शास्त्रीय शिक्षाः स्रोत – अथर्ववेद
उदिह्युदिहि सूर्य वर्चसा माभ्युदिहि। यांश्च पश्यामि यांश्च न तेषु मा सुमतिं कृधि तवेद् विष्णो बहुधा वीर्याणि। त्वं न: पृणीहि पशुभिर्विश्वरूपै: सुधायां मा धेहि परमे व्योमन्॥१॥
हे सूर्य! उदयकेँ प्राप्त होइयौ। उदयकेँ प्राप्त होइयौ। आर अपन तेजसँ हमरा प्रकाशित करू। जेहि प्राणीकेँ हम देखैत छी आ जेकरा नहियो देखैत छी – ओ सबहक विषयमे हमरा सुमतिसहित बनाउ। अपने हमरा विभिन्न रूपवला पशु सबसँ पूर्ण करू आर परम आकाशमे हमरा अमृतमे धारण करू।
त्वं न इन्द्र महते सौभगायादब्धेभि: परि पाह्यक्तुभिस्तवेद् विष्णो बहुधा वीर्याणि। त्वं न: पृणीहि पशुभिर्विश्वरूपै: सुधायां मा धेहि परमे व्योमन्॥२॥
हे इन्द्र! अपने हमरा लोकनिकेँ पैघ सौभाग्यक लेल नहि दबयवला प्रकाश सबसँ हर तरहें सुरक्षित राखू। अपने हमरा विभिन्न रूपवला पशु सबसँ पूर्ण करू आर परम आकाशमे हमरा अमृतमे धारण करू।
त्वमिन्द्रस्त्वं महेन्द्रस्त्वं लोकस्त्वं प्रजापति:। तुभ्यं यज्ञो वि तायते तुभ्यं जुह्वति जह्वतस्तवेद् विष्णो बहुधा वीर्याणि। त्वं न: पृणीहि पशुभिर्विश्वरूपै: सुधायां मा धेहि परमे व्योमन्॥३॥
हे देव! अपने इन्द्र थिकहुँ। अपने महेन्द्र थिकहुँ। अपने लोक-प्रकाशपूर्ण थिकहुँ। अपने प्रजापालक थिकहुँ। यज्ञ अपने लेल पसारल जाइत अछि। एवं हवन करनिहार अपनेक लेल आहुति आदि दैत छथि। अपने हमरा विभिन्न रूपवला पशु सबसँ पूर्ण करू आर परम आकाशमे हमरा अमृतमे धारण करू।
असति सत् प्रतिष्ठितं सति भूतं प्रतिष्ठितम्। भूतं ह भव्यं आहितं भव्यं भूते प्रतिष्ठितं तवेद् विष्णो बहुधा वीर्याणि। त्वं न: पृणीहि पशुभिर्विश्वरूपै: सुधायां मा धेहि परमे व्योमन्॥४॥
हे देव! अपने असत् मे अर्थात् प्राकृतिक विश्वमे सत् अर्थात् आत्मा थिकहुँ, सत् मे अर्थात् आत्मामे उत्पन्न भेल जगत् थिकहुँ। भूत होनिहारमे आश्रित थिकहुँ। होनिहार भूतमे प्रतिष्ठित भेल छी। अपने हमरा विभिन्न रूपवला पशु सबसँ पूर्ण करू आर परम आकाशमे हमरा अमृतमे धारण करू।
शुक्रोऽसि भ्राजोऽसि। स यथा त्वं भ्राजता भ्राजोऽस्येवाहं भ्राजता भ्राज्यासम्॥५॥
अपने तेजस्वी छी, अपने प्रकाशमय छी, जेना अपने तेजस्वी छी, तहिना हमहुँ तेजसँ प्रकाशित होइ।
रुचिरसि रोचोसि। स यथा त्वं रुच्या रोचोऽस्येवाहं पशुभिश्च ब्राह्मणवर्चसेन च रुचिषीय॥६॥
अपने प्रकाशमान छी, अपने देदीप्यमान् छी, जेना अपने तेजसँ तेजस्वी छी, तहिना हमहुँ पशु एवं ज्ञानक तेजसँ प्रकाशित होइ।
उद्यते नम उदायते नम उदिताय नम:। विराजे नम: स्वराजे नम: सम्राजे नम:॥७॥
उदित होनिहारकेँ नमस्कार अछि, ऊपर एनिहार लेल नमस्कार अछि, उदयकेँ प्राप्त भेलकेँ नमस्कार अछि, विशेष प्रकाशमानकेँ नमस्कार अछि, अपन तेजसँ चमकनिहारकेँ नमस्कार अछि, उत्तम प्रकाशयुक्तकेँ नमस्कार अछि।
अस्तंयते नमोऽस्तमेष्यते नमोऽस्तमिताय नम:। विराजे नम: स्वराजे नम: सम्राज्ये नम:॥८॥
अस्त होनिहारकेँ नमस्कार अछि, अस्तकेँ गेनिहारकेँ नमस्कार अछि, अस्त भेलकेँ नमस्कार अछि, विशेष तेजस्वी, उत्तम प्रकाशमान आ अपन तेजसँ प्रकाशित भेनिहारकेँ नमस्कार अछि।
ॐ तत्सत्!
हरि: हर:!!