दिल्ली में मिथिला आ मैथिली जिन्दाबाद
मूल रूप सँ विदेह केर सन्तति मैथिल अपन विपन्न मातृभूमि पर पररोजगार अथवा स्वरोजगार सँ लिल्लोह भ परदेश बसय लेल बाध्य अछि। गृह नगर सँ महानगर लेल भेटल रेल सेवा सेहो एहि बाध्यता केर अनुकूल बुझू। साक्षर-निरक्षर सभक भर महानगर! प्रतिदिन कोंचम-कोंच रेलक डिब्बा में मडुवा ढेरी खेलाइत विदेहक विपन्न भूमि मिथिला सँ दिल्ली, बम्बई, कलकत्ता, मद्रास व् अन्यत्र मैथिल जाएत अछि रोजगार वास्ते।
दिल्ली में लगभग 30 लाख मैथिली भाषी जनमानस झुग्गी, स्लम, फ़्लैट व् शहरक बाहरी सीमा क्षेत्र में असंगठित व् छिटफुट अवस्था में रहैत अछि। लगभग तीन चौथाई जनसंख्या बुनियादी आवश्यकताक पूर्ति हेतु साधनविहीन रहि खून-पसीना केर कमाई जमा कय गाम में प्रतीक्षारत पत्नी एवम् बाल बच्चा लेल पाइ पाइ जोड़ि ओकरा सभक आवश्यकता केँ पूरा करबाक लेल दिन राति एक केने रहि रहल अछि। परन्तु एक चौथाई यानि लगभग 7 सँ 8 लाख केर मैथिल जनसंख्या मध्यमवर्गीय आ ताहू में 1% अर्थात् 700 सँ 800 मैथिल सबल ओ सुदृढ़ आर्थिक सम्पन्नताक संग राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अपन उपस्थिति दर्ज करौने छथि।
गाम सँ दूर परदेश में पहिचान केर आधार भाषा आ सामर्थ्यक आधार आर्थिक सबलताक संग सांगठनिक सामाजिक संरचनाक संग बसोवास होएछ। दिल्ली में आब परदेश कम आ गाम बेसी देखाएछ, कारण भाषिक पहिचान ओ सामुदायिक सामर्थ्य में मैथिल सब जाति एवम् धर्मक लोक विभिन्न स्तर पर मिथिला सभ्यता केँ स्थापित कय चुकल अछि। कमी विद्वत् कार्य केर संग-संग मजबूत संचार व्यवस्था स्थापित करबाक देखि एहि ठामक प्रबुद्ध ओ सामर्थ्यवान समाज आगू बढ़ैत देखि रहल छी।
जखन कि तथ्यांक सँ जागरूकताक बहुत पैघ कमी देखाइत छैक, परन्तु असम्भव किछु नहि सोचैत डेग उठेनिहार माथ पर मुरेठा बान्हि फार्ह बान्हि दू-दू हाथ करबाक लेल दिल्लीक दिलवाली भूमि पर मैदान में उतरल देखाइत अछि जेकरा शुभ संकेत कहि सकैत छी। उपक्रम खुजब आ रुकब चलैत रहत, टेलीविजन फेल, प्रिन्ट मीडिया फेल, पत्र पत्रिका फेल, बहुत किछु फेल होइतो नव खुजैत रहब मैथिल समाज केर जीवटता केँ प्रमाणित करैत अछि। कहय लेल 7 करोड़ मैथिलीभाषी भारत आ नेपाल में अछि, अपन भाषाक मिठास आ महत्व केँ आत्मसात करिते स्वाबलंबन केर सुगन्ध चारूकात सुवासित करैछ। दिक्कत एतबे छैक जे दूरक ढोल सुहावन होएछ, बारीक पटुआ तीत लगैछ, दोसरक नकल में लोभ आ अपन निजता केँ दुत्कारबाक खराब आदति सँ लाचार बनि जाएत छी, नहि त मैथिली जिन्दाबाद छल, अछि आ सदा रहबो करत। नव उपक्रम एकटा लुक्खी जेकाँ पानि में भिजब आ फेर गर्दा देह पर बेरब आ तेकरा रामसेतु निर्माण में लगायब समान होयत, मैथिली केर एक पाक्षिक ‘मैथिली जिन्दाबाद’ केर दिल्ली सँ प्रकाशन होयत।
दिल्ली आ मिथिला बीच जहिना दर्जनों रेलगाड़ी सँ जनसम्पर्क अछि तहिना वैचारिक सम्पर्क वास्ते मैथिली भाषा केर पोथी एवम् पत्र-पत्रिका होयत। मैथिलीभाषी जनमानस में निजता स्थापित करबाक लेल गाम, दिल्ली व् अन्य प्रदेश केर मैथिल बीच तादात्म्य स्थापित करब आजुक पहिल आवश्यकता देखि रहल छी, कारण एहि अर्थयुग में बाजार कतेक पैघ आ ताहिठाम मांग एवम् आपूर्ति केर व्यवहारिक व्यवस्था कोना होयत, वर्तमान मिथिला लेल ई परम् अनिवार्य अछि। बाजार केर ज्ञान बिना लोक बउआ रहल अछि। एक दोसर पर आरोप प्रत्यारोप में लागल रहैछ। तेहल्ला ओकर बाजार पर कब्जा कएने अछि। अवस्था नीक नहि कहल जा सकैत छैक। तखन हारिकय किनार बैसि जायब विदेहक सन्तान केँ कथमपि शोभा नहि देत, तैं मैथिली जिन्दाबाद केर लुक्खी प्रयास अपने लोकनिक सोझाँ अछि। एकर पोषण लेल ग्राहक बनि आवश्यक विज्ञापन सेहो उचित दर पर करी, एकर प्रवाह केँ अपना भैर पूरा बल प्रदान करी, संगहि समाचार सम्प्रेषण में अपन कोनो बात छूटय नहि से ध्यान राखब। एहि प्रयोगांक केर संग ग्राहक बनू आ विज्ञापन करू फॉर्म उपलब्ध अछि, संगहि पत्रकार बनू, बिक्रेता ओ वितरक बनू, मिथिला उत्पाद केर निर्माता बनू आ जेना बनू मुदा मैथिल बनू आह्वान संग सहयोग लेल बेरमबेर प्रार्थना अछि। अपनों जुडू, सबकेँ जोडू!
हरिः हरः!!