विचारः सन्दर्भ मैथिल ब्राह्मणक सोझाँ चुनौती
– प्रवीण नारायण चौधरी
संसारक सब सँ विलक्षण, अनुपम आ कठोर वैवाहिक प्रक्रिया मैथिल ब्राह्मण समुदायक होएछ।
निमि-मिथि-जनक केर मिथिलाक एक उत्कृष्ट समुदाय मैथिल ब्राह्मण लेल वर्तमान युग मे सबसँ पैघ चुनौती वैवाहिक परंपराक निर्वहन देखाएत अछि। जाहि समुदायक विवाह सँ पूर्व अत्यन्त कठोर जाँच सँ अधिकार निर्णयक प्रक्रियाक परंपरा अछि ताहि ठाम आब लोक चट मंगनी पट बियाह केर प्रक्रिया अपनबैत देखा रहल अछि।
रक्त सम्बन्धक जाँच
मैथिल ब्राह्मण समुदाय केर विवाह सँ पूर्व मिलल जोड़ीक बीच रक्त सम्बन्ध केर जाँच सर्वप्रथम कैल जाएछ। यानि पैतृक पक्ष मे सात पीढी आ मातृक पक्ष मे पाँच पीढी धरि वर एवं कन्याक बीच कतहु सीधा रक्त सम्बन्ध नहि हेबाक चाही। जेना, राम केर विवाह सीता सँ होयब तय भेल तऽ सब सँ पहिल बात देखल जायत जे गोत्र एक नहि हो। यदि गोत्र एक भेल तऽ ओ सीधा रक्त सम्बन्ध ठहैर गेल। परगोत्री वर एवं कन्याक बीच मे पुनः लेल गेल उदाहरण राम आ सीताक पिता-पितामह-प्रपितामह-वृद्ध प्रपितामह आ ताहि क्रम मे आरो ऊपर तीन पितामह धरिक कथा कुटमैती मे कतहु सीधा रक्त सम्बन्ध नहि हो, तहिना मातामह, प्रमातामह, वृद्धप्रमातामह सँ आरो दुइ खारी ऊपर धरिक सम्बन्ध मे कतहु सँ सीधा रक्त सम्बन्ध ठहर नहि होयत तखनहि ओ विवाह होयबाक अधिकार प्राप्त करता। एहि प्रक्रिया केँ ‘अधिकार निर्णय’ कहल जाएछ। पंजिकार (पंजी मे उल्लेखित परिचय केँ गणना कएनिहार) द्वारा ई अधिकार निर्णय कराओल जाएछ। पुनः दुनू पक्षक सहमति सँ सिद्धान्त लेखन कार्य होएछ आ ताहि सिद्धान्त मे दुबगली सात पीढी व पाँच पीढी क्रमशः पैतृक ओ मातृक पक्षक पुरुष केर नाम लेखन होइछ। आर, अपन-अपन परम्परानुसार ताहि सिद्धान्त केँ लोक अपन कुलदेवताक समक्ष प्रस्तुत करैत वर-कन्याक विवाह लेल आशीर्वादक आकांक्षी बनैत छथि।
वैवाहिक प्रक्रिया मे वेद विहित व्यवहारक अनुकरण
मैथिल ब्राह्मण समुदाय मे वैवाहिक सम्बन्ध एक यज्ञ अनुष्ठान समान व्यवहृत होएछ। दुनू पक्षक कुलदेवताक भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण होएछ। विवाह पूर्वहि सँ कुलकेर देवता आ पुरुष लोकनिक गान भोर-साँझ शुरु भऽ जाएत अछि। कुलदेवताक प्रसन्नता बिना मैथिल ब्राह्मण परिवार मे खरो नहि खरखराएत अछि। तहिना आदिपुरुष (पुरखा-पितर) लोकनिक नाम सहित मान-गान होयब रेबाज होएछ। ब्राह्मण बाबुक गीत सेहो ओतबे प्रधानताक संग घर-परिवार मे गायल जाएछ। फेर विवाहक दिन वर केँ कुलदेवताक आगाँ मे कोनो छोट बच्चा (भाइ) आदि केँ कन्याक प्रतीक केर रूप मे राखि ई संकल्प लियाओल