संकलन
– शंकर कुमार
मैथिलीक प्रसिद्ध कवि श्री चंद्रभानु सिंह कें संबोधित महाकवि मधुपक ई कविता कत्तेक नीक जेकाँ मिथिला आ मैथिली भाषा कें परिभाषित कय रहल अछि से देखिऔ कने।
* मैथिल आ मिथिला *
पर्वतराज हिमालय सौं दक्षिण गंगा सौं उत्तर ।
गंडक सौं पूर्वस्थ महानंदा सौं पश्चिम मृदुतर ॥
मही मूर्धमाला मिथिला में जतेक जाति केर मानव ।
सब थिक मैथिल भिन्न कहय जे तकरा बूझी दानव ॥
विस्तृत एकर विभिन्न अंचलक जते प्रकारक बोली ।
सकल मिलित मैथिली थीक तैं किछु दय दय कटु बोली ॥
जे ककरो अपमान करय कहि दछिनाहा पछिमाहा ।
से माता मैथिलीक द्रोही अधमहुँ में अधलाहा ॥
विद्यापतिक काव्य माला में तिरहुति भरी केर बोली ।
फूल जेकाँ गाँथल अछि ककरो कहि खराब नहि डोली ॥
तोहें हमें तोहार आदि पद कवि कोकिलक प्रमाणे ।
ताहर कथनि रामदासक देखैतौंह न करथि गिआने ॥
गनल गुथल ऐ दुष्टजनक गुट पर नहि दिए धिआने ।
चंद्रभानुजी जनता सौं सभ दिन पायब सम्माने ॥
-श्री “मधुप”
सम्पादकीय नोटः
कवि चन्द्रभानु सिंह सेहो मैथिली भाषाक बहुत पैघ सेवक भेलाह अछि। मधुकर पड़ल दुलेब कोयलिया – घुलल घामल बोल छौ – कि कहियौ गै करिकी तोहर बाजब बड़ अनमोल छौः एहि गीति कविताक मात्र रचने टा नहि कएलनि बल्कि मैथिलीक दिन लदैत देखि अपन रचनाक प्रकाशन केलाक बाद सब गाम आ तेकर विद्यालय सब मे घूमि-घूमिकय प्रचार कएलनि। अपन गीति रचना सब अपने सँ गाबिकय बच्चा सबकेँ सुनबैथ आर अपन मातृभाषाक मिठासक मंत्र बच्चा सबकेँ दैथ। तेहने एकटा सौभाग्यशाली बच्चा हमहुँ छी आर हुनक दर्शन संभवतः १९८२ मे मध्य विद्यालय, कुर्सों मे कक्षा छठा मे पढबाक समय कएने रही।
आदरणीय शंकर कुमार जी द्वारा प्रेषित ई रचना मे स्पष्ट कहल गेल अछि जे ‘गनल गुथल ऐ दुष्टजनक गुट… चन्द्रभानुजी जनता सौं सभ दिन पायब सम्माने…’ ई संकेत करैत अछि जे किछु मैथिली साहित्यकार द्वारा हुनकर रचना आ मैथिल होयबाक लेल पक्का जातिवादी टिप्पणी संग खिद्धांस कैल गेल होयत। ताहि पर मधुपजीक ई रचना अछि। एकर मर्म केँ आत्मसात करैत मैथिली केँ जन-जन धरि पहुँचेबाक हमर संकल्प आरो मजबूत भेल। जय मैथिली!!