माँ यदि सुनीति हो त बेटा ध्रुव होयब सुनिश्चितः नीति कथा

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बालक ध्रुव केर कथा – भावार्थ सहित
 
(मूल कथाकार केर नाम अज्ञात – संकलनः श्रीमती रेणु गुलियानी, अनुवादः प्रवीण नारायण चौधरी, स्रोतः धर्म मार्ग)
 
dhruva-uttanpaadमनु महाराज केर दुइ पुत्र छल, प्रियव्रत और उत्तानपाद। उत्तानपाद केर दुइ पत्नी छलीह – सुरुचि और सुनीति। सुरुचि केर पुत्रक नाम छल उत्तम और सुनीतिक पुत्र केर नाम छल ध्रुव।
 
जीवमात्र उत्तानपाद अछि, माताक गर्भ मे रहनिहा सब जीव उत्तानपाद अछि। जन्मक समय पहिने सिर आर फेर पैर बाहर अबैत अछि। जन्मक समय सभक यैह दशा रहैत अछि। जैकर पैर पहिने ऊपर हो आ फेर नीचाँ आबय वैह उत्तानपाद थीक। जीवमात्र केर दुइ पत्नी होएत छैक – सुरुचि आर सुनीति। मनुष्यमात्र केँ सुरुचि टा प्रिय लगैत छैक। इन्द्रिय जे मांगय ओहि विषय केर उपयोग करबाक इच्छा टा सुरुचि भेल। सुरुचि केर अर्थ भेल वासना। मनुष्य केँ सुनीति अर्थात निति सँ अधिक प्रेम नहि होएछ। ओ प्यारी रानी नहि थीक। ओकरा सुरुचि टा नीक लगैत छैक। मनुष्य लेल यैह बात सच छैक। ओकरा सदाचारयुक्त, संयम भरल जीवन नीक नहि लगैत छैक। ओ वासनाक अधीन भऽ विलासी जीवन जिबय चाहैत अछि। जीवमात्र नितिक अधीन नहि रहय चाहैत अछि। ओ सोचैत अछि जे सुरुचिक अधीन भेला सँ नीक फल भेटत। सुरुचि केर फल उत्तम अछि, तैँ सुरुचि केर पुत्र केर नाम उत्तम भेल। उद – इश्वर, तम – अन्धकार – अन्धकार अज्ञान होएछ, इश्वर केर स्वरुपक अज्ञान मात्र उत्तम केर स्वरुप थीक। जे सुरुचि मे फँसल अछि ओ इश्वर केर स्वरुपक ज्ञान नहि भऽ पबैत छैक।
dhruva-sunitiनीतिक अधीन रहि कय जे पवित्र जीवन जियैत अछि ओकरे इश्वर केर ज्ञान भेटैत छैक। सुनीति सँ ध्रुव भेटैत छैक। सुनीति केर फल ध्रुव थीक। ध्रुव केर तात्पर्य भेल – अविनाशी, अनंत सुख केर ब्रह्मानंद जे कहियो विनाश नहि होएछ। जे सुनीतिक अधीन रहत ओकरा ध्रुव सनक ब्रह्मानंद प्राप्त होएत छैक। मनुष्य यदि सुनीतिक अधीन होएत अछि त सदाचारी बनैत अछि आर जँ सुरुचि केर अधीन होएत अछि तऽ दुराचारी बनैत अछि।
 
राजा उत्तानपाद केँ सुनीति नहि सुरुचि मात्र प्यारी छल। एक बेर उत्तानपाद सिंहासनपर बैसल छलाह। सुरुचि सेहो ओत्तहि छलीह। उत्तम राजाक कोरा मे खेला रहल छल। ध्रुव ई देखलाह त सोचय लगलाह जे हमहुँ कहियो पिताजीक पास जाय त ओ हमरा अपन कोरा मे उठा लैथ। ओ दौड़िते आबिकय पिता सँ अपन कोरा मे बैसेबाक लेल कहलनि। उत्तानपाद सेहो आनंद सँ ध्रुव केँ कोरा मे लेबय चाहला, मुदा सुरुचि केँ ई बात पसिन नहि पड़लनि। जीव केर पास जखनहि भजनानंद अबैत छैक त सुरुचि बाधा उत्पन्न करैत छैक। ध्रुव केँ राजा समय दैथ ई बात सुरुचि केँ पसिन नहि पड़लनि। सुरुचि सेहो राजा केँ ध्रुव केँ कोरा मे लेबय सँ रोकली। राजा रानी केर अधीन छलाह। ओ कामांध छलाह। ओ सोचलनि जे जँ हम ध्रुव केँ कोरा मे बैसायब त रानी तमसा जेतीह। चाहे किछो हो मुदा रानी तमसाइथ नहि। ओ छलाह त राजा मुदा रानीक दास छलाह। राजा तखन ध्रुव केर अवहेलना करैत मुँह मोड़ि लेलनि। ध्रुवजी केँ तऽ बहुत आशा छलन्हि। ओ हाथ बढबैत कहला जे पिताजी हमरा कोरा मे उठाउ। तैपर सुरुचि ध्रुव कुमार सँ कहि देली – भागू एतय सँ। राजाक कोरा मे बैसबाक योग्य पात्रता अहाँ मे नहि अछि। अहाँ राजाक अप्रिय रानीक बेटा छी, तैँ अहाँ हुनकर कोरा मे नहि बैसि सकैत छी।
 
ध्रुव जी पूछलनि – माता! कि हम अपन पिताक पुत्र नहि छी?
 
