मधुश्रावणी आ टेमी दगबाक विधानक औचित्य पर बहस

मधुश्रावणी आ टेमी दागबाक विधानक औचित्य

– प्रवीण नारायण चौधरी

madhushrawani“आरे तोरी के! टेमी दगेतैन फूल दाइ केँ – आ चिन्ता धरैत छन्हि गंभीरा देवी केँ। केहेन-केहेन गेला तऽ मोछवला एला…. कहबी नहि छैक एकटा। कक्का हौ! आइ-काल्हि किछु बेसिये लोक सब उदारता देखबैत हमरा सबहक परंपरा पर प्रश्न ठाढ करय लागल अछि। आब दहक जबाब एगो तथाकथित समाज सुधारक महिला अधिकारकर्मी केँ…. अपन स्टेटस पर लिखने अय जे मिथिला के जनसमुदाय मे पुरना परंपरा अमानवीय आ बर्बर अहि, मधुश्रावणी पूजन करय दिन नव-विवाहिताक ठेहुन पर जरैत टेमी सँ दागल जाएत छन्हि। ई क्रूरतपूर्ण कार्य थीक, आदि-आदि।”

“एम्हर देखहक जे फूल दाइ आ ओकर नैहरा – सासूर सब तैर कतेक पैघ खुशियाली छैक जे आइ फूल दाइ विवाहक बाद मधुश्रावणी पूजिकय एकटा गंभीर गार्हस्थ जीवन मे नारीत्व धारण करैत मनुष्य प्रजातिक नव जीव अनबाक पूरा अधिकारिनी बनिकय पूर्णता पाबय लेल जा रहली अछि। कतेक रास साँठ – उपहार आदिक संग सासूर सँ ससूर-भैंसूर-वर आदि लोक सब सेहो आयल छथिन ओकरा घर पर। फूल दाइ केर माय-बाबु आ परिजन सब कियो प्रसन्नता सँ पाहुन सबहक आगत-भागत मे लागल छथि। भैर गामक लोक केँ हकार पड़लैक अछि।”

Mithila-Madhushrawani“मधुश्रावणी पूजबाक दिन कथा आदि सुनैत सधवा नारीक गार्हस्थ जीवन मे कतेक प्रकारक नव आ अन्जान घटना घैट सकैत छैक, कोना ओकरहि सँ एकटा नव संसार ठाढ हेतैक, कतेक वीरांगना समान ओ विपत्ति सँ लड़त – आर तऽ आर जखन प्रसव पीड़ा समान असह दुःख (दर्द) ओकरा हेतैक तऽ फेर अपना घर नव संतान अयबाक उम्मीद आ उत्साह मे सब दर्दरूपी जहर केँ घोंटि-घोंटि पियैत रहत…. ई बुझितो जे ओकर जान जा सकैत छैक, ओ एके टा नहि अनेक टा संतान केर जन्म देनिहाएर माय बनत। ओकरे पर ई भार छैक जे अपन परिवार मे आयल नव संतति केँ पोसि-पालि बड़का बनाओत आ अपन संसार केँ आबाद राखि एहि मानवीय संसार केँ सेहो आबाद राखत।”

“एम्हर देखहक जे मुंहपुरखाई केनिहार किछु मौगियाहा पत्रकार सेहो तोरा फेसबुक आ व्हाट्सअप पर टेमी दगबाक विध केँ अत्याचार सँ तूलना कय रहल अछि आ ओकरे सनक आरो किछु मौगी दाय सब अपना मोने तर्क-वितर्क सेहो कय रहल अछि। कियो कहैत छैक जे ई प्रथा फल्लाँ समय मे ओ विदेशिया आक्रमणकारी सँ बचेबाक लेल एकटा निशानी देबाक तौर पर आरम्भ कैल गेलैक, कियो कहैत छैक जे वर द्वारा कनियां केँ एकटा प्रेमक निशानी देबाक ई परंपरा थिकैक, जेकरा जे मोन होएत छैक से कहैत छैक। से कका हौ! हम पूछैत छियह जे एतेक तर्क-वितर्क जे अपन परंपरा पर करय जाए छय ताहि सँ कि भेटतैक? ओ जे महिला अधिकारवादी सब बेर एतेक आवाज उठाबैत छैक तेकर कोनो प्रभाव मिथिलाक लोको पर पड़ैत छैक?”

