कृष्णाष्टमी विशेष
सौभाग्यक बात अछि जे वर्तमान समयक अनेक मैथिल स्रष्टा अपन सुमधुर मातृभाषा मैथिली मे नव-नव रचना आ पुरान कालजयी रचना सबकेँ सेहो हमरा लोकनिक सोझाँ मे अनैत रहैत छथि।
अवसर कृष्णाष्टमीक हो आर मैथिल सर्जक लोकनिक सृजनशील मन चुप रहि जाय ई संभवे नहि अछि, आइ भोरे-भोर सोसल मिडिया पर कतेको रास कवि ओ विद्वान् लोकनि भगवान् कृष्ण केँ कोना स्मृति मे अनलैन अछि तेकर एकटा संकलन हेतु ई आलेख एतय राखि रहल छी।
१. आइ जन्माष्टमी, कन्हैयाक जन्मदिन, मोन पड़ि आयल दशो अवतारक गाथा जे कवि जयदेवक अनुपम रचना, ओकरे अपन जननीभाषा में कहक प्रयास, कतेक सफल से नहि जानि, तैयो कने पढबै अवश्य सबगोटे से विश्वास।
*दशावतार स्तुति*
प्रलयकाल उत्ताल समुद्रक,
प्रबल तरंगक बीच अबाध ।
धैल रूप माछक आ कएलहुँ
वेदक रक्षा जें निर्बाध ॥
अति विशाल पीठहिं पर धारण
कैल, धरा केँ हे मतिमान ।
ओहि घर्षण केर कठिन चिह्न सौं
शोभित, काछु रूप अम्लान ॥
जेना शशांकक कलुषरेख हो,
तहिना पृथ्वी शोभित भेलि ।
जखन अहँक शूकर रूपक, दू
दांत, ऊपर अटकाओल गेलि ॥
बनि नरसिंह वक्ष केँ फाड़ल,
अस्त्र बनाओल नख सुविशाल ।
मारल दुष्ट हिरण्यकशिपु केँ,
जांघ ऊपर, ओहि संध्याकाल ॥
असुरराज बलि केर सब गौरव,
तखनहि भूलुंठित भय गेल ।
जखनहि वामन रूपेँ छललहुँ,
चरणोदक केर अमृत देल ॥
हे केशव ! जगतक सब तापक
आ पापक करबा लेल क्षार ।
क्षत्रिय रक्त बहाओल जल सम,
बनलहुँ परशुराम अवतार ॥
महायुद्ध में दशो दिशा केर
लोकपाल, प्रमुदित अभिराम ।
कैल समर्पित रावण केर दश
शिर, बलि रूपेँ, राघव-राम ॥
रूप लेल बलरामक जखनहि,
गौरवर्ण तन, कर हल-युक्त ।
कालिंदी आ नीरद संगहि,
नील वसन में बनि संयुक्त ॥
यज्ञ पशुक क्रंदन सौं पीड़ित,
बनल अहिंसा केर प्रतिमान ।
कैल भर्त्सना कुलिश विधानक,
बुद्ध रूप धारी द्युतिमान ॥
म्लेच्छ समूह होयत निरवंशे,
जखन चलाएब असि विकराल ।
धूमकेतु सम प्रलयंकारी
कल्किरूपधारी बनि काल ॥
कवि जयदेवक कहल मनोहर,
जग कल्याणक सुन्दर गीत ।
सुनि आनंदित भय केँ केशव,
भक्त हृदय में बढबथु प्रीत ॥
-शंकर कुमार “मधुपांश”
२. कृष्ण जन्मोत्सव पर हार्दिक शुभकामनाक संग हमर लिखल पोथी ‘गीतमणि’ सँ एकटा कृष्ण भजन । आशा अछि एकरा गाबि अपने लोकनि आनंदित होयब । जय जय श्री श्याम ।
– मणिकान्त झा ‘मणि’
वंशी अधर धरत श्याम, गावत साँवरिया।
राधा संग नृत्य करथि, नवल वसुरिया॥
कदम डाल झूले लाल, नाचत गिरिधर गोपाल।
गोपी चित्त मन उदार, सावन इजोरिया॥
नन्दलाल छवि कमाल, वृन्दावन धन नेहाल।
साँझ पड़त जुटत नारि, तजल दुअरिया॥
पावन मथुराक जेल, जहाँ श्याम जन्म लेल।
गोकुल भू भाग्यवान, हरिक नगरिया॥
धन्य भाद्र कृष्ण मास, कंसक हो सर्वनाश।
हे हरि मणिकांत दास, चरणक गोहरिया॥
वंशी अधर धरत श्याम, गावत साँवरिया….