सुरुचि तखने हुनका ताना देली जे तोहर माय रानी नहि छथुन। रानी हम छी। तोहर माय दासी छथुन। राजाक कोरा मे बैसबाक इच्छा छौक तऽ तोरा हमर कोखि सँ जन्म लेबय पड़तौक। तूँ वन मे जाकय तप करे आ ईश्वर सँ आराधना करे आ हमर कोखि सँ जन्म लेबाक मांग करे।
 
dhruva-starध्रुव केँ आशा छलन्हि जे पिताजी कनिको काल लेल कोरा मे लेबे करता, मुदा सुरुचिक अपमान सँ कनिते ओ अपन माय सुनीतिक पास आबि गेलाह। तखन सुनीति पूछलखिन, बेटा! अहाँ कियैक कनैत छी? कि भेल अछि अहाँ केँ?
 
बालक संस्कारी छलाह, तैँ ओ किछु बाजि नहि रहल छलाह। बेर-बेर बस कानि रहल छलाह। सुनीति बुझैत छथि जे हमर बेटा बुद्धिमान अछि, हमर दशा नीक जेकाँ बुझैत अछि। जेकर माय सुनीति हो ओ सुशील टा होएत छैक। ध्रुव सोचलनि जे जँ हम सब बात बतायब त परंपराक अनुसार माता पिता केर निंदाक दोख होयत | तखनहि एक दासी आबिकय सब बात कहि देलनि।
 
सब बात सुनिकय सुनीतिक मन मे विचार एलनि जे हम त सुरुचिक किछुओ नहि बिगाड़लहुँ, हमरो मुँह सँ हमर सौतिनक लेल जँ किछु कटु वचन निकैल पड़त तऽ ध्रुव केर मन मे हमेशाक लेल वैर भावक संस्कार जैम जेतनि आर भविष्य मे अनर्थ होयत। एहि प्रसंग सँ सुनीति केँ दुःख भेलनि मुदा ओ अपन बालक केँ नीक संस्कार देबय चाहैत छलीह। ओ चाहैत छलीह जे हमर बालक केँ राज्य और सम्पति भले नहि भेटैन, मुदा संस्कार तऽ नीके टा भेटबाक चाही। यदि माता सुनीति होएथ त ओ अपन बालक केँ हज़ारों शिक्षको केर अपेक्षा नीक शिक्षा दय सकैत छथि।
 
सुनीति अपन सब दुःखक आवेग केँ दबबैत धीरजपूर्वक कहली – तोहर विमाता ओना किछुओ खराब नहि कहलखुन। ओ जे तोरा उपदेश देलखुन ओ नीक छौक आर हमहुँ तोरा यैह उपदेश दैत छियौक। बेटा! जँ भिक्षा मंगबाके छौक त फेर भगवानहि सँ कियैक नहि माँगल जाय? मनुष्य सँ बहुत किछु मंगलोपर बहुते कम भेटतौक और कतेको बेर तऽ तोरा अपमान आ उपेक्षा टा भेटतौक। अतः ठाकुर जी टा सँ मांगे। भगवान् जखन दैत छथिन त एतेक बेसी दऽ दैत छथिन जे जीव ओ सब किछु लैयो नहि पबैत अछि। बेटा! भगवान् तोरापर कृपा करथुन, तोरा प्रेम सँ बजेथुन, कोरा मे बैसेथुन। तोरे टा नहि, जीवमात्र केर सच्चा पिता परमात्मा मात्र छथिन। हम तोरा नारायण केँ सौंप देलहुँ अछि। जे पिता तोहर मुंहों तक नहि देखय चाहैत छथुन ओकर घर मे पड़ल रहब निरर्थक छौक। एहि घर मे तू रहमे तऽ तोहर सौतेली माय तोरा सदिखन कष्टे टा दैत रहथुन। मुदा तूँ काने नहि, नहि त हमरा सेहो दुःखे टा होयत। तोहर विमाता तोरा जे वन मे जाय लेल कहलखुन अछि, ओ ठीके केलखुन अछि। एहि मे तोहर कल्याण छौक।
 
माता कहैत छथिन – तूँ जँ उत्तम केर समान राजसिंहासन पर बैसय चाहैत छँ तऽ श्री भगवान् केर चरण कमल केर आराधना करे। स्वधर्म पालन सँ पवित्र बनाओल अपन चित्त मे पुरुषोत्तम भगवान् केर स्थापना करे आर आन सभक चिंतन छोड़िकय मात्र प्रभु टा केर भजन करे। आब एहि घर मे नहि रहे। वन मे जाकय भगवान् नारायण केर भजन करे।
 
तखन ध्रुव माता सँ कहलनि जे विमाता हमरा दुनूक अपमान केली अछि। एहि घर मे नहि तऽ हमर सम्मान अछि आर नहिये तोहर। कियैक न हम दुनू गोटे वन मे जाकय प्रभुजी केर भजन करी?
 
