आमंत्रण पत्र केर भाषा सँ अवगत होएछ व्यक्तिक व्यक्तित्व आ गामक कृतित्व

सम्पादकीय – मार्च २३, २०१७. मैथिली जिन्दाबाद!!

प्रतिष्ठित गाम आ प्रतिष्ठित लोक एखनहु अपन मैथिलत्व केर रक्षा अपनहि भाषा ओ व्यवहार केर निर्वाह करैत पूरा करैत अछि। सामान्यतया विवाह, उपनयन, पूजनोत्सव, गोष्ठी, समारोह आदिक आमंत्रण नितान्त अपन लोक लेल मात्र होयबाक कारण गाम-घर मे अनिवार्य रूप सँ ‘मैथिली भाषा’ मे आमंत्रण पत्र छपेबाक नीति छैक; लेकिन आश्चर्य लागत जखन एहि नीतिक बिपरीत हमरा लोकनि हिन्दी या अंग्रेजी मे आमंत्रण पत्र छपबैत छी आर अपन स्वभाषी सज्जन वा महिला वा परिवार केँ गैर-भाषा मे लिखल आमंत्रण पत्र पठा सहभागी बनबाक लेल आमंत्रित करैत छी। ई समस्या कतहु-कतहु अन्जानियो देखाय पड़ल। पूछला पर कहला जे प्रेस (छापाखाना) जतय कार्ड छपेबाक अर्डर देलियैक वैह जे प्रारूप देलक ताहि मे छपबाबय पड़ल। आब कतेक बहस करब! आमंत्रण पत्र अपने सँ नहि लिखि सकैत छी त प्रेसवला केँ ई भार देबाक बदला गाम-समाज मे कतेको पढल-लिखल लोक छथि, हुनका सँ लिखबा लितहुँ…. मुदा….! खैर छोड़ू। सम्भ्रान्त बनब या हल्लूक ई लोकक अपने हाथ मे रहैत छैक। एखनहु पिछड़ल वर्गक लोक भोजपुरी गीत मे परिवारक संग ‘तनि सा जीन्स ढीला करह’ आ ‘खा ल तिरंगा फाड़-फाड़ के, जा झाड़ के’ सुनैते भेटत। जखन कि इज्जतदार आ प्रतिष्ठित परिवार मे एहि तरहक गीत जँ भूलवश साउन्ड सिस्टम संचालक बजइयो देलक कि लोक मार-मार कय छूटैत छैक। मुदा पढल-लिखल आ अपना केँ पैघ बुझनिहार कतेको लोक अपना केँ हाई स्टैन्डर्ड आ शहरी आवरण मे प्रस्तुत करबाक लेल जानि-बुझिकय गैर-मातृभाषा मे आमंत्रण पत्र छपबैत अछि, ओहेन लोक केँ स्वयं आत्ममंथन करबाक चाही।

 
प्रस्तुत अछि, ग्राम रहुआ-संग्राम मे आयोजित विशुद्ध मैथिलीक आमंत्रण-पत्र…. आब फेर विशुद्ध मैथिली कहि दी त अहाँ सब ओहि मे सँ हिन्दीक गोटेक शब्द निकालि हमर बात केँ चीर-फाड़ नहि करय लागब। मैथिली भाषा मे बाजब पर्यन्त कतेक लोक केँ लाजक बात बुझाएत छैक। एहेन-एहेन लोकक मनोविज्ञान पर मोने-मोन सोचू। समूचा संसार मे लोकक पहिचानक पहिल आधार ओकर मातृभाषा होएत छैक, मुदा एहेन ढेर होशियार मिथिलावासी लेल हमरा पास ‘रारम् घोरम् एँड़म् पवित्रम्’ वला कहबी छोड़ि दोसर किछु नहि अछि। फेरो, रार माने कोनो जाति विशेष नहि, बल्कि एहेन लोक जे नीति विरुद्ध अपने तर्क-कूतर्क जोतय आ अहाँ कतबू बुझेबैक तैयो ओ अपन जिद्द सँ नहि उतरय, ओ भेल रार। आर, मिथिलाक अदौकाल सँ चलैत आबि रहल वैदिक रीत कहैत छैक जे एहेन रार केर इलाज सेहो एँड़ सँ मात्र संभव होएछ। अस्तु!
 
हाथो-हाथ जँ आरो किनको हाथ कोनो आन गामक आमंत्रण पत्र उपलब्ध हो – ओ मैथिली हो वा हिन्दी हो, त स्वतः अहाँ आकलन कय सकैत छी जे ओहि गामक मनोदशा आ मनोविज्ञान केम्हर संकेत कय रहल अछि। हमरा भय अछि, हमर गाम कुर्सों केर आमंत्रण पत्र मे सेहो कहीं गैर-भाषाक प्रयोग नहि कएल गेल हो। हम केवल दुर्गा देवी सँ सब केँ सद्बुद्धि लेल प्रार्थना करैत आजुक संपादकीय एहि तरहें प्रस्तुत कय रहल छी। हर गाम केर लोक आ समाज मे अपन भाषा आ भेष प्रति सद्भाव रहत तखनहि मैथिली जिन्दाबाद होयत। हमर मीमांसा सँ भिन्न मत रखनिहार केर सेहो स्वागत करैत छी, मैथिली-मिथिलाक शुभ हो से कामना करैत छी।
 

हरिः हरः!!