(तर्जः ठुमक चलत रामचन्द्र बाजे पैजनियां)
३.
भगवानक जन्मदिन रहे
सथर सथर पानि नै पड़े
ई कहियो भऽ नै सकैए
देखुन आई बिलाटलगर कते निक लगैए
– नारायण मधुशाला
४.
पार्थ मोह छोडूँ
देखूँ हमर विराट रूप
जरूरी अछि सृष्टि क लेल
मोह त्यागब ?
नहि केशव नहि
इ त अधर्म हेएत
जीवन कि सृष्टि के लेल
जरूरी अछि
मोह बचल रहय
जखन टूटि जाइत अछि
मोह
दुनियाँ खतम भ जाइत अछि
हे माधव
बस एतबे प्रयास होय
जे मोह ने ककरो टूटय
प्रेम क ताक में
संसार अछि
नहि कतहूँ कोनो संशय
आवश्यक नहि
कथमपि आवश्यक नही प्रलय
मोह टूटला सँ
प्रेम नहि द्वेष पनपैत अछि
स्व क परिधि
नित्य घटैत अछि
बढैत अछि लोभ लालच संग
आत्मघाती प्रवृति |
सब मित्र बंधु के कृष्णाष्टमी के हार्दिक शुभकामना |
नीलमाधव चौधरी
25 08 16
५.
हे नाथ नारयण वासुदेव ॥
यौ मोहन मुरारी यौ कृष्ण गिरिधारी,
हरि माधव जी सुनियौ ने,
अहाँ मुरली बजबियौ ने!
कहै गौखुल के नारी संग राधा सुकुमारी,
हे गोविन्द सताबियौ ने,
धुन मुरली बजबियौ ने॥
होए छी मगन रुप देखिते मनोहर,
सुधि बुद्धि हेराबै छी, यौ श्याम सुन्दर,
अहाँ नेहा लगबियौ ने,
धुन मुरली सुनबियौ ने,
यौ मोहन मुरारी, यौ कृष्ण गिरिधारी,
हे केशव जी सुनियौ ने धुन बेणु सुनबियौ ने॥
अहाँ लऽ बेकल य सब नरनारी,
हे नाथ नारायण बाँके बिहारी,
आउ महा रास रचबियौ ने,
धुन मुरली सुनबियौ ने!!
जय भोले ।
– विमलजी मिश्र
६.
श्याम ! पुनि बंशी आबि बजाउ ।
श्रवण सुखद ओ स्वरक न्यास सँ मनमे मोद बढ़ाउ।
पीत वसन सँ निर्गत आभा चयमे देह नुकाउ।
माय यशोदा केर वचन सुनि असमय हास देखाउ।
चोरी कय निजबंधु सभक घर उखरि बन्धन पाउ।
“माया” भय निज कपट खेलसँ प्रेमक सोत बहाउ।
–श्रीमती इंद्रमाया देवी /मिथिला ,अंक -७ ,१३३७
पोथी – मिथिलाक विदुषी महिला /अरून्धती देवी
संपादन – Ramanand Jha Raman
– विकास झा
७.
हे द्वारिकाधीश !
बिना काज कैने कोन मुँहे बोनि माँगू ? नहि माँगब तs खायब की ?नहि खायब तs जीयब कोना ?नहि जीयब तs अहाँके भजब कोना ? हमरा जियाकs राखब अहूँके बेबसी अछि गोपाल। ई अलग बात जे अहाँ हमरा सन-सन अकर्मण्य केँ पहिने चेता देने छी, ‘कर्मण्यैवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’।किछु मँगैत लाज तs होइये मुदा, जानि लिअs मधुसूदन हम अयाचीक संतान छी।अभाव मे मरि सकैत छी, मुदा अहाँ छोड़ि दोसर सँ याचना नहि करब…नहि करब…नहि करब।आब जानी अहाँ मालिक ! सब छार-भार अहींक कपार।
- डा. चन्द्रमणि झा
८.