जाएछ जे आब गृहस्थाश्रम मे ओ प्रवेश करय जा रहला अछि, आगाँ सब किछु शुभ-शुभ होएन्ह। तहिना ओम्हर कन्याक परिवार मे सेहो सब कार्य कुलदेवताक साक्षी मानिकय कैल जाएछ। हरेक गीतनाद आ व्यवहार मे नव दंपत्ति लेल आशीर्वादक आकांक्षा निहित रहैछ। कोबर लिखल जाएछ। साज-बाज सबटा दैविक आ गार्हस्थ धर्म सँ सुपरिचित करेबाक महत्वपूर्ण सन्देश छुपल रहैछ।
वैवाहिक सम्बन्ध निर्माण हेतु वेदक मंत्र सँ एक-दोसर प्रति आस्था, विश्वास आ दुइ शरीर एक आत्मा केर निर्माण करैत छैक, अग्नि केँ साक्षी मानिकय एहेन अटूट सम्बन्ध कायम होएत छैक जे मनुष्य प्रजातिक एक सर्वोच्च सुसंस्कृत बौद्धिकता सँ पूर्ण नव संततिक आगमन होएत रहतैक आ मानव कल्याणार्थ ब्राह्मण समुदाय सदैव समर्पित भाव सँ सेवा करैत रहता। नियमक कठोरता सेहो बहुते प्रकारक छैक। जेना कोनो व्रत मे होइ, वर-कन्या आ विधकरीक संग-संग मातृका पूजा व कन्यादान कएनिहार कन्याक पिता किंवा नाना, आ कि माय आ कि बाबा आ कि जे कियो – सब व्रत मे रहता, कियो अनोन खेता तऽ कियो फलाहार करता। आइ अत्यन्त पैघ यज्ञ कर्म होयत जे ब्राह्मणक संतति केँ अपना कोखि मे धारण करयवाली कन्या कोनो महावीर वर केँ वरण करती आ ताहि लेल कन्यादान कैल जायत। महत्ता केँ पूर्णरूपेण शब्द मे राखि देबा मे हम अपना केँ असमर्थ पाबि रहल छी, बस भाव बुझि जेता पाठक लोकनि जे ब्राह्मणक वैवाहिक कर्म कतेक पैघ सूचना दय रहल अछि। ई कठोर व्यवहार आ विध-विधान केहेन संकेत कय रहल अछि। वर व कन्या कोहबर मे संगे त रहथिन मुदा ईश्वरभाव केँ चारि दिन धरि संग राखि केवल एक-दोसर सँ परिचयात्मक वार्ता करथिन। ओ अपने लजेबो करथिन तऽ सखि-बहिनपा आ कन्याक परिवारक स्त्रीगण समाज हुनका सबहक बीच आबिकय गार्हस्थ धर्म प्रति हुनका सब मे सजगता सँ भरल कतेको तरहक संवेदना भरैत रहथिन। कखनहु मौहक हेतैक, कखनो प्राती गाबिकय दिनचर्याक दायित्व सँ दुनू नवविवाहिता केँ बोध करायल जायत, दिन भैर सखी-बहिनपाक संग तरह-तरह केर गप-सरक्का मे विवाहित जीवनक रस सँ परिचय… हर तरहें एकटा सुसभ्य समाजक निर्माण हेतु नायक-नायिका केँ तैयार कैल जा रहल अछि। यैह थीक मैथिल ब्राह्मणक वैवाहिक विध-व्यवहार। चतुर्थी भेलाक बाद ब्रह्म मुहुर्त सनक पवित्र वेला मे पुनः स्नान आ सिन्दुर दान सँ निर्णीत वैवाहिक कार्य करब आ तहिया सँ कन्या पर पूर्ण अधिकार प्राप्त कय दुइ शरीर केँ एक शरीर मे परिणति प्रदान करबाक अधिकारी बनब सचमुच मैथिल ब्राह्मण केँ आर कोनो मनुष्य प्रजाति सँ भिन्न आ उत्कृष्ट प्रमाणित करैत अछि।
साल भरिक विध-व्यवहार ओ द्विरागमन
