मिथिलाक ऐतिहासिक विभूतिः विद्यापति

मिथिलाक इतिहासः विद्यापतिक परिचय

विद्यापति (१३५० सँ १४४८ ई.)
 
विद्यापति केँ मैथिली भाषाक खंभा टा नहि अपितु मैथिली आन्दोलन आ मैथिली पहिचानक शक्तिक रूप मे सेहो मानल जाएत अछि। विद्यापति पर्व समारोह मार्फत मैथिल जनगण मे भाषिक चेतना जागरणक बहुत पैघ महत्वपूर्ण भूमिका निभायल गेल अछि। एकमात्र कवि विद्यापति आ भाषा मैथिली मे ई सामर्थ्य छैक विभिन्न जाति ओ वर्गक मिथिलाक लोककेँ एकठाम आनि सकैत अछि। मात्र विद्यापतिक कारण सँ मैथिली भारतक आधुनिक भाषाक रूप मे प्रस्फूटित होयबाक बात वृहत् स्तर पर मान्य अछि।
 
विद्यापतिक जन्म मधुबनी जिलाक बिस्फी गाम मे भेलनि। ओ एक दरबारी (शाही दरबारक) कवि छलाह। राजा शिव सिंह केर दरबार मे ओ कार्यरत छलाह। हुनक जन्म ओ मृत्युक समय (तिथि) पर अलग-अलग राय भेटैत अछि। ई संभवतः एहि लेल जे ओ एक विपुल कवि आर लेखक रहितो अपन जन्म आर मृत्युक विषय मे कतहु किछु उल्लेखन नहि कएलनि अछि। विभिन्न विद्वान् यथा चन्दा झा, डा. सुभद्र झा, प्रो. रमानाथ झा, पं. शशि नाथ झा केर अनुसार १३५० ई. केँ हुनक जन्मक वर्ष मानल गेल अछि। हलांकि महामहोपाध्याय डा. उमेश मिश्र व डा. जयकान्त मिश्र हुनक जन्मक साल १३६० ई. केँ मानैत छथि। ई बहस योग्य बात थिक जे डा. सुभद्र झाक अनुसार हुनक मृत्युक साल १४४८ ई. सँ १४६१ ई. कहल गेल अछि, जखन कि उमेश मिश्र १४४६ ई. कहलैन अछि; जयकान्त मिश्र १४४८ ई., पं. शशिनाथ झा १४५० ई. कहलैन अछि।
 
मिथिला मे एक किंवदन्ति काफी प्रचलित अछि जे महादेव (भगवान् शिव) स्वयं हिनक घर पर सेवक उगना केर रूप मे रहलाह। ईहो मानल जाएत अछि जे गंगा (एक नदी, जिनका गंगा माय सेहो कहल जाएछ) अपन धाराक रुखि बदैलकय हुनकर मृत्युक समय हिनका अपन कोरा मे लेबाक लेल आबि गेली। ओहि स्थानक नाम वर्तमान मे बाजितपुर – विद्यापतिनगर कहल जाएत अछि।
 
विद्यापति संस्कृत, अवहट्ट आ मैथिली मे लिखलनि। हुनक लोकप्रियताक मुख्य आधार देसिल वयना (मातृभाषा) मैथिली मे लेखन मुख्य अछि। एकर अतिरिक्त विद्यापतिक खास सृजनशीलता आ पदक मिठास सेहो मानल जाएत अछि। महिला द्वारा लोकगायनक परंपराक माध्यम सँ विद्यापतिक पदावली छः सौ वर्ष सँ मुंहे-मुंह होएत जीबित रहल अछि। मिथिलाक संस्कार ओ संस्कृति केर गहराई मे हिनकर पद्य स्थापित होयब एकर यथार्थ सामर्थ्य थिक।
 
हिनक प्रसिद्ध रचना मे भूपरिक्रमा, विभासागर, दानवाक्यावली, पुरुष-परीक्षा, दुर्गाभक्ति-तरंगिनी, मणि-मञ्जरी, लिखनावली, कृतिलता, कृतिपताका, गोरक्ष-विजय मुख्य अछि। हिनक मैथिली पद्य मिथिला, बंगाल आ नेपालक तराई मे व्यवहार मे भेटैत अछि आर एकरा सभक प्रकाशन बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना द्वारा तीन संस्करण मे कएल गेल अछि।
 
VIDYAPATI (1350 – 1448)
Vidyapati is considered not just as the pillar of Maithili language but pillar strength to the Maithili movement and Maithili identity too. Vidyapati Parva Samaroha has
played a critical role in shaping linguistic consciousness among the Maithils. It is Vidyapati – the poet and Maithili – the language that is capable of bringing different
caste and class groups in Mithila together. It is widely acknowledged that it was because of Vidyapati that Maithili has been able to revive itself and gradually flourished as a modern Indian language.
 
Vidyapati was born at village Bisphi in Madhubani district. He was a Darbari (royal court) poet. He worked in the court of Raja Shiv Singh. Here is difference of opinion regarding the period of his birth and death. It is because despite being a prolific poet and writer he has left no trace of his birth and death. Many scholars like Chanda Jha, Dr. Subhadra Jha, Prof. Ramanath Jha, Pt. Shashi Nath Jha considered 1350 A. D. as his year of birth. However, for M. M. Dr. Umesh Mishra and Dr. Jayakant Mishra he was born in 1360 A. D.
 
It is debatable, for Dr. Subhadra Jha it was between 1448 and 1461; for Umesh Mishra it was 1446; for Jayakant Mishra it was 1448; Pt. Shashinath Jha opined it to be 1450.
 
There is a narrative widely prevailed in Mithila that Mahadev (God Shiva) himself worked in his household as a servant – Ugana. It is also believed that Ganga (a river, also called mother Ganga) changed its course to take him in her lap at the time of his death. That place is known today as Bajitpur, Vidyapati Nagar. Vidyapati had written in Sanskrit, Awahatta and Maithili. His popularity is based on his vernacular writings mainly Maithili. Besides, Vidyapati’s own creativity and sweetness of his Padas, it is the women folk of Mithila which kept these Padas alive almost for six century through oral transmission. His Padas and songs are very much
rooted in the cultural milieu of Mithila and that has been its real strength.
 
His famous works are Bhuparikrama, Vibhasagar, Dan-vakyavali, Purush-Pariksha, Durgabhakti-Tarangani, Mani-Manjari, Likhanawali, Kirtilata, Kirtipataka, Goraksha-Vijaya. His Maithili Padas are found in Mithila, Bengal and Tarai region of Nepal and these all have been published by the Bihar Rashtrabhasha Parishad, Patna in three respective volumes.
 
डा. मिथिलेश कुमार झा केर शोधपत्र सँ अंग्रेजीक अनुवाद हमरा द्वारा!!
 
हरिः हरः!!