विद्याक देवी सरस्वती केर विशेष आराधनाः मिथिलाक परंपरा

सरस्वती पूजा विशेष

विद्यार्थीसभमे उत्साहक सञ्चार करएवला देवीक पूजा
– सुजीत कुमार झा, जनकपुरधाम
saraswati maसरस्वती पूजाके जनकपुरमे मात्र नहि मिथिलाञ्चल वा कही जे पूरे भारतीय उपमहाद्वीपमे धूम अछि । कोना कऽ भगवतीकेँ प्रसन्न करी सभक लक्ष्य यैह अछि । विद्या धनं सर्वधनं प्रधानम् – सब धन मे विद्याधनक महत्व अत्यन्त उच्च होयबाक कारण, हरेक मानव लेल सरस्वती आराध्या छथि ।
सरस्वती पूजा प्रत्येक वर्ष बसन्त पञ्चमीक दिन मनाओल जाएत अछि । ई पूजा माता सरस्वती, जिनका विद्याक देवी कहल जाएत अछि, हुनके सम्मानमे आयोजित कएल जाएछ । मिथिलाञ्चलमे बहुत उत्साहकसँग ई पावनि मनाओल जाएछ ।

सरस्वती पूजाक आयोजनाक चर्चेसँ विद्यार्थीसभमे उत्साहक सञ्चार होमय लगैत छैक । कारण यैह जे प्रत्येक शिक्षण संस्थानमे विद्यार्थीसभ पूरे उत्साहकसँग ई पावनिमे सहभागी होएत आएल करैत अछि । एहिमे धियापूता आ बुढ़क सेहो ओतबे सहयोग रहैत अछि । विद्यार्थीसभ समूह बनाकऽ चन्दा जम्मा करैत अछि आ फेर पूजाकेर किछु दिन पूर्वेसँ साजसज्जाक कार्यमे सहभागी भऽ जाएत अछि । मूर्ति केहेन चाही, सजावट लेल कि सब करब, पंडाल कतेक टा बनायब, प्रसाद कि बनायब, बयर आ केसौर समान ऋतुफलक इन्तजाम कोना करब – इत्यादि अनेकानेक खास इन्तजाम संग विद्यार्थी सब सरस्वती पूजा मे व्यस्त भऽ जाएत अछि ।

सरस्वतीक जन्म कथा

सृष्टिक स्थापनाकालेमे भगवानक ईच्छासँ आद्य शक्ति अपन शरीरकेँ पाँच भागमे विभक्त कऽ लेलन्हि । जकर परिणाम स्वरुप राधा, पद्मा, सावित्री, दूर्गा आ सरस्वतीक रुपमे प्रगट भेलीह । ओहि समय श्री कृष्णक कण्ठसँ उत्पन्न होबएबला देवीक नाम सरस्वती राखल गेल । श्रीमद् देवी भागवत आर श्री दुर्गा सप्तशतीमे सेहो आद्य शक्तिद्वारा स्वयमकेँ तीन भागमे विभक्त करबाक कथा कहल गेल अछि । आद्य शक्तिक एहि तीन रुप मे महाकाली, महालक्ष्मी आ महासरस्वती केर नामसँ संसारभरि मे जानल जाएत अछि । मान्यता अछि जे सरस्वती बसन्त पञ्चमीक दिन प्रगट भेल छलीह ।
भगवान् विष्णुक कथा अनुसार ब्रह्मा जी सरस्वती देवीक स्वयम् आह्वान कएने छलाह । सरस्वती माता प्रकट भेलाकबाद ब्रह्माजी हुनका अपन वीणासँ सृष्टीमे स्वर भरबाक अनुरोध कएने रहथि । माता सरस्वती जखने वीणाक तार केँ छुलन्हि, ओहिसँ शब्द निर्माण भेल आर ई शब्द संगीतक शब्द सुरमे प्रथम स्वर रहल अछि । एहि ध्वनिसँ ब्रह्मा जीक मुखसृष्टिमे ध्वनिक सञ्चार होबए लागल । हावाके, सागरके, पशुपंक्षी आ अन्य जीवके वाणी भेटल । नदीसभमे कलकल ध्वनि फुटए लागल । कहल जाइत अछि एहिसँ ब्रह्मा जी अतिप्रसन्न भेल छलाह । ओ माता सरस्वतीकेँ वाणीक देवीकेर नामसँ सम्बोधित करैत बागेश्वरी नाम देलन्हि । माता सरस्वतीक एकटा नाम ईहो अछि । सरस्वती माताके हाथमे वीणा होयवाक कारण हुनका वीणापाणि सेहो कहल जाएत छन्हि । ज्ञान एवं वाणी बिना जीवलोकक कल्पना करब असम्भव अछि ।
सरस्वतीक पूजन विधि
भगवती सरस्वतीक उपासककेँ माघ महीनाक शुक्ल पक्षक पञ्चमी तिथि केँ पूजा करबाक चाही । एहिसँ एकदिन पूर्व माघ शुक्ल चतुर्थीक दिन बागुपासक संयम करबाक चाही । नियमकेँ अनिवार्य रुपसँ पालन करबाक परम्परा रहल अछि ।
पञ्चमी केँ स्नान कएलाक बाद कलशकेर स्थापनाक संग बागदेवीक आह्वान आ फेर विधिपूर्वक पूजा करी । पूजन कार्यमे स्वयम सक्षम नहि भेलापर कोनो ज्ञानी कर्मकाण्डी वा कुलपुरोहितक दिशा निर्देशसँ पूजन कार्य सम्पन्न करी ।
पूजा करैतकाल माताक प्रतिमा वा फोटोके आगामे रखबाक चाही । कलश स्थापनाके बाद गणेशजी तथा नवग्रहकेर सेहो विधिवत् पूजा केनाय उत्तम मानल जाएछ । देवी सरस्वती स्वेत वस्त्र धारण करैत छथि । ताहि सँ हुनका स्वेतवस्त्र देल जेबाक चाही । पीयर रंगक फल आ बुनियाँक विशेष प्रसादीक रुपमे चढाओल जाएत अछि ।
सरस्वती मन्त्रक महत्व
या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता ।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ॥
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता ।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥१॥
 
