मोन पड़ि गेला अछि बाबा बैद्यनाथ – देवाधिदेव महादेव केर ओ विशिष्ट स्वरूप जे हमरा सब केँ सदिखन भोला बनि सब मनोकामना पूर करैत छथि।
हमरा तँ विद्यापतिक रचना ‘उगना रे मोर कतय गेलाह’ – एहि मे सेहो मात्र ‘बाबा बैद्यनाथ’ प्रति लक्षित भाव उभरैत देखाय दैछ। कहल जाएत छैक जे महाकवि विद्यापति स्वयं तरह-तरह केर भक्तिभाव सँ भरल रचना सब लिखैथ आर गेबो करैथ। महेशवाणी, नचारी, समदाउन, प्राती, साँझ, निर्गुण – कतेको प्रकारक विद्यापतिक रचना आइ धरि परंपरागत रूप सँ मिथिलावासी पुरुख वा महिला समाज सामूहिक रूप सँ गबैत आबि रहल अछि। विद्यापतिक यैह कविभाव आ गायन सँ प्रभावित लोकमानस ई मानैत अछि जे महाकविक सेवक ‘उगना’ जे छलाह ओ स्वयं महादेव छलाह।
किंवदन्ति मे सब कथा-गाथा यैह कहैत अछि जे उगना विद्यापतिक भक्ति आ समर्पणक कारणे हुनकर चाकर बनिकय रहैत छलाह जे सामान्य भक्तराज सब केँ आइयो भेटैत देखल जाएछ। बाबा बैद्यनाथक मार्ग मे अजगैबीनाथ धाम सँ देवघर धरि आइयो एक सँ बढिकय एक विद्यापति प्रत्यक्ष देखल जाएत छथि। आर, हुनका सब संग हुनकर भक्ति व समर्पण सँ प्रभावित कतेको रास शिष्य, मित्र, भक्त आदि चलैत रहैत छथि। हम एहि गीति-रचनाक शब्द मे किछु एहने भाव देखैत छी जे बाबा बैद्यनाथक अनन्य सेवक विद्यापति रहल छलाह आर एहि बाट मे हुनका सेवक उगना सेहो भेटल छलन्हि। जेना बैद्यनाथक मार्ग मे अनेको प्रकारक लीला देखाएत रहैत अछि, तहिना उगना लीलारूप महादेवक छलाह एहि मे हमहुँ सहमत छी। तखन न विद्यापति उगना केँ विलुप्त भऽ गेलापर कहैत छथिन….
उगना रे मोरा कतय गेलाह – कतय गेला सिव किदहु भेलाह
भाँग नहि बटुआ रुसि बैसलाह – जोहि हेरि आनि देल हँसि उठलाह
जे मोरा कहता उगना उदेस – ताहि देबओं कर कंगना ओ वेस
‘नन्दन वन’ बीच भेटला महेस – गौरी मन हरखित मेटला कलेस
भन विद्यापति उगना सँ काज – नहि हितकर मोरा त्रिभुवन राज
उपरोक्त भजन केर एक-एक पाँति हमरा प्रत्येक कमरथुआ केर भावना सँ मिलैत बुझा रहल अछि। पूछू केना – कान्हपर गंगाजल सँ भरल बटुकि सहितक भारी कामर लेने खाली पयरे कंकड़-पाथर सँ भरल बाट धेने टूटल शरीर आ कष्ट मे पयर – विलखैत मन बाबापर ध्यान धेने कमरथुआ (काँवरिया) चलल जा रहल अछि। सब कियो बाबा केँ अपना-अपना मनक हिसाबे याद करैत रहैत अछि जे कोना जल्दी बाट बितय आर बाबाधाम पहुँचि जाय, नल निस्तार करी आर मनोकामना लिंग रावणेश्वर सँ अपन मनक विभिन्न मांग हेतु आशीर्वाद ग्रहण कय सुखी भऽ फेर सँ गृहस्थी मे लौटी। यैह मूल भावनाक संग लाखों-करोड़ों श्रद्धालू बाबाधाम जाएत रहैत छथि। मिथिलावासीक एहि पवित्र