बाधक टटका हाल
अशलेषहु मे लेश मात्र नहि
मग्घो नै नीरौलक
पंद्रह तारिख जन्मअष्टमी
बिनु बरखे बीतौलक ।
प्रायः पहिले पहिल ई देखल
कएने रहइ सुबेर
अओतइ कोना अगहन , जँ
भादब दऽब, उबेर ।
कहैत रहै विपटा, कऽ देबै
तीने दिनमे अकाल
लागै ओकरे करामात सन
बाध जरै एहि साल ।
गंगा, कोशी जे कएने होथि
लएने आबथु बाढि
मुदा, ई कमला गुमसुम बैसलि
रोपल फसिल सुखाइ ।
कतऽ नुकएलह इनर देवता
दऽहक कनिको ध्यान
गिरहत लागति बूड़ि रहल छै
सुखाऽ रहल छै धान ।
-अमरनाथ झा “अमर”
९.
पूज्य पितामह स्व. पं. सत्यदेव झा रचित श्री कृष्ण भजनक संग अपनेँ सभगोटेकेँ जन्माष्टमी केर अनेकानेक शुभकामना!
श्री कृष्ण जीकेँ पद अनमोल,
कोना मन त्यागब हे!
मथुरामे प्रभु जन्म लेलनि,
गोकुल पलना डोल !
कोना मन त्यागब हे!!
दूध पिबैते पुतना मारल,
ब्रजमे बाजल ढ़ोल !
कोना मन त्यागब हे!!
सत्य कहय सभ देवकीलाला,
जग अछि डोलमडोल !
कोना मन त्यागब हे!!
जन्माष्टमीमे बाबूजीक मातृक मौआही आएब-जाएब बेसी रहैत छल। आइ अनायास मोन मौआहीमे मनाओल जाएबला जन्माष्टमीक अद्भुत उत्सवक कल्पना सागरमे ल’ क’ च’ल गेल।
– मनीष झा ‘बौआभाइ’
१०.
माटिक माला पियर दुशाला
मोर मुकुट भव सुन्नर हे !
कदम गाछ नहु मुरली बजाबैथ
अदभूत रूप मनोहर हे !!……….१
मधुवन मोहन रास रचाबैथ
खेलैथ नुक्का चोरी हे !
बाल सखा संग मटकी फोरैथ
गोपि संग करैथ ठिठोरी हे !!……..२
मेघ वरण मुँह चानन चमकय
भोरक लाली ठोर हे !
बृन्दावन मे गाय चराबैथ
खेलैथ यमुना कोर हे !!………………३
सौंसे मुह पर लेपि रहल छैथ
श्याम घटा भेल गोर हे !
खोलैथ मुह ब्राह्मण देखि क
माइ बहबैथ नोर हे !!……………….४
मातृ हृदय महिमा नहि बुझल
भगवान बैसल कोर हे !
पुतना के छैथ हरल प्राण ओ
कंश असुर केलैन संहार हे !!…….५
जरा संध के देख पराओल
नाम भेलैन रणछोर हे !
हे योगिश्वर करि हम बन्दना
पूलकित भेल पोर पोर हे ………..६
– संजयकुमार झा
११.
कन्हैया ! टेरू मुरलिक तान
कज्जल सम तम, निविड़ निशा में
सजल जलद रव, दशो दिशा में
लेल जहल में जन्म, देश में ,
वैह समय सुनसान ।
कन्हैया ! टेरू मुरलिक तान ॥
शिशु घातिनि पूतना पछाडल,
दैत्य कतेको केँ बहटारल,
आइ जननि गर्भस्थ सुता केँ ,
दैछ मृत्यु वरदान ।
कन्हैया ! टेरू मुरलिक तान ॥
निज मातुल रहितहुँ कंसो केँ ,
मारि कैल उद्धार धरा जें,
सहसह करइछ आइ पुनः ओ ,
जनता केँ नहि त्राण ।
कन्हैया ! टेरू मुरलिक तान ॥
कालिय दमन स्वच्छ भेलि यमुना,
अहाँ बढाओल नदीक महिमा ,
देखिऔ पुनि सरिता सबहक जल ,
हालाहलक समान ।
कन्हैया ! टेरू मुरलिक तान ॥
गोपालक सब दिनहि कहाओल,
कृषिक महत्ता केँ समझाओल,
किन्तु आइ गोवंशक ऊपर ,
लटकल कुटिल कृपाण ।
कन्हैया ! टेरू मुरलिक तान ॥
-शंकर कुमार “मधुपांश”
१२.