सुनीति तै पर कहलखिन – बेटा! हम तऽ स्त्री छी। हमर पिता त तोहर पिता केँ हमरा दान कएलनि अछि। हमरा त हुनकहि टा आज्ञा मे रहबाक अछि। चाहे हमर पति हमर अपमान कियैक नहि करैथ, हमरा सँ पति केर त्याग नहि भऽ सकैछ। तूँ स्वतंत्र छेँ, हम परतंत्र छी। हमरा तऽ हमर सौतिन जे हमर पतिक प्रिय पत्नी थीक, ओकरो सेवा करबाक अछि। हम तोरा असगर तऽ नहि पठा रहल छी, तोरा संग हमर आशीर्वाद सेहो छौक। परमात्मा तोरा अपन कोरा मे बैसेथुन। जखन तूँ हमर गर्भ मे छलें ओहि समय जे तोहर रक्षा केने रहथुन, वैह तोरा वन मे सेहो रक्षा करथुन। तैँ तूँ वन मे जो और परमात्मा केर ओतय आराधना करे। हमर नारायण तोरा अपन बाँहि मे भैर लेथुन।
 
मुदा ध्रुव केँ एखनहु डर लागि रहल छन्हि।
 
तखन सुनीति पुत्र सँ कहैत छथिन – तूँ असगर नहि छँ, हमर नारायण तोहर संगहि छथि। जीव ई अनुभव नहि करैत अछि जे भगवान् ओकर संगे मे छथि, मुदा जीवमात्र केर सच्चा मित्र त नारायण टा छथि। भगवान् ई नहि देखैत छथि जे फल्लाँ व्यक्ति धनिक अछि आ कि गरीब अछि, शिक्षित अछि आ कि अशिक्षित; छोट आ कि पैघ। प्रभुजी केँ प्रेम सँ आवाज देबहुन तऽ ओ दौड़िते चैल औथुन। अपन दुःख केर कथा प्रभुजी सँ तूँ एकांत मे टा कहिहौन। प्रभु केँ मनाबे आ हुनका सँ कहे जे हमर पाप करबाक स्वभाव छूटिते नहि अछि, कृपा करू। ओ तोहर प्रार्थना अवश्य सुनथुन।
 
ध्रुव पूछलनि – माँ! हमरा जेहेन अबोध बालक केँ सेहो कि भगवान् भेटता?
 
ध्रुव केँ समझाबैत तखन सुनीति कहली – हाँ बेटा! भगवान् तोरा अवश्य टा भेटथुन। हृदय लगाकय भगवान् केर भजन करिहें। भगवान् भावनाक भूखल होएत छथि। ईश्वर केँ जे प्रेम सँ पुकार लगबैछ, ओकर समक्ष ओ अवश्य प्रकट होएत छथि। बिना आतुरता केँ भगवान् नहि भेटैत छथिन। आर्त भऽ कय आरती करे।
 
आब सुनीति सोचलनि जे बालक हमर तऽ वंदना कय रहल अछि मुदा विमाताक सेहो ओ सद्भाव सँ वंदना करय तऽ ओकर कल्याण हेब्बे टा करतैक। केकरहु प्रति द्वेष राखिकय ईश्वर केर आराधना नहि कैल जा सकैछ और एहेन आराधना सफल सेहो नहि भऽ सकैछ। सुरुचि केर प्रति यदि ई कुभाव राखिकय जायत तऽ ई नारायण केर ध्यान नहि कय सकत। ओ बेर-बेर सुरुचिक बाते टा सोचैत रहत।
 