विवाह भेलाक बाद एक साल धरि विभिन्न अवसर पर वर ओ कन्याक बीच मे स्थापित नव सम्बन्ध केँ आरो प्रगाढता प्रदान कैल जाएछ। हरेक व्यवहार मे एकटा नव शिक्षा भेटैछ। अपन जीवन, परिवार प्रति कर्तब्य आ मानव संसार संग सहकार्य – सब किछु एहि शिक्षा मे निहित छैक। संगहि अपनहि सन-सन बेटा व बेटीक उत्पत्ति करब वैवाहिक जीवनक मुख्य लक्ष्य मे सँ एक होएत छैक। मधुश्रावणी, बरसाइत, कोजगरा, आदि अनेक सोझे साले व्यवहार भेलाक बाद द्विरागमन यानि कन्याक विदागरी करबैत सासूर (वरक घर) लऽ जायल जाएछ। आर फेर ओत्तहु ओतबे विधान कन्या संग – कन्या आब कनियां मे परिणति पाबि जाएछ। पुतोहु बनिकय ओ अपन नव घर – जे हुनक अपन स्थायी घर थीक ओतय पहुँचि गेली अछि। ताहि सँ विध-विधान आ गान केर मार्फत हुनका मे एतेक ज्ञान देल जाएछ जे आब ओ एहि परिवार आ अपन पति केर संग मानव संसार केँ सुन्दर बनबैत रहती। यैह थीक मोट मे मैथिल ब्राह्मण समुदायक विवाह। बहुत अन्य जाति ओ समुदाय मे सेहो ब्राह्मणहि समान व्यवहार करबाक विधान देखबा-सुनबा मे अबैत अछि। मिथिलाक अनुपम संस्कृतिक ई एक विलक्षण वर्णन समान प्रतीत होएछ।
वर्तमान चुनौती
उपरोक्त समस्य विध-विधान आ परंपराक चर्चा आजुक समय मे अपन प्रासंगिकता पर अपने विचित्र प्रश्न सब ठाढ करैत देखाएत अछि। लोक-समाज मे एहि मूल संस्कार प्रति आकर्षण विभिन्न कारण सँ कमैत देखाएत अछि। एना लगैत अछि जेना ऊपर वर्णित विलक्षण व्यवहार आजुक युग मे अप्रासंगिक आ अव्यवहारिक बनि गेल अछि। मैथिल ब्राह्मण समुदाय मे सेहो आब अन्यान्य समुदाय जेकाँ एक्के राति मे सब किछु निर्धारित कय लेल जाएछ आर दोसरे दिन सँ वर-कन्या सामान्य जीवन मे आबि जाएछ। बियाहक घर मे एना बुझाइतो नहि छैक जे सचमुच केकरो विवाह सम्पन्न भेलैक अछि। एकर आध्यात्मिक महत्व भले खतरनाक आ प्रदूषित बुझाएत हो मुदा अपना केँ नीक आ बड प्रतिष्ठित माननिहार सब आब जबरदस्ती अपन कुटुम्ब सँ ई एकरतिया व्यवहार करबाक लेल बाध्य करैत छथि।
एतय एहि परिस्थितिक पाछूक कारण पर ई लेख चुप रहैत प्रश्न मात्र छोड़ैत अछि जे पाठक स्वयं सोचता। परन्तु मैथिल ब्राह्मण जिनका हम बेर-बेर अनुपम, उत्कृष्ट, विलक्षण आ बौद्धिक कहैत आबि रहलहुँ अछि तिनकर विध-व्यवहार मे उपरोक्त विधान आडंबर कहायब आ संछिप्त समय मे सब कार्य संपन्न कय लेब किछु आर नहि तऽ एतेक तऽ संकेत दैते अछि जे आब ओ पौराणिकता आ पवित्रता ताहि रूप मे नहि रहि गेल अछि। आब २० सँ नीचां बामोस्किल कोनो कन्याक विवाह लेल माय-बाबु सोचैत हेता। कौमारीत्वक सीमा आब मासिक धर्म आरम्भ हेबाक समय केँ शायदे कियो मानैत हेता। स्त्री शिक्षाक प्रसारक कारण सहजहि निम्नतम उमेर २५ सँ ऊपर जाएत देखा रहल अछि। जखन कि पहिलुका समय मे २५ वर्ष धरि कम सँ कम ३-४ बच्चाक माय बनि जाएत छलीह मैथिल युवती।
