संस्मरणः चौरचन पाबैन
– प्रवीण नारायण चौधरी
आइ चौरचन पाबैन थीक। पहिने भोरे-भोर एकटा काज अढायल जाएत छल बच्चा मे…. माय कहैय जे “जो, कतहु सँ मलकोकाक फूल तोड़ने आबे”। आजुक पूजा मे मलकोका फूलक अत्यन्त विशेष काज होएत छल। ताहि दिन ई बुझबो नहि करियैक आ नहिये बुझबाक कोनो प्रयोजन रहय। मुदा गामक चारूकात चर-चाँचर मे – डोबरा-खत्ता-पोखैर जतय कतहु मलकोका रहैत छल से पहिने सँ ठेकनाकय रखने रही। भोरे सुति-उठि पहिल काज यैह हुअय जे मलकोका फूल २-४ गो उखाड़िकय आनि ली। आब शहरी परिवेश मे ई काज करब आ कि अपन बच्चे केँ करय लेल कहब औचित्यहीन बुझाएछ। कतय भेटत, नहि भेटत… ओ विशिष्ट विधान रहितो एहि अनिश्चितताक कारणे एकरा ताकिकय आनब संभव नहि बुझाएत अछि।
संयोग सँ माय संगे छथि। आउ पूछैत छियैन जे ओ कहती कि कोन काज होएत छलैक ओहि फूलक। कियैक भोरे-भोर बेहाल भऽ जाएत रही हम सब ओ फूल आनय लेल। माय कहैत अछि, “मलकोका फूल चन्दाक प्रेयसी थिकी। देवलोक मे ई श्वेत कुमुदिनी चन्दा संग प्रेम विवाह रचा लेली। हुनक पिता चन्दाक विवाह जतय-ततय करबाक आदति सँ परिचित छलाह। हुनका पता छलन्हि जे चन्दाक सुन्दरता सँ कियो आकर्षित होएत छथि। ताहि आकर्षण मे हुनक सुपुत्री सेहो पड़ि गेलीह आ बिना पिताक राय-सल्लाह-सहमति ओ चन्दा संग प्रेम करय लगलीह। पिताक कतबो बुझेलाक बावजूद ओ एहि सँ सहमत नहि भेलीह आर अन्ततोगत्वा पिताक कोपभाजनक शिकार सेहो भेलीह। पिता हुनका शापित कय देवलोक सँ पृथ्वीलोक मे फूल बनि चन्दा सँ दूर रहबाक शापद दय देलखिन। तत्पश्चात बहुत विनती केलाक बाद ओ आखिरकार हुनका अपन प्रेमी चन्दा सँ मिलन लेल साल केर मात्र एक दिन भाद्र शुक्ल चतुर्थीक दिन निर्धारित केलैन। ताहि सँ आजुक दिन एहि फूल सँ चन्दाक पूजा कएला सँ साधक लेल लाभकारी-हितकारी होएत अछि।
एलर आनो कतेक विधान केर चर्चा आन लेख मे कैल गेल अछि। कहल जाएछ जे आइ चौठ केँ चाँद केर दर्शन अशुभ होएछ। मुदा कृष्ण केँ देल नारद उपदेश सँ मिथ्या-कलंक दोष सँ मुक्ति लगबाक कारण चौठक चानकेर दर्शन थीक तहिना “सिंहः प्रसेनं अवधीत्, सिंहो जाम्बवता हतः । सुकुमारक मा रोदी तव हि एषः स्यमन्तकः ॥” मंत्रोच्चारणक संग चन्द्रमाक आजुक दर्शन शुभकारी मानल जाएछ। ताहू मे ओहि मलकोकाक फूल सँ चन्दाकेँ विशेष प्रीति होयबाक उपरोक्त श्रुतिकथा अनुरूप दर्शन करबाक महत्व आरो बढि जाएत अछि। जँ एहि श्रुतिकथा आ दोसर पुराण आधारित कथाक बीच समन्वय स्थापित करब तैयो चन्द्रमा केँ गणेश भगवान् केर शाप सँ मलिनता भेटैत जलप्रवेशक चर्चा भेटैत अछि, संभवतः यैह कारण ‘मलकोका’ नाम पड़ैत अछि एहि फूल केर, आर मूल स्वरूप तथा शापित स्वरूप केँ एकाकार करबाक विशेष समय गणेश चतुर्थी केँ मिथिलावासी अपन निज संकल्प सँ पुरखाक आदेश मुताबिक विशेष कबुला दर्शन अनुरूप चौरचन एना मनबैत छथि।
औझका दिनक ज्योतिषी गणना सेहो विभिन्न महत्वपूर्ण कार्य लेल जानल जाएत अछि। सिद्धिविनायक चतुर्थी व्रत, श्रीगणेशोत्सव 11 दिन, श्रीकृष्ण-कलंकनी चतुर्थी, आइ चंद्रमाक दर्शन सर्वथा निषिद्ध (मिथिला छोड़ि अन्यत्र), पत्थर (ढेला) चौथ, चौठ चंद्र (मिथिला), सौभाग्य चतुर्थी (बंगाल), शिवा चतुर्थी, सरस्वती पूजा (उड़ीसा), लक्ष्मी पूजा, जैन संवत्सरी (चतुर्थी पक्ष), मूलसूत्रवांचन (श्वेत.जैन) आर तहिना चन्दा आ मलकोका फूल यथार्थतः पति-पत्नी केर मिलन तथा मिथिलाक राजा विदेश सँ अपन धरापर लौटि एबाक रानीक प्रार्थना अनुरूप समस्त लोक द्वारा लोकाचार मे चौरचन रूप मे प्रसार पेबाक दिन मानल जाएत अछि। जनश्रुति मे विवेक केर प्रयोग करैत स्वयं संकल्प सँ सदिखन कल्याणक मार्ग प्रशस्त होएत छैक, ताहि हेतु ई लेख राखि रहल छी। एहि मे कोनो प्रकारक दाबी अथवा चुनौतीक बात नहि, बस कथा रूप मे एकरा स्वीकार कैल जायत।
हँ! एकटा मूल बात अन्त मे यैह कहबाक अछि जे वर्तमान भौतिकतावादी युग मे जतेक पूरी-पकमान पाकत नहि, पूजा-अर्चना होयत नहि, ताहि सँ बहुत बेसी शुभकामना संवाद जरुर एक-दोसर केँ देल जायत। लेकिन शुभकामना देबाक संग-संग यदि हम सब आध्यात्मिक महत्व सेहो आत्मसात करब तऽ औचित्यक संग प्रासंगिकता बढि जायत। अस्तु!
हरिः हरः!!