो मृदु मानल जाइत छैक। जहिना शरीर कोमल, तहिना स्वभाव कोमल। उलटा सेहो होइत छैक, प्रकृति भिन्न-भिन्न, जेना देवीक विभिन्न अवस्थाक वर्णन ‘क्षणे तुष्टा – क्षणे रुष्टा’ समान देखाओल गेल छैक – ई सबटा लगभग हर नारीक चारित्रिक प्रस्तुतिमे विभिन्न रूपमे देखाय पडैत छैक। बोली, वचन, व्यवहार – सब किछु मृदु आ सहज मानब एक सामान्य वर्ग लेल निश्चित छैक।
आधुनिकतामे अपन संस्कृतिकेर विकास अवरुद्ध छैक आ विदेशी तर्जपर दोसराक देक्सी चरमसीमा पार कय रहल छैक। तर्क छैक जे कि नारी सब दिन चौखैटकेर भितरे रहती… हुनका स्वतंत्रता चाही, आर्थिक विकास सँ लैत जनप्रतिनिधित्व आ विधान बनेबा सँ लऽ के देशक सीमा-सुरक्षा तकमे तत्परता लेल नारीक सहभागिता जरुरी अछि। पुरुष-प्रधान समाजमे नारी बहुत पाछू छूटि गेल छथि आ जीवनरूपी गाडीक दुनू पहियाक आकार असमान भेलाक कारणे एकर गति कहियो निर्वाधरूपमे नहि बनि पबैत अछि ताहि लेल समाधान जरुरी अछि। और, स्वतंत्रतामे श्रृंगार, परिधान, गहना, स्वभाव, रूप सब किछु परिवर्तित बनि गेल छन्हि महिलाक। जेना-जेना शहर दिशि जीवनचक्की भागि रहल अछि, तेना-तेना आरो रूप सब वीभत्स आ भयंकरी देवीक ताण्डवस्वरूपा सब यत्र-तत्र-सर्वत्र देखाय लागल अछि। जाहि समाजक संतुलन नारीक हाथमे बंधक राखल अछि, ताहि समाजमे ई आधुनिकता नहि जानि केहेन क्रान्ति प्रसार करय लागल अछि। एहेन कोनो दिन नहि जे कतहु दुर्घटना नहि हो आ ताहिमे कतहु नारी संलग्न नहि होइथ… एक तऽ पुरुष प्रधान समाजमे पौरुष महिला हिंसा वृद्धिक ताण्डव देखबैत अछि, दोसर दिशि नारीक आधुनिक श्रृंगार आ उन्मुक्ति नित्य-नव-खेल देखा रहल अछि, तखन एहि अफरातफरी-अराजकताकेँ संतुलन लेल नियंत्रक कारकतत्त्व कि… ई एक गंभीर प्रश्न बनि रहल अछि। आधुनिकताक संवरण मात्र शारीरिक आ मानसिक धरि हो, आध्यात्मिक नहि तँ दुर्घटना तय छैक। आध्यात्मिक आधुनिकताक संवरण सहित यदि अन्यकेर प्रवेश होयत तँ लोक सीता, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, काली, चण्डी, मेनका, अहिल्या, मंदोदरी, तारा आदि समस्त नारीक महान हस्ताक्षरस्वरूप देवीकेँ स्मृतिमे रखैत सब तरहक स्वच्छन्दता वरण कय सकैत छथि आ देश-काल-परिस्थिति अनुरूप सदैव अपन अस्मिताकेँ लाजक परिधानमे समेटने मृदु-मीठ बनि संसारकेँ महान-मातृत्वसँ पोषण कय सकैत छथि। हम जानि-बुझि आधुनिक श्रृंगारकेर विवरण राखब उचित नहि मनलहुँ, एहिपर भारतीय पौराणिक दर्शन बाजयसँ बान्हि दैत अछि।
(मूल आलेख पूर्व प्रकाशित अछि)