कका बड़ीकाल सँ लेलहाक बात सब सुनैत-सुनैत आखिरकार मुंह खोललक। ओ कहय लागल, “बौआ रौ! तोरा बच्चे स सब लेलहा कहैत छौक। बच्चा रहें तऽ मुंह स बड़ लेर चूबैत रहौक। मुदा तोहर गप हमरा सब दिन एना सुतय काल राति मे दलान पर सुखे दैत रहल अछि। तोहर कहब अपना जगह सहिये छौक। मुदा गलत कि आ सही कि, एकर निर्णय सब अपना-अपना हिसाबे – अपन-अपन बौद्धिक क्षमता अनुसार करैत अछि। फूल दाइ के घर मे पाबैन छैक, ओतय औंकरी बँटेतैक। सधवा नारी सबहक भीड़ लागत। खूब कथा-वार्ता सुनल जेतैक। सब तरहें पाहुनक स्वागत-भागत हेतैक सबटा ठीक। मुदा फूल दाय केँ टेमी दागयकाल दर्द तऽ करतैन, तऽ हुनका केहेन लगतैन से फूल दाय स पूछलिहीन?”

लेलहाक माथ कनीकाल सोचय लागल। फेर ओ बाजल, “ईह! कोनो फूल दाइये केँ पहिल बेर टेमी लेसेतैन आ कि दगेतैन। ई तऽ हमर माय, काकी, बाबी, बहिन, सब स्त्रिगण केँ होएत आयल छैक। अय मे साफ बात बुझबाक छैक जे एखन तऽ एगो टेमीक दगला सँ जतेक दर्द अछि ततबे पचेबाक अछि, सेहो जाहि पुरुष केँ परमेश्वर मानि वरण कएलहुँ, जेकरा अपन सर्वस्व निछाबड़ करब, जे अहाँक नारीत्वक स्वामी थीक, तेकर पवित्र हाथ सँ ई निशानी भेटत। आगाँ जे जीवन अछि ताहि मे अहू सँ पैघ-पैघ टेमी स्वतः दगायत। आब अहाँ कहबैक जे – नय हौ बाबु! हमरा बियाह करेलह से करेलह, आब बच्चा नै होबय देबैक… बड दर्द करैत छैक… तऽ कि अहाँक बात चलत? अरे! साफे बात छैक जे बियाह भेल तऽ आगू माय बनब। माय बनब त दर्द पचाबय पड़त। दर्द केर रूप अनेक होएत छैक। सुइया मे दबाइ भैरकय तोरा जखन देह मे भोंकय छैक तखन कियैक न ई महिला अधिकारवादी आ कि मानव अधिकारवादी सब तोरा हल्ला करैत छैक जे सुइया भोंकय सँ शरीर पर घाव होएत छैक। तहूँ न कका! आब तहूँ फेसबुक-व्हाट्सअप पर जेना मौगियाहा सब गप करइ य तेना कहइ छह जे फूल दाय सँ पूछहीन। हद्द भऽ गेल।”

“रे लेलहा! तूँ कि जाने गेलें। कतेक अलक चान सब एहनो होएत छैक जे टेमी दागय सँ पहिने खूब नखड़ा करैत छैक। ओना तोहर बात मे हमरा खूब दम बुझायल। बात त तूँ सहिये कहलें जे जखन बियाह भेलैक तऽ माय नारिये केँ बनय पड़तैक। दर्द ओकरा बेसी सहन करय पड़ैत छैक। से ई मधुश्रावणीक पूजा मे सब शिक्षा देलाक बाद बुझ जे एकटा शिक्षाक सन्देश एहि टेमी मे सेहो छैक। आगाँ गृहस्थीक जीवन मे कतहु एहेन छोट-मोट दगेनाय, आइग मे पकनाय आ कि दर्द मे रहय सँ कतहु डरेबाक नहि छैक। लेलहा! आइ सँ हमर गुरु तोंही भेलें।”

“हेंहेंहें… कका… आ ओइ मौगियाहा सब केँ आ अधिकारवादी सब केँ कि कहबहक?” लेलहा तड़ाक सँ प्रश्न पूछि देलक अपन बचपन सँ पढेनिहार-सिखेनिहार गुरु समान कका केँ।

कका खूब सम्हैरकय जबाब देलकय, “सुने लेलहा! ओकरा सब केँ एतबे कहे जे मिथिला मे जे कोनो व्यवहार होएत छैक ओ वेदान्तविद् द्वारा प्रतिपादित आ सिद्ध जीवन प्रणाली लेल शिक्षा जेकाँ मात्र होएत छैक। अपन कूतर्क आ औचित्यहीन प्रश्न सँ एहि पर बहस करबाक होएक तऽ पहिने अपन बाप, फेर तेकर बाप, फेर ओकर बाप आ कम सँ कम सारा खानदान के पता पहिने कय लियइ। जँ से पता होएक तखन कहे जे मिथिलाक व्यवहार पर कोनो तर्क-कूतर्क करय लेल। बुझलें! ले आब सुते। ई कोरामीन इन्जेक्सन छियौक। एतबे कहि देबहीन तऽ सब मौगियाही प्रश्न अपने तर मे घुसैड़ जेतैक।”

 

ॐ तत्सत्!

 

हरिः हरः!!