वर्तमान नेपाल भूकंप सँ पहाड़ अस्त-व्यस्त भेल अछि। पहाड़ मे सेहो लमजुंङ्ग नामक स्थान सँ १०० किमी परिधि मे खतरा चरम पर छल, कारण भूगर्भ भीतर भेल घटनाक्रम पृथ्वीक सतह पर प्रकट मध्य हिमालय पहाड़ मे भेल। हजारों घर तहस-नहस भऽ गेल अछि आ मात्र १ मिनटक भूचाल सँ हजारोंक संख्या मे लोक प्राणक रक्षा तक नहि कय सकल, अपन घरहि मे दबिकय जान गँवा देलक। जे मरि गेल ओकरा कतेक फर्क पड़ैत छैक से सहजहि बुझल जा सकैत छैक, मुदा जे बचि गेल ओकरा मे एहन आदंक पैसल अछि जेकर शब्द मे व्याख्या कय सकब संभव नहि अछि। एहेन भूकंप करीब ८० वर्षक बाद आयल से लोकचर्चाक विषय अछि। प्राकृतिक त्रासदीक ई भयावह रूप सँ विश्व मानव समुदाय हिल गेल अछि, भूकंपक कंप भले नेपाल, भारतक उत्तरी भाग, भुटान, बांग्लादेश आदि तक मात्र पहुँचल हो। भयानक विनाशकारी भूकंप सँ जान-मालक जे क्षति नेपालक राजधानी काठमांडु तथा नजदीकी पहाड़ी जिला आदि मे भेल तेहेन क्षति अन्यत्र कतहु नहि भेल अछि। लेकिन जनमानसमे एकटा त्रास पैस गेल जे जँ ई भूकंप आरो १५ सेकंड धरि रहैत तऽ कतहु किछु नहि बचैत। आशंका अनेक पैसल छैक लोकमानस मे। पुष्टि होइत छैक ओहि महाभूकम्पक उपरान्त पुनरावृत्ति झटका सँ जे एखन धरि १०१ बेर भऽ चुकल अछि।
प्रसंग उठा रहल छी प्राकृतिक त्रासदीक अन्य रूप जलप्रलय केर – यैह हिमालय सँ निकैल रहल अनेको छोट-पैघ नदीक जल सँ मिथिला पूर्णरूपेण सींचित अछि आ कोसीकेँ ‘बिहार का शोक’ सेहो मानल जाइत छैक। बागमती, गंडकी, कमला-बलान, गेँहुआँ, आदि सब नदीक जलस्तर गर्मीक मास शुरु होइते, ग्लेशियर पिघलब शुरु होइते बढनाय शुरु भऽ जाइत छैक। मानसूनक बरसात अबैत देरी जलस्तर ऊफान पर पहुँचैत छैक। आ फेर शुरु होइत छैक बाढिक ताण्डव। बाढि आ भूकम्प मे जान-मालक क्षति गुणे कोनो अन्तर नहि छैक, जहिना अपटी खेत मे मनुख अपन जान-प्राणक संग माल-वस्तु-स्वजन परिवार सँ एहि त्रासदी मे बिछुड़ैत अछि तहिना अन्य कोनो मे। घर-वार-खेती-बाड़ी सब खत्म भऽ जाइत छैक। अन्तर कि छैक जे भूकंप तऽ दशकों बाद एक बेर गड़गड़ी दैत अबैत छैक, मुदा बाढि हुहुवाइत हर वर्ष अबैत छैक। मिथिलाक जनमानस करीब-करीब अभ्यस्त बनि गेल अछि। देह चेरा केने रहैत अछि नहि जानि कोन दिशा सँ पानिक बहाव आबि सब किछु बहाकय लऽ जायत।
पहिने खतराक रूप किछु अलग छलैक। खतरा सँ बेसी लोक केँ लाभो भऽ जाइत छलैक। कारण नदीक जल चौतरफा पसरैत छलैक – खेत मे पाँक माटि आनि उपजा चौब्बर बढा दैत छलैक – पोखैर, चभच्चा, खत्ता-खुत्ती, झील आदि मे जलफल आनिकय भरि दैत छलैक। कहबी छलैक जे ‘आय्ल पाइन गेल पाइन – बाटहि बिलाय्ल पाइन’। एहि निरंतर खतरा सँ निजात पेबाक लेल १९४०-५० केर शुरुआती दशक मे अंग्रेज सरकार द्वारा जल-व्यवस्थापन प्रति सकारात्मक सोच बनलैक। ताहि समय दोसर विश्वयुद्ध सँ अंग्रेजक टूटल डांढ आ ताहि मे औपनिवेशिक राष्ट्र जाहि मे भारत सबसँ पैघ छल ताहि ठाम अपन वर्चस्व बचेबाक चुनौती केँ देखैत अंग्रेज सरकार वैभल समान मजबूत जनकल्याणकारी विचारवला वायसराय केर नियुक्ति केने छल। वैभल हिमालय सँ निकलैत पानिक शक्ति केँ देशहित मे उपयोग करैत जनहित लेल बाढि नियंत्रण हेतु वृहत प्रोजेक्ट बनौलक, जेकर नाम ‘वैभल प्रोजेक्ट’ पड़ल आ वैह बाद मे ‘कोसी प्रोजेक्ट’ नाम सँ विख्यात भेल। वैभल केर परियोजना मे जल-व्यवस्थापनक वृहत योजना कि छलैक से वास्तव मे आइ धरि कोनो शोध-पत्र वा मूल आलेख पढबाक-अध्ययन करबाक अवसर नहि भेटल, मुदा एतेक जरुर पढलहुँ जे १९४७ ई. मे भारत स्वतंत्र भेलाक बाद ‘वैभल प्रोजेक्ट’ केर कोष तात्कालीन राजनैतिक-सामाजिक जाग्रत बंगाल आ पंजाब लेल स्थानान्तरण कय देल गेल। पुन: राजनैतिक दबाव बढला पर १९५०-६० केर दशक मे कोसी प्रोजेक्ट, बाँध परियोजना, नहर आ पनबिजली परियोजनाक रूप मे आयल। लेकिन परिणाम बद सँ बदतर भेल। आब तऽ बान्ह टूटिते लाखों जनधन केर क्षति लगभग हरेक वर्ष तय मानल जाइत अछि। कोनो एहन वर्ष नहि जाहि मे विनाशकारी बाढिक त्रासदी मैथिल नहि झेलैत हो। राहत, पुनर्वास, खरात आदि एहि ठामक लोक केँ आदति पड़ि गेल बुझाइत अछि।
प्राकृतिक त्रासदी सँ निपटबाक लेल दीर्घकालीन योजना बनेबाक आवश्यकता आइयो ओहिना बाकिये अछि। मिथिलाक भौगोलिक संरचना हो या नेपालक पहाड़ समान ऊबर-खाबड़ भूमि मे मानवीय सभ्यताक विकास – हर जगह त्रासदीपूर्ण वातावरण सँ ऊबरबाक लेल पूर्व-तैयारी पर ध्यान देनाय जरुरत बनले अछि।