विचार सन्दर्भः आर्थिक आत्मनिर्भरता लेल मिथिला चित्रकला बेहतर विकल्प
– राम बाबू सिंह, मधेपुर (कलुआही) – हालः दिल्ली सँ
“बारीक पटुआ तीत” – मिथिलाक पारम्परिक लोककला (चित्रकला) केर परिपेक्ष्य मे यैह कहिनी सत्य कहल जा सकैछ। मिथिला पेंटिंग जेकर विश्व प्रसिद्ध नाम ‘मधुबनी पेन्टिंग’ सेहो थीक से प्राचीनकाल सँ बिना कोनो तकनीकी प्रशिक्षण लेनहिये परम्परागत ढंग सँ महिला लोकनि सीखैत रहली अछि, आर एहि सँ अपन माटिक भीतघर केर देवाल केँ सजबैत रहली अछि। बेसी नहि, मात्र दुइ-तीन दसक पूर्व धरि गाम-घर में कोनो एहन घर नहि होएत छल जेकर भित्तापर ई चित्रकारी नहि कैल गेल हो। मुदा आब ओ जमाना नहि रहि गेल। नहिये आब ओ बात रहि गेल। माटिक घर केर स्थान कॉन्क्रीटक देबाल लऽ लेलक। आब मिथिला चित्रकारी त छोड़ू, जँ कोनो बच्चा कगजियो पेन्सिल सँ किछु डढिरो जेकाँ खींच देत तऽ ओकरा घर मे डाँट-फटकार भेटबे टा करतैक।
चित्रकारी में मिथिलाक मधुबनी आ मधुबनी में जितवारपुर क्षेत्र विश्व स्तर पर अपन विशिष्ट पहचान बनाकय देशक नाम सेहो गौरवान्वित केलक अछि। पारम्परिक चित्रकलाक विशेषता ई अछि जे हस्तकलाक संग प्राकृतिक रंग केर प्रयोग सँ मानव ओ ईश्वरीय सत्ताक बीच प्रकृति एवं पर्यावरण मैत्री केँ चित्र मार्फत प्रस्तुत कैल जाएत अछि। एकर दर्शन स्वाभाविके हर मानव केँ शान्ति आ सुखक अनुभूति दैत अछि। एहि मे कोनो प्रकारक रासायनिक रंगक प्रयोग नहि कएल जाएत अछि।
आइ मिथिलाक सामाजिक आर्थिक व्यवस्था में मिथिला चित्रकलाक बड पैघ भूमिका दृष्टिगोचर भ रहल अछि। एहि कला मे निपूण कलाकार लोकनिक योगदान केँ विशिष्ट मानल जाएत अछि। बिना कोनो सरकारी सहयोग लेने बस अपन कलाकारिताक बुत्तापर गाम देहात सँ लयकेँ सौंसे दुनिया में एकर झंडा केँ फहरबैत छथि मिथिला चित्रकार लोकनि।
एक दिस समस्त दुनियाक लोकक आकर्षण देखैत छी मुदा दोसर दिस अपनहि लोकक बीच एकर उपयोगिता आ महत्व नगण्य देखि विस्मयकारी चिन्ता सेहो होएत अछि। जाहि कला सँ विश्व चकित अछि, दुनिया भरिक पुरस्कार सँ कलाकार केँ सम्मानित कएल गेल अछि, से कला आखिर अपन मिथिलाक लोक केर नजरि मे मूल्य ओ महत्व नहि पबैत अछि एहि सँ बेसी दुखद आर कि होयत? संभवतः यैह कारण छैक जे राज्य सरकार सेहो एकरा प्रति खाली हावाबाजी कय केँ चुप्पी साधि लैत अछि। कतेको वर्ष सँ घोषित मिथिला चित्रकला संस्थान मूर्तरूप मे स्थापित होयबा लेल लिल्लोह रखैत अछि हमरा सबकेँ। जापान, जर्मनी आ विभिन्न आन देश मे एहि कला लेल एक सँ बढिकय एक संग्रहालय, प्रशिक्षण केन्द्र आदिक स्थापना भऽ गेल, परन्तु निज राज्य में ई आइ धरि नेता सबहक भाषण मात्र सिमित रहि गेल अछि।
ई त स्पष्टे छैक जे बिहार मे मिथिला केर विशिष्टताक रक्षा केर जगह पर विध्वंस बेसी करबाक नीति छैक, मिथिलालिपि, मिथिलाक हस्तकला सिक्कीक मौनी-पौती आदि बनेबाक परम्परा, मैथिली भाषा, मिथिला पर्यटन, मिथिला उद्योग, मिथिलाक विशिष्ट पान-मखान-माछ कृषि आदि सब किछु कालक गाल मे समा गेल, मुदा राज्य सरकार आ एकर बड़का-बड़का नेता-अभिनेता आ बजन्ता सब पर कोनो असैर तक नहि भेल। बिहार मिथिलाकेँ अपन भूभाग बुझिते नहि अछि, बिहार गीत एहि तथ्यकेँ उजागर कइये चुकल अछि। मानू जेना हम सभ जबरदस्ती एहि राज्य में समा गेल छी, राज्यक उपेक्षाक नीति स्पष्टतः दोयम दर्जाक बना देने अछि हमरा सबकेँ। अप्पन मिथिला क्षेत्रक कोनो रोजगार धंधा के विकास हेतु कोनो प्रकारक सरकारी कार्यक्रम नहि बना रहल अछि। आ ने कोनो पहल केर आशा निकट भविष्य में कतहु देखा रहल अछि। सरकारी उपेक्षाक कारणे मिथिला पेंटिंग केर जे मान सम्मान भेटक चाहि से नहि भेट रहल अछि। जँ सरकार कनिको एहि कलाक तरफ धेआन देने रहैत तखन आजुक मिथिलाक ग्रामीण क्षेत्र मे यैह चित्रकलारूपी स्वरोजगार सँ आर्थिक उन्नति भऽ गेल रहितय। आर्थिक समृद्धि सँ प्रदेश एकटा कीर्तिमान स्थापित कएने रहैत, मुदा अफसोस जे एहेन कोनो नीति कतहु नहि अभरैत अछि।
तखन त स्वयंसेवा सँ संरक्षणक जे सनातन सिद्धान्त अछि, बस ओहि भरोसे हम सब चलि रहल छी। धन्यवादक पात्र छथि ओ कलाजीवी लोकनि जे अपन कर-बल सँ सब किछु संरक्षित रखैत आगू बढि रहला अछि। बुझाइय जे आब मिथिला राज्य बनलाक बादे अपन लोकसंस्कार केर रक्षा अपन राज्य सरकार द्वारा होयत। तैयो सरोकारवालाक ध्यान एहि दिशा मे बनल रहय से उम्मीद करैत छी।