आब गार्हस्थ जीवनक शिक्षा किंवा यौन शिक्षा व अन्य वैवाहिक सम्बन्ध पर शिक्षा लेल गीतहारिक आवश्यकता रहिये नहि गेल अछि। टेलिवीजन आ फिल्म सँ ई सब शिक्षा कुमारि बालिका वा कुमार बालक मे सेहो घर कय रहल अछि, घर कय गेल अछि सेहो कहि सकैत छी। गोत्र मिलेनाय त पार लागियो जाएत छैक, अधिकार निर्णय लेल रक्त सम्बन्धक जाँच विरले कोनो परिवार मे पालन कैल जाएत अछि। आब त सुनबा मे ईहो अबैत अछि जे दूरक कजन सिस्टर संग लव मैरेज भऽ गेलैन फल्लाँ ब्राह्मण परिवार मे। अन्तर्जातीय विवाह मे मात्र लव अफेयर्स तऽ बहुत पहिनहु होएत रहलैक अछि, मुदा अन्तर्टोलीय – अन्तर्परिवारीय विवाह आदिक वातावरण सेहो यदा-कदा सुनबा मे अबैत छैक आब। कतेको ठाम ‘लिव-इन रिलेशनसीप’ केर उदाहरण आ कतेको ठाम एकल जीवन मे जीवन बितेबाक उदाहरण सब मैथिल ब्राह्मण समुदाय मे सुनब वा देखब भले दुःखी करैत छैक कनेकाल लेल मुदा ई सब आब चौंकबैत नहि छैक।
सौराठ सभा सहित कुल ४२ ठाम मैथिल ब्राह्मणक चुनौतीपूर्ण वैवाहिक परंपराक निर्वहन लेल सभा लगैत रहल आइ सँ किछुए दसक पूर्व धरि। मुदा नहि ओ नगरी नहि ओ बाट – जानि कतय गेल ओ सब परंपरा आ कठोर नियम केर निर्वहन, आब तऽ नैन मिलल – चैन भेटल, किछु एहि तरहक अवस्था मे मैथिल ब्राह्मण सब खूब देखाएत छथि। कतेको महानगर मे आधुनिकताक नव चोला मे कम वस्त्र पहिरिकय बाजार घूमब, सपिंग मौल मे जायब आ डिस्को थेक मे थिरकब सेहो एहि समुदायक नव प्रगतिशीलताक एक नव परिचय बनि गेलैक अछि।
काल्हि आर आइ मे बड फरक छैक। कतेको प्रगतिशील ब्राह्मण विद्वान् एहि लेल लड़बाक लेल सेहो तैयार भेटैत छथि जे पुतोहु हुनका संग ड्रींक टेबल पर सपरिवार कियैक नहि बैसती। देश मे आन समाज कतेक आगू बढि गेल छैक से केकरो सँ छूपल नहि अछि। टेलिविजन पर आबि रहल सिरियल एहि सब केँ आरो मसल्ला मारिकय परसैत रहैत छैक आर प्रगतिशील मैथिल ब्राह्मण समाज केँ ओकर उदाहरण दैत देरी नहि लगैत अछि। आब संध्या-बन्धन, तर्पण, अग्निहोत्र आदिक क्रियाक संग अन्य कर्मकाण्डक बात ९०% मैथिल ब्राह्मण समाज मे करब अहाँक मूर्खता होयत। विदेहक संतान आ याज्ञवल्क्य-गौतमक वर्तमान पीढी मे एहि नव परिस्थिति केँ हम कलंक नहि कहि सकैत छी, ई प्रगतिशीलताक द्योतक थीक। एकरा अहाँ वर्णसंकर केर उपाधि देबैक तऽ झगड़ा भऽ जायत। अहाँक बात केँ अंग्रेजी मे इल्लाजिकल एण्ड कन्जर्वेटिव थाउट्स कहिकय नकारि देल जायत।
निष्कर्षः
