भाइ रे! पैघ बने लेकिन पैघत्वक अर्थ बुझे!!

pnc-profileविचार– प्रवीण नारायण चौधरी

भाइ रे! हम बहुत रास पैघ लोक केँ देखलियैक, ओकर पैघत्व निर्वाह करबाक तरीका केँ देखलियैक, दोसर कियो पैघ मानलक आ कि नहि मानलक, अपना केँ पैघ मानैत हम सच्चे बहुतो केँ देखलियैक।
 
भाइ रे! शाश्वत सत्य यैह छौक जे पैघ लोक अपना मानि लेला सऽ नहि बनैत छैक। पैघ बनबाक लेल पैघ-पैघ काज निरन्तर करैत रहय पड़ैत छैक। आर स्वतः ओ अपन पैघ कर्मठता सँ पैघ कहाएत छैक।
 
भाइ रे! कतेक लोक ततेक पैघ भऽ जाएत छैक जे अपन जैड़ केँ बिसैर जाएत छैक। शुरु-शुरु मे तऽ ओकरा एना लगैत छैक जेना ओ सच्चे आब ततेक पैघ भऽ गेल जे अपन जैड़ मे कोना उतरत, जैड़ तऽ ततेक अंघौस-मंघौस सँ भरल छलैक जे आब ओ छीप पर सँ कोना उतरत…. मुदा….
 
भाइ रे! ओ अपनहि अभिमानी पैघत्वक कारण छीप पर लहराएत अकासी हवाक आनन्द मे हिलैत अपनहि जैड़ प्रति घृणाक भाव सँ भरल ऊपरे सँ आरो ततेक ऊपर उड़ि गेल जे ओकर नामोनिशान मेटा गेलैक!
 
भाइ रे! हम पचासो बेर कहने हेबौक – दू टा बड पैघ उदाहरण! एकटा त ओ जेकरा मुगल शासक सब राजधानी आगरा (दिल्ली) लऽ गेलैक, खूब चास-बास दय केँ ओकरा राखलकैक चाकर बनाकय… कन्हा कुकूर माँड़हि तिरपित, ओ बिसैर गेल अपन मिथिला केँ…. आर….
 
भाइ रे! ओ जे गेल छल काठमांडू राजाक घर यज्ञ करेबाक लेल पंडित बनिकय, ओकरो भेटल रहैक खूब रास दान आ रहबाक लेल जमीन-जथा, ओहो रहि गेल छल ओत्तहि… आर कालान्तर मे बनि गेल प्रवासी मिथिलावासी….
 
भाइ रे! उपरोक्त दुइ ‘ब्रजस्थ मैथिल’ आर ‘नेवारी मैथिल’ केर हाल तोँ देख ले आइ। पैघत्व खराब नहि, पैघ बनिकय जैड़क महत्व बुझैत रहब आवश्यक छैक। आइ तोँ दाँत खिसोरिकय बच्चा सब संगे ‘तेर-को, मेरे-को….’ आ ‘ए बाबू! हेर-हेर! अंकल आउनू भो’ बजैत छँ…. से याद रखिहें…. ऊपरका दुनू टा सबसँ पहिने यैह भूल केने छल…. बिसरल छल अपन भाषा…. आ फेर बिसरायल छलैक अपन भेष आ तैँ बिसैर गेल अपन देश!
 
भाइ रे! एतबी बात मोन रखिहें! पैघ बने, हमरो शुभकामना छौक। मुदा ततबे पैघ नहि बनि जो जे पुरखा गेलौक मणिपुर – ओतय मैथिली सँ भाषाक जन्म दय देलकौक जे आइयो ओतुका राजभाषा ‘मैति’ थिकैक। ओ तोहरे भैयारी १९९२ मे भारतक संविधानक आठम अनुसूची मे नाम लिखा लैत छौक…. आर तूँ… हाहाहा! २००४ मे! तैयो तोरा आत्मसम्मानक बोध नहि – ओ राज्य बनि गेलौक देख ले, तोहर कतहु भूगोल नहि।
 
भाइ रे! कतेक बनमे आरो बेवकूफ, रहमें लिल्लोह अपन फूसिक बुधियारी मे? आबो सम्हर! आबो सम्हर!! लऽ ले संकल्प १४ जनवरी तिला संक्रान्ति केँ।
 

हरिः हरः!!