गोनू झा सँ दिल्ली मे भेंट भेलः कथा
– प्रवीण नारायण चौधरी
भारतक राजधानी दिल्ली – भौगोलिक दृष्टि सँ हिमालय सँ १६० किलोमीटर दक्षिण, समुद्रतल सँ लगभग ७००-१००० फीट ऊंचाई पर, ५१ किलोमीटर लंबा आ ४९ किलोमीटर चौड़ा, ८०० वर्ग किलोमीटर शहरी, ७०० वर्ग किलोमीटर ग्रामीण आ यमुना नदीक किनार मे बसल अछि। सब दृष्टि सँ सम्पन्न ई महानगर करोड़ों लोक केर आश्रयस्थल थीक। एकर माटि मे आ पानि मे बड पैघ शक्ति कहल जाएछ। एतय मूर्खहु लोक बीए पास मानल जाएछ। संसार मे कतहु जोगार नहि बैसय तऽ दिल्ली आबि जाउ, कहियो खाली पेटे नहि मरब।
पहिलुका गोनू झा केर नहि ई एगो नवका गोनू झा केर खिस्सा थीक। मिथिलाक प्रसिद्ध चालाक, महान् गप्पी, धुरंधर ठक आ अपन बुद्धिमता सँ केकरो धूरा फँका देनिहार गोनू झा केर नाम कम सँ कम भैर भारत मे त सब जनिते अछि। बिहार आ बिहारी अस्मिता केर व्हाट्सअप प्रचार मे सेहो गोनू झा केर नाम खूब लेल जाएत अछि। मुदा एतय दिल्लीवला गोनू झा केर गप कहबाक अछि। परिप्रेक्ष्य केर परिधि मूल गोनू झा सँ भिन्न नहि, लगभग ओतबे, कहि सकैत छी जे हुनको सँ किछु बेसिये दिल्लीक गोनू झा मे भेटल।
एक दिन मैसेज केलाह जे भाइ हमर एतय बहुत पैघ कारोबार अछि। अहाँक मैथिली-मिथिला प्रति समर्पण देखि हम अपन मातृभूमिक प्रेम मे सराबोर भेल छी। अहाँ सँ भेंट करबाक इच्छा अछि। जतय कहब अपन गाड़ी लऽ कय आबि जायब आ अहाँ केँ दिल्ली सेहो घूमा देब। स्वाभाविके छैक, दूर परदेश मे कियो एना अपन प्रशंसक भेटैथ आ कहैथ जे मैथिली-मिथिला लेल भावना जागि गेल अछि तऽ जरुरे हमरा एहेन दीवाना मैथिल ओहेन लोक सँ प्रभावित भऽ भेटबाक, वार्ता करबाक आ योजना बनबैत काज आगू बढेबाक कार्य करत। ताहि मुताबिक भेटबाक स्थान तय भेल। मिथिला चौक, कनाट प्लेस पिपलेश्वरी मन्दिर – बाबा खड़गसिंह मार्ग पर अवस्थित प्रसिद्ध हनुमान मन्दिरक ठीक दोसर बगल जतय एकटा अल्लाहताला केँ नमाज अदा करयवला सुन्दर छोट सनक मस्जिद सेहो अछि। मन्दिरे-मन्दिरक बीच मस्जिद ओनाहू मिथिलाक वर्तमान संस्कृति केँ मोन पारि दैत अछि, पाँच टा मन्दिर अछि तऽ एकटा मस्जिद सेहो अछिये। ओत्तहि भेटबाक स्थान जेना कि हम अपन दिल्ली यात्रा मे सब केँ कहैत छियनि ओतय हुनका आबय लेल निवेदन कएलहुँ।