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमांद्यां जगद्व्यापनीं ।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यांधकारपहाम् ॥
हस्ते स्फटिक मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम् ।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥२॥
सरस्वती देवीक आराधना लेल यैह प्रमुख मन्त्र अछि । सरस्वती पूजामे मन्त्रक सेहो बहुत महत्व रहल अछि । एहि मन्त्रके जाप करबाक चाही । अष्टाच्छर मन्त्र सेहो बहुत महत्वपूर्ण अछि । ई मन्त्र ४ लाख बेर जपलासँ मन्त्रक सिद्धी होयबाक मान्यता अछि । मन्त्र एहि प्रकारक अछि –
श्रीं ह्वीं सरस्वत्यै स्वाहा ।
अगम ग्रन्थमे ईहो मन्त्रक चर्चा अछि । ओ मन्त्र एहि प्रकार अछि –
अं वाग्वादिनि वद वद स्वाहा ।
ई मन्त्रसँ सिद्धी प्राप्त होएत अछि । ब्रह्मवैवर्त पुराणमे हुनकर एकटा ईहो मन्त्र अछि ।
ऊँ ऐं ह्वीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै बुधजनन्यै स्वाहा ।
महर्षि व्यासक व्रतोपासनासँ प्रसन्न भऽ कऽ सरस्वती कहने छलीह हमर प्रेरणासँ रचल रामायणकेँ पढू । ओ हमर शक्तिक कारणसँ सभ काव्यक सनातन बीज बनि गेल अछि । ओहिमे श्रीराम चरित्रक रुपमे हम साक्षात् मूर्तिमती शक्तिक रुपमे प्रतिष्ठित छी ।
भगवती सरस्वतीक एहि अदभुत विश्वविजय कवचक धारणा कएलाक कारण व्यास, भारद्वाज, जैगिषवय सहितक मुनिसभ सिद्धि पेने छथि । भगवती सरस्वतीक उपासना कालीक रुपमे कएलाक कारण कालीदास चर्चित भेल छलाह

भगवती सरस्वती विद्याक अधिष्ठात्री देवी छथि आर विद्याकेँ सभ धनसँ प्रधान धन कहल जाएत अछि । विद्येसँ अमृतपान कएल जा सकैत अछि । विद्या आ बुद्धिक अधिष्ठात्री देवी सरस्वतीक महिमा अपार अछि । देवी सरस्वतीकेर द्वादस नाम छन्हि । जिनकर तीनू सन्ध्यामे पाठ कएलासँ मनुष्यक जीहपर विराजमान भऽ जाएत छथि ।

सरस्वतीक ई श्लोक १ सय १ बेर पाठ कएलासँ सभ प्रकारक बाधाक नाश होएत अछि । श्लोक एहि प्रकारे अछि –
सरस्वती महाभागे विद्ये कमललोचने ।
विद्या रुपे विशालाक्षी विद्यं देही नमोस्तुते ॥
या देवी सर्वभूतेषु विद्यारुपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमोः नमः ॥
पीयर रंगक कपडा पहिरकऽ बसन्त पञ्चमीसँ एक महिनाधरि मन्त्र जाप कएलासँ बुद्धि प्रखर आ विलक्षण होएत अछि । मानसिक तनाव दूर होएत अछि । आर आत्मिक शान्ति भेटैत अछि ।
कुमारि पूजनक परम्परा
बसन्त पञ्चमीक दिन २ सँ लऽ कऽ १० वर्ष धरिक कुमारि कन्याकेँ पीयर भोजन आ पीयर रंगक वस्त्र दान कएल जाएत अछि । हाथ-पयर धोआ कऽ आसनपर बैसा देल जाएत अछि । फेर गन्ध, पूष्प, माला आदिसँ हुनका पूजन कएल जाएत अछि ।
शत्रुकेर नाश, दीर्घायु आर संकट निवारणक लेल दू वर्षक कुमारि, अकाल मृत्यु निवारण आ सन्तान प्राप्तीक लेल तीन वर्षक कुमारिकेँ, धनागम वा कुशाग्र बुद्धिक लेल चारि वा पाँच कुमारि, यशप्राप्ती, विद्यार्थी वा राज्यफल प्राप्तीक लेल ६ वर्षक कुमारि आर सौभाग्य प्राप्ति तथा सर्वशान्तिक लेल ७ सँ १० वर्षधरिक कुमारिकेँ भोजन कराओल जेबाक परम्परा रहल अछि ।