१. पथ हेरथि आकुल राधा….!
पथ हेरथि आकुल राधा… !
भेल कुरुक्षेत्रक कर्मभूमि आब रीति डगर लेल बाधा !!
पथ हेरथि आकुल राधा…. !
कौरव दलमे रास महारथी भरि रहलथि हुंकार
कतेक दिवस धरि राधा बिचुकथि सुनि सुनि धनु टंकार
कृष्णक संगमे धनुष बाण नहि कोना परेमक व्याधा ?
पथ हेरथि आकुल राधा…. !
कतेक दिवस अचकेमे बीतल हरिकेँ नहि परवाहि
ओ धर्मक उपदेश बचै छथि बरु राधा हिय आहि
टुकटुक वंशीवट दिशि ताकथि फुलल साध्य ने साधा
पथ हेरथि आकुल राधा…. !
परम पवित्रा छथि ई प्रेयसि लाँघल नहि मर्याद
आँखि नोर नहि भाव ठोर नहि चिंतन – नहि अवसाद
मात्र आश एक बेरि दरश लेल बयस बितौलनि आधा
पथ हेरथि आकुल राधा…. !
उपहासक परिसरमे रहितहुँ नेही मोनने अधीर
व्यंग्य बज्र किनको मुख निकसल किओ परिहासक तीर
धवल प्रेम बाटक ई कंटक तें नहि हर्ष -विषाधा
पथ हेरथि आकुल राधा…. !
२. नव-बरखक जर्जर जनजीवन
( सन १९७४ ईस्वीमे रचित काव्य )
– स्वर्गीय कालीकान्त झा ‘बूच’
नव बरखक जर्जर जनजीवन!
छिटकि-छिटकि क’ एहि अगहन सँ
खदकि रहल बिनु अछ तक अदहन
तेहत्तरिक त्रिशूलक व्रण पर
चौहत्तरिक लवण छिड़ियायल
बाँकी छल किछु बचल प्राण त’
ल’ क’ कफ़न मरण चलि आयल
कयलहुँ अपने चर्म चक्षु सँ
हम अपना पिण्डक शुभदर्शन
आगू अछि जेठक अकाल त’
माघक बाघ नंगेटि रहल अछि
पूसक तिलसंक्रांति काल मे
शकरकंदो नहि भेटि रहल अछि
गामक गाम मसान बनत की
जरि जायत एहि बेरुक मधुवन?
टालक टाल नार परती पर
शीशक शीश दोकान गेल रे
खखरी अछि बाँचल दलान दिशि
आँगन सभटा धान गेल रे
हमरो हिस्सा लोढि लेल के
ताकि रहल चिंतातुर चितवन
नव-बरखक जर्जर जनजीवन !!
३. बिसरब कोना ओ तिल संक्रान्ति ?
एहिठां ओहेन पानि ने शीतल
नेनपनक संक्रान्ति जे बीतल
सकाले बड़का पोखरिमे डुमकी
तिलबा के आशामे गुमकी
मकर राशिमे सुरूज आबथि
जड़ि तिलाठ सभकेँ गरमाबथि
आँगनमे सेहो शीतलहरी
बूढ़ सूढ़ नहि निकसथि बहरी
अहाँ नहायब दिवस दुपहरी
बाबा अहीं दुआरिक प्रहरी
ई कहि पुनि पोखरिमे चुभकी
चुड़लायक संग गूड़क सुभकी
पेट खराब होयत औ बौआ
कांव कांव धुन बाजय कौआ
किछु दाना हमरो दिश फेकियौ
चखा चखा क’ अपनो चाखियौ
दहीक तौला धएल पड़ल छै
आब ने खेबै मोन भरल छै
मायक डंटा देखि ससरलै
देखू ने बौआ सेज पसरलै
लौहनगरने उत्तरायण सन
धनुए राशिमे जड़ल पड़ल मन
उपटल प्रेममे लपटल भ्रान्ति
बिसरब कोना ओ तिल संक्रान्ति ?
हेरि रहल छी माटिक गेही
चलू मिथिलेमे भेंटत सिनेही !
४. भरल मिथिला के नयना ( उदासी )
गमकल अवधपुर के अंगना हे भरल मिथिला के नयना
सिया हाथ सौभाग्यक कंगना हे आँखि डबडब सुनयना !!
अतुलित आशीष धरू खोइँछामे रानी
हे मैथिली बनि गेलहुँ अवधक बहुरानी
विदा हेती मिथिराजक अयना हे हहरि रहल मधुर वयना !
सिया हाथ सौभाग्यक कंगना हे आँखि डबडब सुनयना !!
चिंतक विदेह नोरधार केँ दबौलनि
जामाता रघुवरकेँ दर्शन सिखौलनि
फाटल करेज दाबि मयना हे बेटी मिलबथि ने नयना !
सिया हाथ सौभाग्यक कंगना हे आँखि डबडब सुनयना !!
शेष तीनू कन्या जेठकी केँ निहारथि
सीतासंग अनुचरी बनि रहबनि बिचारथि
पालकी दुआरि कोमल शयना हे रोकि पाओल ने नयना
सिया हाथ सौभाग्यक कंगना हे आँखि डबडब सुनयना !!
अचरज ने इएह सत्य चलियौ नवल घर
सुनिते विभोर भेलथि मर्यादित सहचर
दबलो पर भावना दबै ना हे भरल रामहु के नयना
सिया हाथ सौभाग्यक कंगना हे आँखि डबडब सुनयना !!
५. मिथिलाक नदी ( गीत )
गंगातट बैकुण्ठक धाम औ चलू दिनकर नगरिया
अहूठाम मिथिले आयाम औ देखब घाट सिमरिया !
ओम्हरेसँ होइत चलब महमह झमटिया
हेरब कोकिल आसन अंत खनक पटिया
विद्यापतिनगर पुण्यधाम औ कात गंगे डगरिया !
अरुण तरुण बुरही गंडक तट विराजथि
बागमती लहरि देखि आरसी बिचारथि
सुमनक सर्जनसँ साकाम औ बान्ह धारक महरिया !
कमला बलान पसरि गेलथि मोरंगधरि
रंगबिरहा पानि भरल मिथिला के सुरसरि
करेह कछेर साँझुक विराम औ ई स्मृतिके भरिया !
कोसी’के जल खहखह भोरे नहेबै
महानन्दा देवी केँ दीपे देखेबै
लक्ष्मीनाथक ओलती निष्काम औ हेरब मंडन बहरिया !