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अहीं द्वारे हम लिखय छी – से बुझियौ

कविता 

– उदयचन्द्र झा ‘विनोद’

अही्ं दुआरे हम लीखैछी
से बुझियौ
अहाँ न जीलहुँ तैँ जीबै छी
से बुझियौ

अहाँ संग भोरे उठि सातु पिबैत रही
अहाँ न छी तैयो पीबै छी
से बुझियौ

हमर चालि मे जतय जतय आपत्ति रहय
से सब आब न हम करै छी
से बुझियौ

शयन कक्ष मे जूता चप्पल नहि चाही
आब घरक बाहर हम जूता
खोलि दैत छी
से बुझियौ

खिसिआयलि सजनी के कतबा ब्योत लगा सैंतैत रही
आब तकै छी काहि कटै छी
तखन सुतै छी
से बुझियौ।

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