ठीक निर्धारित समय पर गोनू बाबु आबि गेल छलाह। हाथ-ताथ मिलेलाक बाद कनीकाल जे अपना सब मे होएत छैक, एक-दोसराक खूब प्रशंसा आ वाहवाही करैत एकदम जोश सँ भरल बात सब करब, ओ औपचारिकता सब पूरा भेल। गोनू बाबु हमर लेखनीक विशेषता सँ अपना केँ प्रभावित मानि यथार्थ धरातल पर उतैर काजो ओतबे करबाक बात केँ अत्यन्त महत्वपूर्ण आ सर्वथा प्रभावशाली कहलैन। एतेक धरिक बात हमरा लेल सामान्य छल। तेकर बाद ओ अपन मनक बात कहैत कहलनि जे भाइ हमरो इच्छा अछि जे किछु करी अपन मातृभूमि लेल। अहाँ बताउ जे कोन काज हम करी जाहि सँ सेवा सेहो होयत आ हमरो जीवन धन्य होयत। हम कहलियैन जे सेवाक सब सँ नीक काज होएत छैक अपन गाम, ओतय सँ शुरु करू आ जतेक दूर धरि जा सकी ओतेक दूर धरि जाउ। मिथिला सेवाक बाट सेहो अपनहि गाम सँ शुरु होएत अछि, ई हम अपन अनुभव सँ कहि सकैत छी। उदाहरण सेहो देलियैन। कहलियैन जे देखनहि होयब जे गाम केर विकास लेल कोनो सरकारी कोष सँ किछु निर्माण कहियो नहि भेल अछि, जे किछु अछि ओ पक्का गामक लोक अपने स्वयंसेवा सँ बनौलक आर ओकरा बचाकय राखि रहल अछि तऽ ओकर प्रतिष्ठा चारूकात होएत छैक, यशगान आइयो लोक सब गबैत छैक। चाहे ओ कोनो पोखरि हो, या इनार हो, या मन्दिर, बाग-बगीचा, हाट अथवा सार्वजनिक हित केर चारागाह, इदगाह, मशान, कब्रिस्तान, मैदान किछो हो।
गोनू झा काफी प्रभावित होएत रहलाह सब बात सुनिकय आ तेकर बाद गनाबय लगलाह अपन योगदानक लंबा लिस्ट। कहलैन जे भाइ, अहाँक बात सँ आँखि भैर गेल। हमर योगदान एत्ता जुनि पूछू। गामक लोक लेल कि नहि केलहुँ। फल्लाँ मन्दिर मे सब काज करीब-करीब हमहीं करेलहुँ। ओ पोखरिक महार ढहि गेल छल तेकरा चारूकात महार निर्माण करबेलहुँ, आ अपन बाबाक स्मृति मे ओतय एकटा खूब नीक घाट सेहो बनबेलहुँ। मुदा कि कहू भाइ, हमर गामक लोक नीक नहि। करू सबटा हम आ नाम लेबय बेर मे कतहु एको बेर पूछबो नहि करैत अछि। एहसानफरामोशी सँ हमरा बड नफरत होएत अछि भाइ। हम भितरे-भीतर चौंकबो केलहुँ, मुदा पहिले भेंट छल, हुनका कोनो तरहें मुंह मलिन होएन तेहेन विचार अपना भीतर आबय देनाय हमरा लेल पाप होइतय ताहि सँ चुपचाप विहुंसैत हुनकर सब बात सुनैत रहलहुँ। कहलियैन, भाइ! कीर्ति कहियो मरय नहि छैक। अहाँक काज छी करैत चलू। अन्ततोगत्वा ओ कहलैन जे भाइ ई मिथिला राज्यक आन्दोलन मे हम सब कि कय सकैत छी? एम्हर केहेन गुंजाईश छैक सेवा करबाक? ओ बस इशारा केलैन तऽ बात बुझय मे आबि गेल जे हिनकर मन राजनीति मे किछु करबाक छन्हि। हम कहलियैन जे भाइ एहि मे बहुत लोक कार्य कय रहला अछि आ हुनका सब संग अहाँ सेहो अपन योगदान दैत कार्य कय सकैत छी। ई त बहुत सौभाग्यक बात भेल जे अहाँ सनक सम्पन्न लोक एहि मातृभूमिक स्वाभिमान हेतु बलिदानी बनय लेल तैयार छी।