सुनीति तखन फेर ध्रुव केँ बुझेलनि – तूँ हमर होशियार पुत्र थिकें। अपन पूर्व जन्म केर फलक कारण टा तोरा अपमान सहय पड़लौक अछि। कोनो जन्म मे तूँ अपन विमाताक अपमान केने हेमे, ताहि सँ एहि जन्म मे ओ अपन बदला लेलखुन अछि। लाभ-हानि; सुख-दुःख; मान-अपमान आदि सब किछु पूर्व जन्म केर कर्मक फल थीक, ज्ञानी ओकरा हँसिते सहि लैत अछि आर अज्ञानी कनिते। जेहेन बिया रोपमे, ओहने फल भेटतौक। बेटा! तूँ अपन मन मे किछुओ नहि रखिहें। तोहर विमाता तोहर पिताक प्यारी छथि। तूँ कियैक हुनका प्रणाम नहि करमे? तूँ जहिना हमरा प्रणाम केलें अछि, ओहि तरहें अपन विमाता केँ सेहो प्रणाम करे जे तोहर पिताजीक प्रिय छथुन। जँ तूँ हमरा प्रणामो नहि करमे तैयो हम तोरा आशीर्वाद तऽ देब्बे करबौक, मुदा तोहर विमाता तऽ तोरा प्रणाम केलेपर टा तोरा आशीर्वाद देथुन। ओकर वंदना कय केँ तूँ जेमें, तऽ भगवान् जल्दी प्रसन्न हेथुन। सभक आशीर्वाद लऽ कय वन मे जेमें तऽ परमेश्वर जल्दी कृपा करथुन।
 
जे सुरुचि बालक केर अपमान केली, ओहि सुरुचिक वंदना करबाक लेल अपन पुत्र केँ सुनीति पठा रहली अछि। धन्य छथि सुनीति!! एहेन सुनीति जिनके घर मे हेतु ओतय कलि नहि आबि सकत।
 
पांच वर्षक बालक ध्रुव कुमार विमाता सुरुचि केर वंदना करय गेलाह। ओ तऽ आसन पर अकैड़कय बैसल छलीह। ध्रुवजी हुनका साष्टांग प्रणाम केलनि। सुरुचि पूछलखिन जे हमर वंदन कियैक कय रहल छेँ?
 
ध्रुव कहलखिन – माता! हम त वन मे जा रहल छी, तैँ अपने सँ आशीर्वाद लेबय आयल छी।
 
क्षण भरि लेल त सुरुचि केर ह्रदय पिघैल गेलनि केहेन बुद्धिमान अछि ई! अपमानित भेलो पर ई हमरा प्रणाम कय रहल अछि, मुदा ओ स्वभाव सँ दुष्ट छलीह आर स्वभाव जल्दी नहि सुधरैछ। ओ सोचली जे कि ध्रुव यदि एहि ठाम रहत तऽ उत्तम केँ राज्य मे सँ ओ हिस्सा मागत। तैँ ओ ध्रुव से कहि देली – ठीक अछि। वन मे जाइये रहल छी त जाउ। हमरो आशीर्वाद अछि अहाँ केँ।
 
बालक केर प्रणाम केलापर सेहो सुरुचि केर हृदय (मोन) मे किछु विशेष भाव नहि जागलनि। स्वभाव केँ सुधारब बड़ मुश्किल कार्य होएछ, ताहि लेल कहल गेल छैकः
 
कस्तूरी केर क्यारी कय केँ, केशर केर बनल खाद।
पानि देलक गुलाब केर, तैयो प्याज अछि प्याज॥
 
सत्कर्म केर पुष्प जाबत धरि ठीक-ठीक नहि बढि पाओत, ताबत तक स्वभाव नहि सुधैर पाओत|
 
पांच वर्ष केर बालक माता सँ आशीर्वाद लऽ कय वन मे चलि गेलाह।
 
बालक माताक दोष केर कारण चरित्रहीन, पिताक दोष केर कारण मूर्ख, वंश केर दोष केर कारण कायर और स्वयं केर दोष केर कारण दरिद्र होएत अछि।
 
अपन दुनू माय सँ आशीर्वाद लऽ कय ध्रुव वन मे जा रहला अछि। ध्रुव कखनहु सोचैत छथि जे वन मे तऽ हिंसक पशु होयत, ओ हमरा खा तऽ नहि जायत? तऽ दोसर बेर सोचैत छथि – नहि-नहि! हमर असगर त छी नहि, हमरा माय कहने चथि जे जतय-जतय जायब, नारायण संग-संग रहता।
 

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सब केँ प्रणाम कयकेँ जे व्यक्ति घर सँ जाएत अछि ओकरा रस्ता मे संत भेटैत छैक। जे व्यक्ति झगडा कयकेँ घर सँ निकलैत अछि ओकरा नहिये राम भेटैछ आर नहिये माया। घर सँ कखनहुँ तामस मे या झगड़ा कय केँ नहि निकलल करू।

 
मार्ग मे ध्रुवजी सोचैत छथि जे घर मे तऽ माता हमरा बेटा कहिकय बजबैत छलीह, मुदा एतय वन मे महरा बेटा के कहत? एतय हमरा कोरा मे के बैसायत? के हमरा स्नेह करत?
 
