सियाराम झा सरसक कविता: धरि प्रश्न ई उठैए
ई नव प्रस्तुति झारखंड मिथिला मंच द्वारा प्रकाशित आदरणीय सरस केर गोल्डेन जुबिली मैथिली सेवावर्ष यानि ५० वर्ष पूरा भेलाक उपलक्ष्य मैथिली पाठकवर्ग लेल उपलब्ध भेल अछि। मूल्य अछि २०१ टाका। प्रकाशक केर नंबर अछि – ९३३४२२४८७०, ९४३१५००९८२ आ प्रकाशक संयोजन केनिहार मनोज मिश्र द्वारा जे समाद देल गेल अछि ताहि मे एतबी लिखब बड़ पैघ संकल्प आ प्रतिबद्धताक द्योतक अछि:
“हँ, मुदा बसंत आगमनक सूचना जेना कोइलीक कू-कू सँ, मज्जरक महमही सँ एवं पतझड़क पश्चात् नव-पल्लव-किसलय सँ आगुवे-आगू भेटैत जाइछ, तहिना एहि मिथिला मंचक सेहो परिचयात्मक क्रिया-कलाप मौखिल आलाप-विलाप सँ नहिं, ठोस एक पर एक कार्यक्रम द्वारा देबाक चेष्टा कएल गेल अछि।”
लेखक सरसकेर पुरोवाक् सेहो सदा पूर्वहि जेकाँ रसक धारा अपन अनवरत सेवा आ समर्पण भावसँ बहाबैत अछि:
ई पचासम वर्ष थिक आराधना केर
शब्द-पूजन भावना सद्भावना केर
कथा-कविता-गीत-गजलक खेत जोती
बीज जोगइ छी सतत संभावना केर॥
“हे हमर लाख-लाख बन्धु-बान्धव! मानस-मंदिर मे विराजैत काव्याक सितार मे आइ पचासम तार कसा गेल अछि, तेँ झंकार मे थोड़े आर वृद्धि सूनि सकब अपने लोकनि, से विश्वास आ धैर्य राखल जाय।”
रचनाकार अपन सब मर्म केँ रखैत अन्त सेहो जबरदस्त आह्वानक संग करैत छथि, स्वाभाविके अपन जीवनक ढलकानो पर हिनक ओज ओतबे प्रभावशाली अछि जे एहि तरहक संकल्पशक्तिकेँ उजागर करैत अछि, ५० वर्ष तऽ सेवाक भेल, उमेर बेसिये अछि, मुदा जोश केहन से एहि पाँति मे देखू:
एतऽ मेहीं सँ मेहीं ध्वनिक हम आभास सब लीखब
जमीनक बात पहिने, तखन हम आकाश सब लीखब
रडारक चतुर्दिक सीं.बैंड-ऐंटीना सरस लागल
हरेका भेजा सँ तिकड़म काछि, बकलम खास सब लीखब॥
-सियाराम झा सरस
२९.०३.२०१५.
आर ११ अप्रैल २०१५ दिन विराटनगर केर ‘अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली कवि सम्मेलन-२०१५’क प्रमुख अतिथि श्री सरस केर सरस गजल संध्या मे एहि पोथीक टाइटल ‘धरि प्रश्न ई उठए अछि’ केर ओ गीत राखल जा सकल:
झाजी केँ राज चाही, ठाकुरकेँ राज चाही
चौधरिकेँ राज चाही, मिसरो केँ राज चाही
धरि प्रश्न ई उठैए – भेटतै तँ कोना भेटतै –
जौं दृष्टिहीन मैथिल, नेतृत्वहीन मिथिला!
मडुआ-गहूम मिलतै, मिलतै तऽ एक होएतै
जौं हाथ-माथ मिलतै – सार्थक विवेक होएतै
मोची आ दास बेसी काबिल हेतै जौं झासँ –
निश्चय करी जे ओकरे राज्याभिषेक होएतै
धरि प्रश्न ई उठैए – होएतै तऽ कोना होएतै –
जौं त्यागहीन मैथिल, अनुरागहीन मिथिला!
जौं लोकवेद जागत तँ गाम-नगर जागत
जैकन समाज जागत – आलस्य-द्वेष भागत
खेतो पथाड़-गाछो-कुकुरो-बिलाड़ि-पशुओक
उर्जा हेतैक निसृत, सयगुन हेतैक तागत
धरि प्रश्न ई उठैए – देखब तऽ कतऽ देखब –
जौं मानहीन मैथिल अभियानहीन मिथिला!
डंका मे चोट पड़तै, तासा जौं गड़गड़ेतै
थारी घड़ीघंटा घर-घर सँ घनघनेतै
चक्का तऽ होउक जाम आ पदत्याद करथु प्रतिनिधि
दरबार हाँल धरि मे ई शंख गनगनेतै
धरि प्रश्न ई उठैए – सुनबै तऽ कोना सुनबै –
जौं रक्तहीन मैथिल आ शक्तिहीन मिथिला!
खाकीक जोर चाही, खद्दर के जोर चाही
गंगाक संग कोसी-कमला हिलोर चाही
चानक मुहेंठ पर अछि गुजगुज अन्हार पसरल
तेँ मांग अछि समय केर शोनिताएल भोर चाही
धरि प्रश्न ई उठैए – पायब तऽ कोना पायब –
जौं जोशहीन मैथिल, आक्रोशहीन मिथिला!
एहि पोथी मे आदरणीय सरस केर समस्त रचना मे क्रान्तिक संदेश अछि। विदित हो जे विद्यापति जेना अपन पौरुष आ पुकार सँ सबहक पुरुष केँ जगबैत छथि, तहिना सरस केर समस्त रचना केहनो सुसुप्त केँ हिला-हिलाकय जगा दैत अछि। हम स्मृति मे आनि रहल छी ओ एक सरस रचना जे २०१० मे विरेन्द्र सभागृह मे आयोजित दुइ-दिवसीय विद्यापति स्मृति पर्व समारोहक समापन सत्र मे आदरणीय धीरेन्द्र प्रेमर्षि आ आदरणीय सुनील मल्लिक (मिनाप) द्वारा संयुक्त गान कैल गेल छल आ सुननिहार सबहक आँखि सँ दहो-बहो नोर बहय लागल छल:
शोणित मे कलम बोरि अपन नाँ कढा लिहें
हमरा चढौने होहु तऽ बलियो चढा दिहें….
पोखैर खुना के राखि देने जा रहल छियौ…
सट्ठा जँ होहु तऽ घाट सब पक्के मढा लिहें….
बेर-बेर प्रणाम जे अपन रचना सँ प्रवीण आ हमरहि समान अनेको अभियानीकेँ नव पुरुषार्थ प्रदान कय रहल छी।
हरि: हर:!!