हुनका कहैत रहलहुँ मुदा अपन अन्तरात्मा हमरा रोकैत रहल। जे लोक गामक योगदान पर नाम नहि लेला सँ एना विचलित छथि, एहसानफरामोशी आदिक बात कय रहला अछि, ओ कहू जे एहि असन्तुलित-अनियंत्रित क्रान्ति मे कखन केकरा सँ कोन कारण सँ दुःखी हेता से कहि सकैत अछि। तथापि, पहिल भेंट मे हुनकर लिलसा केँ देखि हम कहैत गेलियैन आ ओहो हमर बात केँ नापि-तौलि अपन हँ मे हँ मिलबैत बात आगू बढबैत रहलाह। एहि तरहें किछु काल बीत गेलाक बाद हमहीं आग्रह केलियैन जे आउ किछु चाह-पान कय ली। बगले मे कौफी होम मे जाय दू कप कौफी पीलाक बाद फेर बाहर निकैल शोभित यादव केर पान दोकान पर सेवा ग्रहण कएल आ आब गोनू बाबुक वापसीक बेर सेहो भऽ गेल छल। ओ कहलनि जे भाइ आब एकटा आरो मिटींग अछि। बिजनेस एसोसियेट केँ समय देने छी। हम कहलियैन जे जरुर जाउ, फेर दोसर दिन भेंट हेतैक। ओ प्रस्थान कएलाह। कनेकाल हम जानकी केँ सुमिरैत रहलहुँ जे हे भगवती! अहाँ सच मे कतेक दयालू छी जे अपन मिथिलाक काज लेल अपने-आप कार्यकर्ता सब केँ ठाढ करैत रहैत छी। हमरो बेर भेल, ओतय सँ विदाह होएत मेट्रो पकड़ि घर एलहुँ। फेसबुक पर अपडेट चढा देलहुँ जे भगवतीक असीम अनुकम्पा जे आइ गोनू बाबु सनक लोक सँ भेंट भेल। हुनक समर्पण भावना देखि मोन आह्लादित भेल। ईश्वर हुनका सनक आरो बहुते लोक एहि आन्दोलन केँ दैथ। हमरा सबहक सपना जे मिथिला संविधान मे स्थापित हो से पूरा होयत। आदि।
एवम् क्रम मे गोनू बाबु संग हमर सहकार्य भरपूर होमय लागल। हुनकर समर्पण देखि चारूकात डुगडुगी बजेबा सँ सेहो हम नहि पछुएलहुँ। किछु लोक जे गोनू बाबुक आदति सँ परिचित छलाह ओ सब गोटेक दिन हमरा कहबो केलैन जे अहाँ एखन चिन्हलियैन नहि, ओ जाहि फेरा मे छथि ताहि मे समर्पण मात्र ढोंग थीक, धोखा हेब्बे टा करत… हम ओहि बजनिहार सब केँ अन्फ्रेन्ड कय दी ई सोचि जे केहेन लोक छथि जे एकटा सुयोग्य आ कर्मठ लोक केर समर्पण पर सवाल आ सन्देहक घोरन झाड़ैत छथि..। एम्हर गोनू बाबु एक, दू, तीन, चारि… जतेक काज आयल सब करैत गेलाह। एकटा नव उत्साहक माहौल बना देलनि। अपन चुस्त-दुरुस्त व्यवस्थापन ओ लगन सँ मिथिला क्रान्ति नव मार्ग पर अग्रसर भऽ गेल। कतेको लोक एहि वेग केँ देखि झमारल अनुभूति करय लागल। एम्हर गोनू बाबु आब मंचक शान बनि गेलाह। जाबत कोनो मंच पर ओ नहि आबैथ ताबत बुझू जे कार्यक्रमक शान तक नहि बढय। दिल्लीक संग हम दिलवाली भूमिक प्रयोग करैत छी, कारण दिल्लीक विस्तार ततेक पैघ छैक मानू जेना हमरा सबहक हृदय महासागर समान, किछु तहिना दिल्लीक विभिन्न क्षेत्र आ ताहिठाम पसरल अपन मिथिलाक लोक सब देखायल अछि। ताहि दिलवाली भूमिक कोण-कोण सँ मैथिली-मिथिलाक कोनो टा स्वर फूटैक तऽ गोनू बाबु अपन उपस्थिति सँ ओहि समाज बीच पहुँचिकय ओ सब उपकार करैथ जेकर आवश्यकता छल।