ओ आगू बढैत जा रहला अछि आ कि रास्ता मे नारद जी आबिकय भेट गेलखिन। ध्रुवजी सोचलनि जे ई कियो संत छथि। माता कहने छलीह जे रस्ता मे कियो संत भेटता त प्रणाम करब! नीक संस्कार सँ संपन्न ध्रुवजी हुनका साष्टांग प्रणाम केलनि। प्रणाम केलाँ आत्मनिवेदन होएत छैक।
 
अधिकारी शिष्य केँ मार्गहि मे गुरु भेट जाएत छैक। सदगुरु और इश्वरत्व एक्के बात भेल। दुनू सर्वव्यापक थीक। सर्वव्यापी केँ खोजबाक नहि चिन्हबाक आवश्यकता छैक।
 
बालकक विनम्रता सँ नारदजी प्रसन्न भेलाह। हुनकर ह्रदय द्रवित भऽ गेलनि। ओहि बालक केँ कोरा मे उठा लेला। ओकर माथ पर हाथ फेरय लगलाह। ध्रुव केँ मायक आशीर्वाद सँ बाट मे एकटा आरो माय भेल गेली मानू।
 
नारद जी पूछलखिन – बेटा! तूँ कतय जा रह छेँ?
ध्रुवजी कहलखिन – भगवान् केर दर्शन लेल हम वन मे जा रहल छी। हमर माय कहली जे हमर सच्चा पिता त भगवान् नारायण थिकाह। हम हुनकहि कोरा मे बैसय लेल जा रहल छी।
 
ध्रुव केर बात सुनिकय नारदजी ओकर परीक्षा लेबय चाहला। सद्गुरुक परीक्षा लेलाक बादे शिष्य केँ उपदेश दैत छथि। ओ बालक सँ कहला – अरे! एखन तऽ तूँ छोट टा बच्चा मात्र छँ! ई तोहर खेलबाक-धुपबाक अवस्था थिकौक, प्रभुजीक जप करबाक त ई अवस्था नहि थिकौक! और हमरा विचारे साधारण पुरुष लेल ईश्वर केँ प्रसन्न करब बड़ कठिन कार्य छैक। तूँ जिनकर कृपाक इच्छा कय रहल छँ, ओ तऽ दुराराध्य छथि। बड़का-बड़का ऋषि कतेको जन्म धरि ईश्वर केर आराधना करैत छथि, तैयो हुनका नहि भेटैत छथि। ओ सब भगवान् केर मार्ग तकैत तऽ छथि, मुदा जानि नहि पबैत छथि। तूँ पैघ भऽ कय पहिने हर प्रकारक सुख केर उपभोग करे और वृद्धावस्था मे निवृत भऽ कय वन मे चलि जइहें। तखन शांति सँ भजन करिहें, रामनाम जपिहें आर भगवान् केर दर्शन कय लिहें। तूँ चाहैत छँ जे भगवान् तोरा कोरा मे बैसा लैथ, मुदा बड़-बड़ ऋषि-मुनि हज़ारों वर्षक तपश्चर्याक बादो हुनका नहि पाबि सकैत छथि। तखन फेर तोरा जेहेन बालक केँ त ओ भेटबे कोना करता!!! अतः यैह बढियां हेतौक जे तूँ अपना घर वापस चलि जो।
 
ध्रुव कुमार कहलखिन – जी नहि! जाहि घर मे हमर अपमान होएत अछि, ओतय हम नहि रहि सकैत छी। अपन पिताजी केर राज-सिंहासन पर नहि बैसबाक निश्चय हम कय लेलहुँ अछि। एहि जन्म मे प्रभूजीक दर्शन करबाक निश्चय कय लेलहुँ अछि। गुरुजी! अहाँ मार्गदर्शन करू।
 
ध्रुव केर अटल निश्चय देखिकय नारदजी कहलनि – तूँ मधुवन मे जो। वृन्दावन मे ई मधुवन अछि जतय ध्रुवजी केँ नारायण केर दर्शन भेल छलन्हि।
 
यमुना कृपालु छथि। यमुना महारानी क्रिपादेवी केर अवतार छथि। वृन्दावन मे भगवान् केर अखंड वास अछि। यमुना जी तोरा ब्रह्मसंबंध सिद्ध करथुन। यमुनाजी तोरा लेल सिफारिश करथुन। अपात्र भेलोपर माता मानथुन जे तूँ हुनकर भेलहुन अछि। तैँ ओ कृपा करथुन। वत्स! तोहर कल्याण हौक। यमुना नदीक तट पर स्थित परम पवित्र मधुवन मे तू जो। ओतय श्रीहरि केर नित्य निवास अछि। वृन्दावन प्रेम भूमि थीक। ओतय रहिकय भजन केला सँ मोन जल्दी शुद्ध हेतौक| वृन्दावन दिव्य भूमि थीक, ओतय जीव और ईश्वर केर मिलन शीघ्र होएत छैक।
 
ध्रुवजी पूछलखिन – वृन्दावन जाकय ओतय परमात्माक आराधना कोन तरहें करबाक अछि?
 