तीर्थस्थल सँ अतिशय लगाव छन्हि। कहलो जाएत छैक जे एक बेर भैरव जे महादेवक सेवा मे सदिखन लागल रहैत छलाह से घूमैत-घामैत मिथिला आबि गेल रहैथ आर एतुका लोकक हुनक ईष्टदेव महादेव प्रति समर्पण देखि ओ बाबाधाम बिसैरि किछु दिन मिथिले मे रहि गेल छलाह। ओ एहिठामक मन्दिर-मन्दिर आ मठ आदि मे घूमि-घूमि महादेवक नचारी सब सुनैत आनन्द मे रहैत छलाह। अन्त मे बाबा हुनका सपना मे कहलखिन जे भैरव हमरा एतय असगरे छोड़ि अहाँ मिथिलावासी संगे ओतहि रैम गेल छी, झारिखंड नन्दन-वन मे कामोद लिंग अपूजित अछि। अहाँ हिनका सब केँ बाट देखा दियौन। ई सब ओतय धरि पहुँचि साधनापूर्वक हमर पूजा करैथ। सब मनोकामना पूर हेतनि।
बस! फेर कि छल! भैरव बाबा मिथिलाक सब सँ मजबूत ‘कामरथी ब्राह्मण’ सँ बाबाक पूजा हेतु प्रेरणा देलनि आर शुरू भऽ गेल बाबाधामक कामर सहितक यात्रा, ताहि सँ यात्रा कएनिहार कहाय लागल ‘कमरथुआ’। अजगैबीनाथ सँ जल भरबाक छल। कामर निर्माण हेतु भैरव अपने सँ सब केँ बाँस काटिकय – छीलिकय – उचित नापक काटिकय पुनः डोमक हाथे कामर बनबाकय आर उत्तरवाहिनी गंगा सँ गंगाजल भरल गगरी लऽ कय आगू-आगू रस्ता देखबैत कठिन जंगल आर पहाड़ होएत झारिखंडक ओहि नन्दन वन धरि गेलाह जतय बाबाक कामोद लिंग अवस्थित छल। आर ओतय बाबाक अति प्रिय गंगाजल सँ अभिषेक भेल। पुनः बाबाक दोसर अति प्रिय बेलपात चढाओल गेल। आर सब कमरथुआक मनक कामना बाबा पूर कएलनि। तऽ विद्यापतिक एहि क्रन्दन मे बाबाधामक यात्राक वर्णन भेल तेना हमरा बुझाएत अछि। आर एकर दोसर अर्थ ईहो ओहिना स्पष्ट अछि जे उगना लेल ओ हाक्रोश पारि रहला अछि से उगना महादेवक लीलारूप चाकर हुनका संग रहैत छलाह आर जे कठिन समय हुनक प्यास जे बाबाधाम केर बाट मे खूब लगैत अछि से मिझौने छलाह, ओम्हर गंगाजलक नियमित सेवन कएनिहार विद्यापति ई बात पकैड़ लेलनि जे उगना साधारण जल नहि बल्कि गंगाजल पियौलक अछि आर एना मे कहल जाएछ जे उगना हुनका अपन असली रूप सेहो सशर्त देखौलनि। वैह शर्त जे विद्यापति केँ ई रहस्य केकरो लग उजागर नहि करबाक छल, मुदा खोरनाठी उसाहैत उगना केँ दबारैत अपन पत्नी केँ ‘हाँ-हाँ! ई कि कय रहल छी? साक्षात् महादेव थीक उगना, तेकरा पर अहाँ…’ आर एतबे कहैत उगना अन्तर्धान भऽ जाएछ। ताहि घड़ीक विलापक रूप मे उपरोक्त गान ‘उगना रे मोर कतय गेलाह’ थीक। एकर शब्द मे ‘नन्दन वन बीच भेटला महेस – गौरी मन हरखित मेटला कलेस’ – ई जे पाँति अछि ओ प्रत्यक्षतः बाबा बैद्यनाथ केँ मात्र चिन्हबैत अछि।
मिथिला सँ आइयो बारहो मास लोक बाबा बैद्यनाथाक दर्शन हेतु जाएछ। विद्यापतिक रचना केँ खूब मोन सँ गबैत अछि।