साभारः डा. देवशंकर नवीन केर हिन्दी मे लिखल ब्लागपोस्ट
अनुवादः प्रवीण नारायण चौधरी
गीतिकाव्य और विद्यापति पदावली
विद्यापतिक सम्बन्ध मे जनश्रुति केर आधार पर तरह-तरह केर धारणा सब बना लेल गेल अछि। धारणा बनबैत काल लोक अक्सरहाँ बिसैर जाएत अछि जे जाहि बात सब केँ ऐतिहासिक दस्तावेज केर आधार पर प्रामाणिक रूप सँ जानल जा सकैत अछि, ओकरा लेल जनश्रुति केर सहारा लेनाय नीक बात नहि थीक। सब जनश्रुतिय अपन प्रारम्भिक स्वरूप मे एक घटना या एक कथा टा रहल होयत और ईहो सम्भावना शत-प्रतिशत अछि जे ओहि मे सँ कतेको कथा सब लोकरंजन लेल कथावाचक द्वारा गढ़ल सेहो गेल होयत, जेकर आधार विशुद्ध कल्पना टा रहल होयत। विद्यापति केर सम्बन्ध मे जनश्रुति केर आधार पर राय बनाबय सँ नीक अछि जे हम हुनकर रचना संसार केर आधार पर हुनका बारे मे अपन राय सुनिश्चित करी।
महाकवि विद्यापति अपन जन्म और मृत्यु केर सम्बन्ध मे तिथि इत्यादि केर कतहु कोनो उल्लेख नहि कएने छथि। राजा गणेश्वर, कीर्ति सिंह, शिव सिंह… कतेको राजादिक राज्याश्रय मे ओ अपन जीवन बितौलनि आर साहित्य सृजन केलनि। वैह राजा लोकनिक शासन काल और विद्यापति केर रचना सब मे अंकित सूचना केर आधार पर ताल-मेल बैसाकय विद्वान सब तर्क-वितर्क केलनि आर ई निर्धारित केलनि जे सन् 1350 सँ 1360 केर बीच हुनकर जन्म और सन् 1438 सँ 1448 केर बीच निधन भेल हेतनि। मिथिला (बिहार) क्षेत्र केर बिस्फी गाम मे हुनकर जन्म भेलनि। हुनकर पिताक नाम गणपति ठाकुर तथा मायक नाम गंगा देवी छलन्हि।
साहित्य मे विद्यापतिक प्रवेश कथाकार केर रूप मे भेलनि। ‘कीर्तिलता’ हुनकर पहिल कृति थीक। एकर बाद ‘कीर्तिपताका’, ‘पुरुष परीक्षा’, ‘भू-परिक्रमा’, ‘गोरक्ष विजय’, ‘लिखनावली’, ‘विभागसार’, ‘मणिमंजरी’, ‘गंगा वाक्यावली’… कतेको ग्रन्थ ओ विभिन्न पहलु और भिन्न-भिन्न विधा सबमे लिखलनि। ओना ई तथ्य से बड़ मजबूत तर्कक संग सोझाँ आयल अछि जे ‘कीर्तिलता’ महाकवि विद्यापति केर प्राथमिक रचना नहि थीक। बहुत बाद मे सामाजिक आग्रह केर कारण ओ बेमन सँ एहि ग्रन्थ केर रचना कएलनि। ‘कीर्तिपताका’ तँ सम्पूर्ण पुस्तको नहि थीक। मुदा एहि तथ्य पर फेर कहियो विचार कैल जा सकत। एकर अलावे विद्यापति पदावली जेहेन एकटा बड पैघ भण्डार सामने अछि, जाहि मे विद्यापति केर अलग-अलग कतेको छवि सब अपन विराट स्वरूप मे देखाएत अछि। दुर्योगे कहू जे एहेन विराट व्यक्तित्व और अजस्र प्रतिभासम्पन्न रचनाकार केँ कोनो पंक्ति विशेष और रचना विशेष केर सतही जानकारी हासिल कयकेँ लोक सब राय बना लेलनि जे विद्यापति दरबारी कवि छलाह, शृंगारिक कवि छलाह, शैव छलाह, शाक्त छलाह, वैष्णव छलाह…।
सचाई थीक जे हुनकर गीत सब मे दरबारी संस्कृति नहि, जनताक आत्मा केर आवाज अछि। यैह आवाज हुनकर गीत सबमे अपन विविध रूप मे दर्ज भेल अछि और अनुशीलन केर दौरान समग्रता मे सर्जक केर विराट छवि उभरैत अछि। एहि आलेखक उद्देश्य विद्यापति केर सम्बन्ध मे बनल यैह पूर्वाग्रह सबसँ मुक्त होयब आर हुनकर वास्तविक पक्ष केँ जानबाक प्रयास अछि।
