अर्थक महिमा अपरंपार
– मनीष झा, द्वालख (मधुबनी)
अर्थक जुग छै,
अर्थ सँ सब किछु
अर्थ’हि सँ सबहक पहिचान
बिनु अर्थक सब अर्थहीन अछि
सऊँसे अर्थहि के गुणगान ॥
अर्थ पुरोहित,
अर्थ ज्योतिषी
अर्थ’हि सँ बिहुँसै चिनबार
जँ अछि अर्थ तँ सउँसे जय – जय
नहि त’ जग भरि सँ उपजै धिक्कार॥
प्रतिभा लए की चाटब
हउ बाबू छुच्छे प्रतिभा,
तँ कूहत समाज प्रतिभा
संग जँ अर्थ फेंटल होइ फेर तँ
बुझियौ भोगब राज॥
अथी सँ पोछब नोर आँखि के
जँ नहि अर्थक करब सचार
औ बाबू ! ई अर्थ बड़ अजगुत
अर्थ’हि सँ सबटा व्यवहार॥
बुड़लो मनुखक खुगै कपार॥
अर्थक महिमा अपरम्पार॥