हमर निष्कर्ष स्पष्ट अछि – जँ अहाँ कुलदेवी (कुलदेवता) सँ दूर गेलहुँ, अहाँ अपना केँ ब्राह्मण कहनाय छोड़ि देल जाउ। यदि अहाँ अपन मड़ौसी सँ स्नेह नहि रखलहुँ, अहाँ झूठक कुलाभिमानी टा कहायब। पारिवारिक शिक्षा-दीक्षा मे पुरखा (पितर) केर सम्मान नहि रखलहुँ, अहाँ विनाशक दिशा मे अग्रसर छी। यदि अपन महत्वपूर्ण रीत ओ रेबाज केँ काट-छाँट कय रहल छी तऽ बुझि जाउ कालक ग्रास बनि कालक मुंह सँ पाचनथैलीक वनवे मे प्रवेश कय चुकल छी।
कतबो पलायनक दंश सँ आर विखंडित मिथिला समाज सँ उपेक्षित भऽ अहाँ देश-परदेश जेबाक लेल बाध्य भेलहुँ, परन्तु मानव कल्याणार्थ जाहि तरहक उच्च मूल्यक जीवन पद्धति अहाँ जिबैत रहल छी तेकरा बिसरनाय घोर पापाचार होयत। एहि चुनौती केँ मेटेबाक लेल आधुनिकता आ प्रगतिशीलताक ढोंग करैत टोकनिहार केँ दाकियानूस-झाड़फानूस कहब अहाँ द्वारा फूक मारिकय तूफान केँ रोकब समान अछि।
अहाँ कतहु छी, अपन पुरखाक सम्मान मे ओ सब रेबाज केँ जीबित राखू जे अहाँ केँ विलक्षण मैथिल ब्राह्मण समाजक रूप मे पहिचान देलक। अहाँ जहिना नैयायिक रहलहुँ, जहिना मीमांसक रहलहुँ, जहिना साहित्य श्रृंगार आ सुसंस्कृत रहिकय मानव हितार्थ सब दिन सब कार्य कएलहुँ तहिना अहाँ आइयो अपन समाजक विलक्षणता केँ उच्च मूल्यक परंपरा केँ निर्वाह करैत कय सकैत छी। जरुर वैवाहिक सीमा २५ सँ कम नहि करू, परन्तु एहि लेल जरुर सोचू जे आखिर वैवाहिक परंपरा मे रक्त जाँचक प्रक्रिया, सिद्धान्त लेखनक प्रक्रिया, चारि दिनक व्रत सहितक विवाह आ फेर चतुर्थीक प्रक्रिया – ई सबटा कोना निर्वाह होयत।
अहाँक सोझाँ तऽ सब सँ पैघ चुनौती आब ई अछि जे विवाह सम्बन्ध तय कतय करब? सभागाछी जायब से ऊहि नहि रहि गेल अछि। सभागाछी अपन वर्तमान प्रवासक नगरहि मे बनायब से सामर्थ्य रहितो कंजूसी करैत छी। आपस मे संपूर्ण मैथिल ब्राह्मण समाज कोना संगठित आ सामर्थ्यवान समुदायक निर्माण करब, सब मूल्य ओ मान्यताक निर्वाह करब से ऊहि नहि कय अन्ठाकय सूतल रहब… तऽ भने कहलैन विद्वान् इतिहासकार कुमार गिरिजानन्द सिंह जे सूतल लोक केँ घरोक लोक नांघिकय चलि जाएत छैक, अहाँ सब नंघाइत रहू आ फूसियो अपन जातीय पहिचानक झूठ अभिमानक गोलायसी झाड़ैत रहू। मुम्बईवासी मैथिल ब्राह्मण समुदायक किछु लोक आइ जागि गेला अछि। ओ सब वर-वधू परिचय सम्मेलन करय जा रहला अछि २३ अक्टुबर मुम्बई मे। आशा करैत छी जे अपनहु लोकनि जागब आ हेरायल मैथिल पहिचान केँ सब जाति ओ धर्मक लोक संग मिलिकय फेर सँ मिथिला राज्य बनायब जाहि सँ भारतीय संघ केर ऐतिहासिक निर्माण मे अहाँक देल योगदान सेहो सम्मानित होएत संविधान केँ पूर्णता प्रदान करत।
जय मिथिला – जय जानकी! जय मैथिल ब्राह्मण समाज!