dhruva-tapasyaनारदजी कहलखिन – ध्यान केला सँ पहिने मानसी सेवा करिहें। चतुर्भुज नारायण केर मानसी सेवा करिहें। ओहि समय मन केर धारा कतहु टूटि नहि जाउक, एकर विशेष ध्यान रखिहें। ईश्वर मे मन सतत संलग्न रहबाक चाही। मानसी सेवा श्रेष्ठ मानल गेल अछि। भगवान् शंकराचार्यजी सेहो मानसी सेवा करैत छलाह। मानसी सेवाक लेल उत्तम समय होएछ प्रातःकाल केर साढे चारि सँ साढे पाँच बजे धरिकेर। कोनो व्यक्तिक मुंह देखने वगैर सेवा करबाक चाही। भोरहि उठिकय ध्यान करे जे तूँ गंगाक किनार बैसल छँ। मनहि सँ गंगाजीक स्नान करे। अभिषेक वास्ते चांदीक कलश मे गंगा जल लाबे। ठाकुरजी केर जगला पर आचमन कराबे | मंगल केर बाद माखन-मिसरीक ज़रुरत पड़तौ। फेर कृष्ण केँ स्नान कराबे। फेर ठाकुरजीक श्रृंगार करे। श्रृंगार नहियो करेला पर सेहो कृष्ण तऽ सुदरे लगित छथि, मुदा एहि सँ तोहर अपन मोन सुन्दर हेतौक। श्रृंगारहि सँ समाधि केर आनंद भेटैत छैक। श्रृंगार केर बाद भगवान् केँ सुन्दर भोग लगाकय तिलक कैल करे। आरती उतारे। ओहि समय तोहर ह्रदय आर्द्र बनबाक चाही। आरती करैत समय प्रभुजीक दर्शन लेल आर्द्र बनबाक चाही।
 
भगवान् केर दर्शन करिते ध्यान करबाक छौक। श्रीहरि केँ धीर मन सँ ध्यान करे। जप ध्यान सहित हेबाक चाही। किछु लोक एहनो होएत अछि जे जप करैत समय सेहो संसारक टा चिंतन करैत रहैत अछि। एना कएला सँ जप निष्फल तऽ नहि मानल जाएछ, मुदा जेहेन फल भेटबाक चाही तेहेन नहि भेटैछ।
 
स्नान कयला सँ तन केर शुद्धि होएत छैक, दान केला सँ धन केर शुद्धि होएत छैक,
ध्यान केला सँ मन केर शुद्धि होएत छैक, जप और ध्यान एक संग करबाक चाही।
जप करते समय जाहि देव केर तूँ ध्यान कय रहल छेँ, हुनकर मूर्ति तोहर मन सँ नहि हँटबाक चाही। जीभ सँ भगवान् केर नाम लेल जाय, आर मन सँ भगवान् केर स्मरण कैल जाय। आँखि सँ हुनकर दर्शन करे और कान सँ हुनकर श्रवण करे। हम तोरा एकटा मन्त्र सेहो दय रहल छियौक।
‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।’
 
एहि मन्त्र केर तूँ सतत जाप करे। भगवान् अवश्य भेटथुन। हमर आशीर्वाद छौक। तोरा भगवान् छः महीना मे भेटथुन।
 
नारदजी जेहेन गुरु भेट जाएथ तऽ छः कि तीन महीना मे परमात्माक दर्शन होएत छैक। नारदजी बालक केँ मधुवन मे जेबाक आज्ञा दैत छथि।
 
ओम्हर उत्तानपाद राजा सुनलनि जे बालक घर छोड़िकय वन मे गेल अछि। राजा केँ घोर आश्चर्य भेलनि। आब राजा सोचय लगलाह जे हम ई कि कय देलहुँ? हमर मोन स्त्री मे फंसि गेल अछि। धिक्कार अछि हमरापर! ओम्हर सुनीति घर मे कानि रहली अछि। विचारैत छथि जे बालक कतय गेल होयत? राजा सुनीतिक घर पहुँचला। अपन कैलपर पश्चाताप करय लगलाह। हम भूल केलहुँ अछि, फेर कहलनि जे अहाँ दासी नहि छी, अहाँ देवी छी। हम अहाँ केँ नहि चिन्ह सकल रही।
 
नारदजी ओहि समय ओतय एलाह। नारदजी निश्चय कएलनि जे ध्रुव हमर शिष्य थीक। हमरे राजा केँ सुधारबाक अछि। ओ राजा केँ “हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे; हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे।” जपबाक उपदेश दैत छथि। नारदजी सावधान करैत छथि – ई मन्त्र तोरा छः मास धरि जपबाक छौक। जँ तूँ छः मास उचित रूप सँ जप करमे तऽ बालक घर आबि जेतौक।
 
एहि दृश्य पर हमर (प्रवीण) केर एक आध्यात्मिक गुरुदेव जनकपुरी (दिल्ली) निवासी श्री परविन्दर कुमार लांबा किछु छंद तुलसीदास कृत् जोड़ैत लिखलनि अछिः
 
