।। प्रेम गीत ।।
– घनश्याम झा, राघोपुर, मनीगाछी, दरभंगा
प्रेमक डोरि सँ बान्हि गैलौक,
कि कहु हमहु किछु पावि गेलौक ।
प्रिय केर मधुर मुस्कान मोहि लेलक ,
ह्रदय केर विभोर कय झुमा देलक ।
गुलाबक पंखुरि सनक ठोर आहाँ केर ,
शावक मृग सनऽक नयन अछि ।
कोयलि सनक मिठगर बोली ,
बजतैह मधुर रस घौलि देलक ।
पुनमक चाँद जकाँ मुख मंडल ,
चंद्रमोक मन झकजोरि देलक ।
हम त छी प्रेमक प्यासल भौंडा,
अपन प्रेमक रस में सराबोर क’ त दिय।
आब कतैक दिन डरायब अहि संसार सँ,
आडम्बर आ सऽब बंधन सँ ।
प्रेमक आरक्त कपाल पर ,
प्रीतक गीत लिखय त दिय ।
कखन तक हे प्रिय अभिलाषाक ,
अहिना नित नित दमन करब ,
आब सहलौ नञ जायत प्रिय ,
असगर मे आह भरल ।
सात जन्मक डोरि सँ हे प्रिय ,
आब त सुच्चा नाता जोडि त लिय ।
घनश्यामक प्रेम गीत केर प्रिय ,
सहर्ष स्वीकार क त’ लिय ।