समाजक गति आ लोकक मति: कथा

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गामक याद: लूल्हीक गोइठी बिछनाय
(नैतिक कथा)

– प्रवीण नारायण चौधरी

FB_IMG_1470882808400कोनो जमाना मे मिथिलाक गाम-घर जहिया मूल कृषि पर आधारित जीवन-यापन चलबैत रहल – ताहि समय माल-जाल चराबय हेतु गाम सँ बाहर मैदान तक एक पेरिया रस्ता, कच्ची-पक्की सब उपयोग मे अबैत छल। भैर पेट जखन खाय गाय-महिस-बरद-बकरी-भेड तखन मुनहाइर साँझ तक फेर सब केँ हाँकि कय लोक घर पर आनैत छल। रस्ता मे कतेको रास माल-जाल गोबर कय दैत छलैक। दोसर दिन भोरे सँ गोबर-बिछनी सब अपन-अपन छिट्टा लैत अलग-अलग बाट पर चलि देत छल। हर गाम मे एहेन २-४ टा घर आ ताहि घर अक्सर किशोरी वा युवती धिया सब गोबर बिछैत अपन परिवार लेल जारैन केर इन्तजाम करबा मे सहायक बनैत छल। गामक जीवन, खेती-पाती, पशुपालन, निजश्रम सँ अन्न केर तैयारी, उखैर-ढेकी आदिक उपयोगिता… कोनिया-सुप-चालैन आदिक प्रयोग सँ फटकबाक-ओलबाक-बनेबाक व्यवस्था, आर कतेक तरहक ग्रामीण जीवनयापनक तौर-तरीका गाम मे रहनिहार सबकेँ जरुर मोन मे होयत।

उर्जा यानि तापक उपयोगिता लेल घूर आ चूल्हा, तेकर मेजन लेल गोबर-गोइठा आ खररल पात सँ जारैन केर कार्य करबाक शैली आइयो थोड-बहुत भेटिते छैक। एहि क्रम मे जखन सब कियो गोइठी बिछबाक लेल जाय तऽ बेचारी लूल्ही केँ सेहो तर सऽ कुहकी उठि जाय, ओहो कहैक जे ‘सखी! हमहुँ जायब गोइठी बिछय लेल।’ आब लोक सब बुझबैक, “गै बौआ! तों केना बिछमे, तोहर हाथ ओतेक काजक नहि न छौक।” लेकिन लूल्हीक जज्बा अर्थात् लगन बड गंभीर छलैक। ओ कहैत छलैक, “साधनाक वर ओइ दिन हमरा कहय छला जे हाथ नहि तऽ कि पैर सही अछि न अहाँक लुली दाइ, अहाँ सेहो हरेक काज आम छौंडी सब जकाँ कय सकैत छी। आ से कहैत खूब जमिकय मुस्की सेहो देने छलाह। हमरा तऽ पूरा विश्वास अछि जे हम हाथ सऽ नहि तऽ पैरो सऽ….”। ततबे मे सबहक सरदारिन कहलकैक “सुन लुली! तोहर लगन केर जबाब नहि, हम तोहर संग देबौक, ई नमो-नमो वाली सबकेँ छोड, तूँ चल, हमर पंजा तोरे लेल, तोहर छिट्टा हम भरि देब, मिल-बाँटि गोइठी बिछिये लेब।” लूल्ही संतुष्ट होइत सरदारिन संग गोइठी बिछय गेल। गाम मे ई कहावत तहिये सऽ प्रसिद्ध छैक – ‘सब गेल गोइठी बिछय लेल, लूल्ही कहलक हमहुँ।’

प्रसंगवश कोनो साध्य लेल साधनक आवश्यकता होइत छैक। साधन सरदारिन केर हाथ मात्र नहि, सरदारिन केर सोच, सहानुभूति आ सहयोग लेल तत्परता – समस्त बातक संयोग सँ लूल्ही गोइठी बिछय गेल। भले ओहि लूल्हीक चक्कर मे बेचारी सरदारिन सेहो पाछाँ पडि गेल, आर संगी सब मोटामोटी सब गोइठी बिछ लेने छल। तदापि, सरदारिन आ लूल्ही खाली छिट्टा घर आपसी करैत काल विचार केलक, “चले! कोनो बात नहि छैक। आइ खाली हाथे घुरि रहल छी अपने दुनु गोरा… लेकिन एक दिन हम सब जरुर सफलता हासिल करब। हम तोरा संग रहबौक।” लूल्हीक कनुन्ची मुह पर कनेक मुस्कान आ फेर ओ पाहुन केर मुस्कान… दुनू मे तारतम्य लागय लागल। लूल्ही मोने-मन अहु लेल प्रसन्न भेल जे कम सऽ कम आब ओ साधनाक वर ‘पाहुन’ गाम औता तऽ गोइठी बिछय जेबाक प्रसंग जरुर सुनेबैन आ हमरो….!

हरि: हर:!!