संस्कृत, अवहट्ट तथा मैथिली – तीन भाषा मे विद्यापति केर रचना उपलब्ध अछि। भू-परिक्रमा, पुरुष परीक्षा, लिखनावली, शैव सर्वस्वसार, गंगा वाक्यावली, विभागसार, दान वाक्यावली, दुर्गा भक्ति तरंगिणी, गया पत्तलक, वर्ष कृत्य, गोरक्ष विजय, मणि मंजरी, व्याड़ी भक्ति तरंगिणी, कीर्तिलता, कीर्तिपताका तथा किछु अवहट्ट पद्य हुनकर प्रमुख रचना सब थीक। लेकिन पदावली मे हुनकर जे विराट् रूप स्पष्ट होएत अछि, ओहेन संभवतः आन रचना मे नहि।
पदावली केर भाषा मैथिली अछि, जे ओहि समयक मिथिलाक आम जनताक भाषा छल। संस्कृत भाषाक प्रकाण्ड विद्वान महाकवि विद्यापति केर एहि गीत सब मे भाषा, शब्द, छन्द, गीतात्मकता, लयात्मकता, ताल आदिक श्रेष्ठतम रूप देखाएत अछि और कविक बहुमुखी प्रतिभाक उत्कृष्ट रूप निखरैत अछि। विचार केर क्रम मे हम गीतिकाव्य परम्परा मे विद्यापतिक योगदान, गीतिकाव्य केर रूप में विद्यापति पदावलीक विशेषता, विद्यापति पदावली मे भक्ति और शृंगार केर द्वन्द्व, विद्यापति पदावली केर भाषा, और परवर्ती काव्यधारा मे विद्यापति केर प्रभाव पर गौर करब तऽ बात बेसी स्पष्टता सँ हमरा लोकनिक सोझाँ अबैत अछि।
गीतिकाव्य केर परम्परा और विद्यापति
साहित्य और काव्य केर अन्य उपभेदक जेकाँ गीतिकाव्य केर सेहो कोनो सर्वमान्य परिभाषा स्थिर करब कठिन अछि। आचार्य लोकनिक अभिमतक आधार पर गीतिकाव्य केर विशेषता एतेक तय रहैत अछि जे छन्दबद्धता, गीतिमयता, संक्षिप्त भावनाक अभिव्यक्ति तथा घटना प्रवाह केर त्वरा ओकर प्रमुख घटक होएत अछि। अर्थात् गीतिवाद्यक संग गायल जायवला छन्द काव्य गीतिकाव्य होयत। लेकिन ईहो ध्यान रखबाक अछि जे एक श्रेष्ठ कलाकार, इतिहास ग्रन्थ केर पाठ केँ सेहो वाद्य यन्त्रक संग गाबि देताह, ओ गीतिकाव्य नहि होयत। ओहिमे भावनात्मक अनुभूति केर चित्रण सेहो होयबाक चाही आर ओहो इकहरी अनुभूति या स्थिति केर चित्रण…। अर्थात् एहेन भावनात्मक अनुभूति जाहिमे संक्षिप्तता और मानवीय भावना केर रंग तथा गति हो। संक्षिप्तता एकर अत्यन्त आवश्यक बन्धन होएछ। गीति-वाद्य केर साथ गायल जायवला महाकाव्य, गीतिकाव्य नहि कहाओत। एहि दुइ शर्तक संग त्वरा अर्थात् शीघ्रता सेहो बहुत आवश्यक अछि। घटनाप्रवाह केर त्वरा। शीघ्रता बहुत नीक चीज नहि थीक। परन्तु अत्यन्त संक्षिप्त भावना केर अभिव्यक्ति होयबाक कारण गीतिकाव्य वास्ते त्वरा बहुत आवश्यक शर्त भऽ जाएत अछि। हीगेल द्वारा गीतिकाव्य केर दुइ आवश्यक शर्त कहल गेल अछि। हुनका मुताबिक गीतिकाव्यक पूरा छन्द मे सम्बद्धता अनिवार्य अछि। अर्थात् भावाकुलता और प्रभाव केर समान स्थितिक अटूट निर्वाह होयबाक चाही। एकरा बिना प्रभावान्विति क्षरित होएत छैक। हिनकर दोसर शर्त छन्हि, कथन और घटना-प्रवाह मे त्वरित परिवर्तनक स्थिति। अर्थात् नव बात कहिकय ओकरा तुरन्त पूर्वकथित हिस्सा सँ जोड़ि देनाय और एहि सँ रसोद्रेक उत्पन्न कय प्रभाव केँ उत्कर्ष देनाय। एक सफल गीतिकार केर कौशल यैह थिकैक।
क्रमशः…..