इहै कह्यो सुत ! बेद चहूँ ।
श्रीरघुबीर – चरन – चिंतन तजि नाहिन ठौर कहूँ ॥१॥
जाके चरन बिरंचि सेइ सिधि पाई संकरहूँ ।
सुक – सनकादि मुकुत बिचरत तेउ भजन करत अजहूँ ॥२॥
जद्यपि परम चपल श्री संतत, थिर न रहति कतहूँ ।
हरि – पद – पंकज पाइ अचल भए, करम – बचन – मनहूँ ॥३॥
करुनासिंधु, भगत – चिंतामणि, सोभा सेवतहूँ ।
और सकल सुर, असुर – ईस सब खाये उरग छहूँ ॥४॥
सुरुचि कह्यो सोइ सत्य तात अति परुष बचन जबहूँ ।
तुलसिदास रघुनाथ – बिमुख नहिं मिटइ बिपति कबहूँ ॥५॥
 
भावार्थः- भक्त ध्रुवजीक माता सुनीति पुत्रसँ कहने छलीह – हे पुत्र ! चारू वेद यैह कहने अछि जे श्रीरघुनाथजीक चरणक चिन्तन केँ छोड़िकय जीव केँ आर कतहुओ ठिकाना नहि छैक ॥१॥
 
जिनकर चरणक चिन्तन कयकेँ ब्रह्मा और शिवजी सेहो सिद्धि प्राप्त केलनि अछि, ( जिनकर सेवासँ ) आय शुक सनकादि जीवन्मुक्त भेल विचैर रहला अछि आर आइयो जिनकर स्मरण कय रहला अछि ॥२॥
 
यद्यपि लक्ष्मीजी बड़ चंचला छथि, कतहुओ ओ निरन्तर स्थिर नहि रहैत छथि, मुदा ओहो भगवानकेर चरण – कमलकेँ पाबिकय मन, वचन, कर्मसँ अचल भऽ गेली अछि अर्थात् निरन्तर मन, वाणी, शरीरसँ सेवामे टा लागल रहैत छथि ॥३॥
 
ओ करुणाक समुद्र और भक्तक लेल चिन्तामणिस्वरुप छथि, हुनकर सेवा कएला सँ मात्र सबटा शोभा अछि। और जतेक देवता, दैत्य केर स्वामी छथि, सेहो सब काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह और मात्सर्य – एहि छः साँप द्वारा डसल गेल छथि ॥४॥
 
हे पुत्र ! ( तोहर विमाता ) सुरुचि जे किछु कहलखुन अछि ओ सुनय मे अत्यन्त कठोर भेलोपर सत्य मात्र अछि। हे तुलसीदास ! श्रीरघुनाथजीसँ विमुख रहला सँ विपत्ति सभक नाश कहियो नहि होएछ ॥५॥
 
(विनय पत्रिका – विनयावली १६)
 
मूल कथा आगू कहैत रेणु गुलियानी जी लिखलनि अछि…
 
dhruva-vishnuध्रुवजी मधुवन मे यमुना तट पर आबि गेलाह अछि। एक दिन केर ओ उपवास केलनि। दोसर दिन सँ तपश्चर्याक प्रारंभ केलनि। तीन दिन धरि एक्के टा आसन पर बैसिकय चतुर्भुज नारायण केँ ध्यान करैत ओ महामंत्र केर जप करैत छथि। तीन दिन पूर्ण भेलापर उठैत छथि। कंद – मूल भगवान् केँ समर्पित करैत छथि। स्वयं एक बेर खाएत छथि। पुनः स्नान कय केँ ध्यान जप मे बैसि जाएत छथि। एक मास धरि एहि तरहे ध्रुवजी तपश्चर्या केलनि। जखन दोसर मास शुरू होएछ तऽ छः दिन धरि एक्के आसन पर बैसिकय तप करैत छथि। तेसर मास मे आरो संयम बढा दैत छथिन। चारिम मास मे बारह और पांचम मास मे पंद्रह दिन धरि एक्के आसन पर बैसिकय ध्यान लगबैत छथि। छठम मास मे ध्रुव केर ह्रदय मे नारायण केर स्वरुप प्रकट भेलनि अछि। ध्रुवजी केँ प्रत्यक्ष परमात्मा देखाय पड़लनि अछि। बालक ठाढ भऽ गेला अछि। बेर-बेर वंदना कय रहला अछि। परमात्मा केँ दया आबि गेलनि। भगवान् केर हाथ मे जे शंख अछि ओ ओकरा बालकक गाल सँ स्पर्श करबैत छथि। जेनाही स्पर्श होएछ, सरस्वती जागृत भऽ जाएत छथि। सरस्वतीक जागृत भेलापर ध्रुवजी सेहो परमात्माक सुंदर स्तुति केलनि अछि।
 
