मिथिला राज्य कोन भूतक नाम थीक?
(मैथिलकेर भ्रम स्थिति)
– प्रवीण नारायण चौधरी
मिथिला राज्य के माँग जल्दी सभक समझमें सहीमें नहि अबैत छैक, एहि मर्म के हमहुँ बहुत देरी सऽ बुझलहुँ। जेना एखनहु कतेको युवा जाहिमें विशेषरूपसँ अपन पैर पर ठाड्ह आत्मविश्वास सऽ भरल लोक मिथिला राज्यक माँगके विरोध करैत अछि। ओहि युवा के संसार में कतहु राखि देबैक तऽ फिट भऽ जायत ओ अपन मैथिलत्वके जोतिके खाइत अछि मुदा मिथिलाक अस्मिता लेल ओकरामें कोनो खास सोच नहि छैक। जस्टीफिकेशन लाख उपलब्ध करा देत, लेकिन कहियो इहो सोचैत जे आखिर हमरा में कोन माटि-पानिक शक्ति प्रवेश केलक जेकर कमाइ हम खा रहल छी, से सभटा बिसैर उलटे पढौनाइ चालू करत आ छोट— -पैघ सभटा बिसैर बस बुद्धि बघारब शुरु कय देत! देखलियैक नऽ जखन बिहार गीत बनेलक तऽ २००-२५० वर्षक ध्यान रहलैक आ लाखों-करोडों वर्षक इतिहासके धनी मिथिलाके दरकिनार कय देलक बिहार सरकार! नेपाल में देख लियौक जे मधेस चाही मुदा मिथिलाक पहचान लेल कोनो विचार नहि! बस ढूइस लडयवाला बलजोरी थोपयवाला कहानी सभ गढल जा रहल अछि। मैथिलकेँ विकास के चिन्ता छन्हि आ विकास लेल कि हेबाक चाही, कि भेल तेकर सभक कोनो लेखा-जोखा नहि छन्हि। कियो कोनो दलील तऽ कियो कोनो! किनको ई कहाँ जे वास्तवमें मंथन करी कि हम कि छलहुँ कि छी आ अहिना रहत तऽ कि होयब। पहचान बनैत छैक विशिष्टता सँ, अहाँके समस्त विशिष्टताके तऽ दाउ पर लगा देलक, घर सऽ बैला देलक, खेत जे उर्वर छल तेकरा बाउल सऽ भैर देलक…. बरु पहिले प्रकृतिक अपनहि रूप छलैक जे नदी सभ खुजल छलैक तऽ आइ जेना नहि कि टाका कमाइ लेल चमचा-लोभी ठीकेदार द्वारा बान्ह कटबाय बस भसियाबैत-बलुआबैत रहत! कहाँ गेल मिल सभ? पेपर, सुगर, राइस-फ्लोर-आयल मिल? माछ-मखान-पान खाली किताबे में रहि गेल? पाकिस्तानी मीठा पान खूब प्रसिद्ध अछि, लेकिन मिथिला के कथी भेटैत अछि हिन्दुस्तानके हर कोण में, बताउ तऽ? चौका-बर्तन साफ करनिहार? मजदूरी करैत रैयत में बसनिहार? सारा देश लेल सोचैत अपन घर के लोकविहीन रखनिहार? दोसरक खेतमें काज करब मुदा अपन गाममें निकम्मापनी देखेनिहार? ऊफ! मिथिलाके एहेन दुर्दशा लेल आखिर हम सभ किऐक नहि आत्ममंथन करी? देख लियौक जे स्वतंत्र भारतमें राज्य निर्माणके बुनियाद कि रहलैक? मिथिलाक दुर्भाग्य जे १८१६ के सुगौली समझौता सऽ दू दिस बँटि गेल आ तहिये सऽ मिथिला अपन कोनो अस्मिता नहि कायम राखि सकल? तऽ अंग्रेज या ताहि समयक राजाके कमजोरी सऽ मिथिला कि आइ दू सौ वर्ष तक कनिते रहय? हाँ! बाहरी आ भितरी दुनू दुष्ट तेहेन जोगार लगा देलक जे मैथिल आपसे में लडैत रहय आ बहरीके शासनमें पडल रहय! जी! पहिले जमीन्दारी दऽ के, फेर आरक्छण दऽ के, फेर जातीयताके दंगा पसारि, फेर मिथिलाके पैघ तवकामें सनक पसारि जे तोहर भाषा मैथिली नहि मगही थिकौक…. आ अनेको भ्रान्ति पसारिके आपसमें ततेक टुकडा बनौने अछि जे घर सम्हारैत-सम्हारैत अहाँके करोडों डिबिया तेल जरि जायत! न राधा के नौ मन घी हेतैन आ ने राधा नचती!
कतेक अफसोस जताउ! नेतो सभ केहेन तऽ कनाह कुकूर समान! बुझू जे कोनो विधान नहि, मुँहें पाछू कानून! मन भेल बहि गेलौं, मन भेल कहि गेलौं! मने पर सभटा! मिथिला के दिन सही में लदल बुझैछ! जखनहि घरवारी के चिन्ता खतम तखनहि अनवारी घर के लूटत! कृष्ण के संग तऽ अर्जुन के छलन्हि जे बूडित्व प्रवेश करिते गीताक पाठ पढेलापर घरहि के दुश्मन सभके लेल पुन: गांडीव उठाय हर बल सँ पाण्डव राज कायम कैल गेल, मुदा मिथिलाक अर्जुन सभ आपसे में भिडल छथि। कृष्णे केर क्लास लगाबैत छथि। गांडीव उठायब तऽ दूर, उल्टे कृष्णेके खेहारैत छथि। कृष्णो सोचैत छथि जे आखिर हस्तिनापुर तऽ थिकैक नहि, मिथिला थिकैक, एतय तऽ सभ पाहुन कहिके फाडयके मालिक बनल अछि…. हारि के बेचारे ओहो साइड लागि जाइत छथि। सियाजी गेली आ नवकी सिया सभ पर भूलवश दहेजक चाप चढि गेल। जनकजी जे केला सैह हमहुँ करब सोचि किछु सम्पन्न वर्ग शुरु केला आ धीरे-धीरे ई समाजके हर वर्ग के कैन्सर जकाँ जकैड लेलक! बेचारी आजुक मैथिलानी न घर के न घाटके! धोबीके कुकूर! लाज लगैत अछि मुदा लिखय पडत! जे बाहर गेली से बाहरे, मे घर पर छथि ओ घरे! तखन लैंगिक विभेद के अन्त कोना हेतैक मिथिलामें? एकीसम शदीमें विकास तखनहि संभव जखन जीवनरूपी पहिया समान अधिकार के बुनियाद पर चलत। अहु तरहें हम सभ पिछडल छी, सुधार लेल कोनो खास मजबूत प्रयास केम्हरौ सऽ नहि होइछ। कि कहू!
तखन एक बेर जोर लगाउ, एक बेर मिलियौ सभ एक ठाम आ देखियौक जे परिवर्तन कोना नहि होइत छैक! अगिला बेर जे दिल्लीमें मिथिला राज्य लेल धरना हेतैक ताहिमें अपन-अपन लगरपन (असगरे पहाड तोडयवाला अहं) के परित्याग कय तेना समन्वय करियौक जे समूचा ब्रह्माण्डमें मिथिला के विदेह सभ जागि गेलौक से सूचना जाय!
जय मैथिली! जय मिथिला!
हरि: हर:!!