एक बेर संयोगवश गोनू बाबुक किछु विचार आ हमर विचार मेल नहि खेलक। अपन आदति सँ लाचार हम निरपेक्ष भाव सँ एक एहेन प्रस्ताव केँ मानि लेलहुँ जाहि मे गोनू बाबुक सोच हमरा सँ इतर छल। जानि नहि कियैक, गोनू बाबु हमरा पर तेना तरंगित भेलाह जे सवालक झड़ी दागि हमरे अपन सिद्धान्त सँ उतैर हुनकर प्रस्ताव केँ मानि लेबाक दबाव देबय लगलाह। हम ई जनैत छी जे जानकी केर प्रभाव सँ स्वयंनिर्मित कार्यकर्ता गोनू बाबु जेकाँ कतेको एता, कतेको जेता, तैँ अपन निरपेक्ष सिद्धान्त सँ उतरब आत्महत्या समान जघन्य पाप होयत, ई सोचि हुनका जबरदस्त फटकार दैत शान्त केलहुँ। लेकिन तेना होएत नहि छैक जे अहाँ किनको प्रकृतिक विरुद्ध अपन सिद्धान्तक चाप चढा देब। बात ओहिना भेल जेकर आशंका पहिने सँ छल। गोनू बाबु आब अपन निर्णय स्वयं लेबय लगलाह आ हमरे काटिकय आगू बढय लगलाह। तैयो, अपन स्वाभिमानक आगाँ हमर स्वत्व केँ रसातल मे धँसा अपन निजत्व केर आभार सँ आभारी बनेबाक कूचेष्टा मे लागि गेलाह। निरपेक्षता मे ई शक्ति होएत छैक जे द्वंद्व सँ निजात भेट जाएत अछि। हम दाबल जेबाक योग्य कोनो काज नहि कएने रही संयोगवश… तथापि एकटा नीक समर्पित लोक मे एना अनायास परिवर्तन हुनक चालि-प्रकृतिक कारण ई कतहु सँ हमरा विचलित नहि केलक। बल्कि आत्माक ओहि कथन केँ पुष्टि कय देलक जे अपन कर्तब्यपरायणता मात्र मुख्य ध्यय हेबाक चाही। ओ जहिना भेटलाह तहिना गेलाह, से हमरा लेल। अपना लेल नहि। आब चाप चढले रहतनि जे अपन छवि केँ बरकरार राखथि।
ई कथा अपने सब सँ एहि लेल शेयर कय रहल छी जे आत्मगौरवक बोध हेतु विदेहक धरतीक हरेक संतान आ हुनक स्वयंसेवा सदैव सराहना योग्य होएत अछि, परन्तु योगदान उपरान्त आत्मप्रशंसाक भूख आ वैचारिक भिन्नता केँ स्वत्वक अपमान बुझनिहार गोनू बाबु लोकनि संग दूर धरिक यात्रा भले संभव नहि भऽ सकय, तैयो अपन काज मे अपन-अपन क्षमता मुताबिक सब कियो लागल रही।
जय मिथिला – जय जानकी!!
हरिः हरः!!
पुनश्चः ई कथा यथार्थ केर परिचायक थीक, पात्र काल्पनिक ओ नाटकीय चित्रण अनुरूप चुनल गेल अछि। एकरा पढला उपरान्त बहुतो मित्र केँ लागत जे ई हमरे पर लिखल गेल अछि, परन्तु सच ई छैक जे ई मात्र अहाँक प्रवृत्ति पर लिखल गेल अछि। एहि कथा मे हम स्वयं एक पात्र छी, हम अपने कूपात्र भऽ सकैत छी। परन्तु केन्द्र मे हमहीं आ अहाँ छी, बाकी समय केर गवाही आ समाजक संङ्गोर अछि। तथास्तु!