घनश्यामक प्रेम गीत

ghanshyam-jha3।। प्रेम गीत ।।

– घनश्याम झा, राघोपुर, मनीगाछी, दरभंगा

प्रेमक डोरि सँ बान्हि गैलौक,
कि कहु हमहु किछु पावि गेलौक ।

प्रिय केर मधुर मुस्कान मोहि लेलक ,
ह्रदय  केर विभोर कय झुमा देलक ।

गुलाबक पंखुरि सनक ठोर आहाँ केर ,
शावक मृग सनऽक नयन अछि ।

कोयलि सनक मिठगर बोली ,
बजतैह मधुर रस घौलि देलक ।

पुनमक चाँद जकाँ मुख मंडल ,
चंद्रमोक मन झकजोरि देलक ।

हम त छी प्रेमक प्यासल भौंडा,
अपन प्रेमक रस में सराबोर  क’ त दिय।

आब कतैक दिन डरायब अहि संसार सँ,
आडम्बर  आ सऽब बंधन सँ ।

प्रेमक आरक्त कपाल पर ,
प्रीतक गीत लिखय त दिय ।

कखन तक हे प्रिय अभिलाषाक ,
अहिना नित नित दमन करब ,
आब सहलौ नञ जायत प्रिय ,
असगर मे आह भरल ।

सात जन्मक डोरि सँ हे प्रिय ,
आब त सुच्चा नाता जोडि त लिय ।

घनश्यामक प्रेम गीत केर प्रिय ,
सहर्ष  स्वीकार क त’ लिय ।