आश नारायण ठाकुर, सतघरा (मधुबनी)। सितम्बर ४, २०१६. मैथिली जिन्दाबाद!!
मिथिलांचलक हृदयस्थली मधुबनी जे पान, माछ, मखान आ मधुबनी पेन्टिंग केर संगहि अपन भांति-भांति के पाबनि-तिहारक लेल प्रसिद्ध अछि, ताहि जिला मे आइ चौरचन पाबनि धुमधामक संग मनायल गेल अछि।
धियापुता सब दिनहि सँ पिरिकिया, पुरी आ विभिन्न प्रकारक पकवान पर कातेर दृष्टि सँ देख रहल छल । बच्चाक स्वभावे तेहने होएत छैक। घरमे पकमान बनय आ मुंह मे पानि नहि आबय ई संभवे नहि अछि। ताहि द्वारा कहलो जाएत छैक – उगह हौ चान कि लपकी पूआ – भरि दिन बच्चा सब सऽ तंग स्त्रीगण सब जहन साँझ में पूजा पर बैसली त मेघ अनसन पर बैसि रहल बुझायल। ओ मेध सब मानू जेना चन्द्रमा केँ कहैथ होथिन जे सब बेर अहाँ चढौआक खीरा, केरा, नारियल, संतोला, सेव आदि फलक संग दही, पूरी, पकवान, खीर पिरिकिया सबटा असगरे देख लैत छियैक से आइ एक सप्ताह स हम जे गरैज बरैस रहल छी से हमर मुहँ हाथ दुखायल अछि, ई सबटा एहि बेर हमहीं देखब । कहबाक तात्पर्य जे मेघौन आकाश मे एहि बेर चंदाक दर्शन दुर्लभ भऽ गेल, तैयो व्रतधारी महिआ ओ परिवारक सब सदस्य बिना चांदक दर्शन केनहिये सब विध पूरा करैत उल्लासपूर्वक चौरचन मनौलनि अछि।
एना प्रत्यक्षे बुझायल जेना मेघ चन्द्रमा सँ कहि रहल होएन जे आइ कोनो हाल मे अहाँ केँ एतेक रास पूरी-पकवान नहि देखय देब, आइ जे किसान – धरतीपुत्र सबहक चेहरा पर हरियरी जे आयल अछि तेकर कारक हम छी। मेघ सँ चन्द्रमा हारि मानि गेलैथ आइ आ कहलथिन जे जा आइ तुंही रहह, लेकिन आब तोहर बेसी काज एहि साल नहि छैक, आरो जे तू बरसबहक त कमला ओहिना खिसियैल छैथ ओ गंगा जकाँ घरे-घर पहुँच कय पुण्य कराबय लगथिन । चन्द्रमो हारि मानलाह आ हुनकर भक्त लोकनि सब सेहो । आइ चौरचन बिना चांदक दर्शन केनहिये श्रद्धालू भक्त लोकनि मनौलनि।