मैथिली पत्रकारिता : वर्तमान एवं भविष्य
- संजीव कुमार सिन्हा
मैथिली पत्रकारिता के 111 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस भाषा की पहली पत्रिका जयपुर से 1905 ई. में प्रकाशित हुई थी। नाम था ‘मैथिल हित साधन’। तबसे लेकर मैथिली की ढ़ाई सौ से अधिक दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, द्वैमासिक, त्रैमासिक, चतुर्मासिक, अर्द्धवार्षिक, वार्षिक एवं अनियतकालीन पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें विषयवस्तु, भाषा, शिल्प और पठनीयता की दृष्टि से ‘मिथिला मोद’, ‘मिथिला मिहिर’, ‘श्रीमैथिली’, ‘मिथिला’, ‘मिथिला दर्शन’, ‘आरंभ’, ‘कर्णामृत’, विदेह ई-पत्रिका आदि उल्लेखनीय हैं, वहीं ’सौभाग्य मिथिला’ टीवी चैनल और ‘मिथिला मिहिर’ एवं ‘मिथिला आवाज’ समाचार-पत्रों ने भी मैथिली पत्रकारिता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
यह नोट करनेवाली बात है कि मैथिली पत्रकारिता को आगे बढ़ाने में प्रवासी मैथिलों, जिन्हें अपनी मातृभूमि से दूर होने पर अपनी माटी और भाषा के प्रति लगाव हो जाता है, ने सर्वाधिक योगदान दिया है। मैथिली की प्रथम पत्रिका तो जयपुर से शुरू हुई ही, उसके पश्चात् अजमेर, अलीगढ़, काशी, कोलकाता, मुंबई, दिल्ली और असम जैसे अनेक शहरों से पत्रिकाएं प्रकाशित होती रही हैं। यही नहीं, विदेशों से भी, खासकर अमेरिका और नेपाल से अनेक पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं।
पत्र-पत्रिकाओं का काम सूचना देना, शिक्षित करना और मनोरंजन करना है। पत्रकारिता जनता को जगाने का काम करती है।
मैथिली पत्रकारिता की यात्रा का अवलोकन करें तो यह सिद्ध होता है कि इसने दहेज प्रथा, बालविवाह, जातिभेद जैसी अनेक कुरीतियों को मिटाने एवं मैथिली भाषा के उत्थान, आकाशवाणी, विश्वविद्यालय, बड़ी रेल लाइन जैसे विकास के मुद्दों पर भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ध्यातव्य है कि बिना सत्ता के संरक्षण के, मैथिलों की अदम्य जिजीविषा के दम पर मैथिली भाषा आगे बढ़ रही है।
मैथिली पत्रकारिता के समक्ष कई दिक्कतें भी हैं। अभी तक इसका सर्वांगीण विकास नहीं हो सका है। अधिकांश पत्र-पत्रिकाएं साहित्य केंद्रित हैं। विज्ञान, कृषि, आर्थिक, खेलकूद, सिनेमा, राजनीतिक पत्रकारिता कम हुई हैं। उदारीकरण के बाद पत्रिकाओं की आकर्षक छपाई और सुंदर प्रस्तुति तो हुई हैं, लेकिन सामयिक और ज्वलंत मुद्दों पर विमर्शों की परंपरा सशक्त होती नहीं दिख रही है। वर्तनी की भी दिक्कत है। अभी भी अनेक प्रकार से मैथिली लिखी जा रही हैं। एक मानक मानदंड का पालन नहीं हो रहा है। क्लिष्ट और दुरूह भाषा का भी प्रयोग होता है। जरूरत है सहज और सरल भाषा का प्रयोग, ताकि आम पाठक आसानी से समझ सके। विज्ञापन मिलना कठिन रहता है, इसलिए आर्थिक संकट की भी चुनौती है। इससे पार पाने के लिए यह आवश्यक है कि बड़ी संख्या में पाठक बनाए जाने को लेकर विशेष प्रयास हो ताकि उसके दम पर पत्रिका चलती रहे। इस बात की जरूरत रेखांकित हो रही है कि पाठक, लेखक और संपादक मिल कर मैथिली पत्रकारिता के समक्ष आसन्न संकटों पर संवाद करे।
भारतीय भाषाएं संकट में है। समस्त भारतीय भाषाओं का महत्त्व निर्विवाद है। हमें सभी भारतीय भाषाओं के उत्थान के लिए कार्य करना चाहिए।
भाषा संस्कृति का वाहक होती है। मैथिली प्रोन्नतिशील होगी तो मिथिला भी सशक्त होगा। यह संतोषप्रद है कि तमाम चुनौतियों के बावजूद युवा वर्ग में मैथिली को लेकर चेतना जग रही है। सोशल मीडिया और वेबमंचों के द्वारा मैथिली का उत्थान सुनिश्चिित हो रहा है।
(लेखक प्रवक्ता डॉट कॉम के संपादक एवं मैथिली साहित्य महासभा के महासचिव हैं.)
हाल ही में प्रकाशित मीडिया स्कैन की मैथिली पत्रकारिता विशेषांक से साभार