“हमरा भीतर प्रवेश कयकेँ मन, बुद्धि केँ सत्कर्म मे प्रेरणा देनिहार नारायण परमात्माक चरण मे बेर-बेर वंदन करैत छी।” भक्त और भगवान् एक भऽ गेलाह। परमात्मा सेहो ध्रुवजी केँ किछु मंगबाक लेल कहलनि। ध्रुवजी कहलखिन – हमरा मे मांगबाक कोनो शक्ति नहि अछि। अहाँ केँ जे उचित लागय वैह करू। परमात्मा सेहो कहलखिन – बेटा! हमर बहुत इच्छा अछि जे तूँ वर्षों धरि राज्य करे आर फेर हम तोरा अपन धाम लय चलब।
 
परमात्मा फेर ध्रुवजी केँ घर जेबाक आज्ञा देलनि अछि। ओ रास्ता मे प्रभुजी गुण गान करिते घर आबि रहला अछि।
 
एम्हर राजा उत्तानपाद केँ शुभ सकुन होमय लागल। महाराज केर दाहिना आँखि और दाहिना भुजा फड़ैक रहल अछि। गामक बाहर बग़ीचा मे ध्रुवजी बैसल छथि। एकटा सेवक दौड़िते राजाक समीप आबिकय कहय लगलाह – बधाई हो! बधाई हो!! राजकुमार एला अछि। राजा केँ अति आनंद भेलनि अछि। समूचा गाम केँ सुशोभित कैल गेल आर राजा स्वयं ध्रुवजी केँ स्वागत करबाक लेल पहुँचि गेलाह अछि।
 
ध्रुवजी देखलनि जे पिताक रथ आबि रहल अछि। ध्रुवजी दौड़िकय पहुंचला। पिताजी केँ साष्टांग प्रणाम करैत छथि। दुइ गो माफा (पालकी) मे माता लोकनि बैसल छथि। ध्रुव जी सुरुचि केँ प्रथम प्रणाम करैत छथि। ओ बालक केँ आशीर्वाद दैत छथि। सुनीति माता प्रतीक्षा कय रहली अछि। ध्रुवजी दौड़ैते एला अछि। माता केँ ओ प्रणाम केलनि। माता सेहो पुत्र केँ ह्रदय सँ लगा लेली।
 
ध्रुवजी केँ सिंहासन पर बैसाकय उत्तानपाद राजा गंगा तटपर भक्ति करय लेल चलि जाएत छथि। ध्रुवजीक विवाह भेल। हुनकर दुइ गोट पुत्र भेलनि – कल्प और वत्सर। ओ कतेको वर्ष धरि राज्य केलनि। फेर अपन पुत्र वत्सर केँ सिंहासन पर बैसाकय गंगा तट पर भक्ति करबाक लेल जाएत छथि। ऋषिकेश केर पास ध्रुवजी केर टीला अछि जतय गंगा तट पर ओ भजन केने छलाह। ओतय ध्रुव नारायण केर मंदिर अछि। ओतय गंगाजी अति प्रवेग छथि। ध्रुवजी ओतय सँ शांत स्थान पर जेबाक लेल तैयार भेलाह। तुरंते गंगा माता प्रकट भेलीह। ध्रुवजी वंदना करैत छथि।
 
माता पूछलखिन – बेटा! हमर तट छोड़िकय कियैक जा रहल छ?
 
ध्रुवजी कहलखिन जे एतय कलकल ध्वनि मे हमरा भजन मे मन स्थिर नहि रहि पबैत अछि, आब जंगल मे वृक्ष केर नीचाँ बैसिकय ध्यान करब।
गंगाजी कहलखिन – बेटा! तोरा जेकाँ लाड़ला भक्त अबैत अचि त हमरो बहुत आनंद अबैत अछि। तूँ हमर तट नहि छोड़िहें। आय सँ हम मौन रहब। आर एहि तरहें ध्रुवजी समान अनन्य समर्पित भक्त वास्ते गंगा मौन धारण कय लेलीह। आइ धरि लक्ष्मण झूला ऋषिकेश केर पास मौन चलि रहली अछि।
आब परमात्मा केँ ध्रुवजीक बिना चैन नहि अबैत छल। पार्षद विमान लऽ कय आबि गेल अछि। ध्रुवजी गंगा मे स्नान केलनि। गंगा तट केर सब महात्मा लोकनि केँ साष्टांग प्रणाम केलनि। विमान केर पास ध्रुवजी आबि गेलाह अछि। मृत्युदेव सेहो सिर झुका लेलनि। एकटा पैर ओ मृत्युदेव केर माथ पर रखलनि और दोसर पैर विमान मे रखलनि। ध्रुवजी अपन स्थूल तथा सूक्ष्म शरीर छोड़ि देलनि।
 
ध्रुव जी बैकुंठधाम मे पधारलनि तखन प्रभुजी बैकुंठ में बड़का उत्सव केलनि। ध्रुवजी केँ आकाश मे स्थान देल गेलनि। परमात्मा केँ स्वामी मानू आर अहाँ दास बनू। रसना हरेक क्षण श्रीकृष्ण जपू, तखन अंतकाल सार्थक बनत।
 
हरिः हरः!!