भक्ति रचना
– विमलजी मिश्र
॥ गणेश स्तुति ॥
यौ गजानन गणपति, विनती करै छी आबु यौ,
स्मरण पूजन ध्यान मे, स्थान पहिने पाबु यौ,
यौ गजानन गणपति….
यौ गौरी के लाल उदर विशाल, भव्य तेज भाल मुख मंगला ।
यौ विध्न हर्ता सिद्धि दाता, एकदन्त शिव लाड़ला ।
संग साजै रिद्धि सिद्धि-2 महिमा अहीं के गाबि यौ ॥
यौ गजानन गणपति….
अछि पित वसन स्वर्णकमल आसन, मुसक वाहन करु भला,
इन्द्र वरुण कुबेर यम दिगपाल, सुर्य चन्द्र सेवा करै वला,
करुणा निधान झट करु निदान-२, जग मंगल घट बसाबू यौ
यौ गजानन गणपति……
यौ जग के स्वामी दया के सागर, अहीं छी सब दुख हरै वला,
अहीं लऽ प्यासल हिया के गागर, अहीं छी शुभ लाभ करै वला
छी मूरख नै ज्ञान की करु बखान -2, नीत चरण शीश झुकाबी यौ
यौ गजानन गणपति, विऩती करै छि आबु यौ
स्मरण पूजन ध्यान मे, स्थान पहिने पाबु यौ॥
जय भोले । जय माँ गौरी ।