दिनकर केर शिव ताण्डव रचनाः सावनक शिवपूजन प्रसंगवश

संस्मरण

– मुकुन्द मिश्र, बेगुसराय

Shiv-Tandav-Wallpaperदिनकर एक बेर देवघर गेला। बाहर मे महिला लोकनिक पैघ कतार छल। दिनकर सेहो अपन बेर (पार) केर इन्तजार कय रहल छलाह। महिला सबकेँ कष्टप्रद स्थिति मे देखि ओ मन्दिर प्रशासन सँ जल चढ़ेबा मे भऽ रहल विलम्ब केर कारण पूछलखिन। पता चललनि जे अंदर मे कियो धन्ना सेठ केर विशेष पूजा चैल रहल छल। दिनकर अगिया-बेताल बनि गेलाह। ओ एहि भेदभाव पर जैमकय प्रशासन केँ लताड़लखिन। बाद मे जखन ओतुका लोक केँ ई पता चललैक जे ई तऽ राष्ट्रकवि दिनकर थिकाह, तखन ओ सब हुनकर रुष्टता केँ दूर करबाक लेल अलग व्यवस्था करबाक व बिना पंक्तिबद्ध भेने जल चढ़ेबाक बात कएलक।

दिनकर कहलखिन, हम तऽ जल चढ़ा लेब मगर हमर ई माय-बहिन अहिना ठाढ रहैथ से हमरा स्वीकार्य नहि अछि। दिनकर अपन जलभरी ओत्तहि फेकि देलनि आर ओतय सँ वापस लौटि गेलाह। और “तांडव” केर रचना कएलनि।

नाचो, हे नाचो, नटवर !
चन्द्रचूड़ ! त्रिनयन ! गंगाधर !

आदि-प्रलय ! अवढर ! शंकर!
नाचो, हे नाचो, नटवर !

आदि लास, अविगत, अनादि स्वन,
अमर नृत्य – गति, ताल चिरन्तन,
अंगभंगि, हुंकृति-झंकृति कर

थिरक-थिरक हे विश्वम्भर !
नाचो, हे नाचो, नटवर !

सुन शृंगी-निर्घोष पुरातन,
उठे सृष्टि-हृंत्‌ में नव-स्पन्दन,
विस्फारित लख काल-नेत्र फिर
काँपे त्रस्त अतनु मन-ही-मन ।

स्वर-खरभर संसार, ध्वनित हो

नगपति का कैलास-शिखर ।
नाचो, हे नाचो, नटवर !

नचे तीव्रगति भूमि कील पर,
अट्टहास कर उठें धराधर,
उपटे अनल, फटे ज्वालामुख,
गरजे उथल-पुथल कर सागर ।
गिरे दुर्ग जड़ता का,

ऐसा प्रलय बुला दो प्रलयंकर !
नाचो, हे नाचो, नटवर !

घहरें प्रलय-पयोद गगन में,
अन्ध-धूम हो व्याप्त भुवन में,
बरसे आग, बहे झंझानिल,
मचे त्राहि जग के आँगन में,
फटे अतल पाताल, धँसे जग,

उछल-उछल कूदें भूधर।
नाचो, हे नाचो, नटवर !

प्रभु ! तब पावन नील गगन-तल,
विदलित अमित निरीह-निबल-दल,
मिटे राष्ट्र, उजडे दरिद्र-जन
आह ! सभ्यता आज कर रही
असहायों का शोणित-शोषण।
पूछो, साक्ष्य भरेंगे निश्चय,

नभ के ग्रह-नक्षत्र-निकर !
नाचो, हे नाचो, नटवर !

नाचो, अग्निखंड भर स्वर में,
फूंक-फूंक ज्वाला अम्बर में,
अनिल-कोष, द्रुम-दल, जल-थल में,
अभय विश्व के उर-अन्तर में,

गिरे विभव का दर्प चूर्ण हो,
लगे आग इस आडम्बर में,
वैभव के उच्चाभिमान में,
अहंकार के उच्च शिखर में,

स्वामिन्‌, अन्धड़-आग बुला दो,
जले पाप जग का क्षण-भर में।
डिम-डिम डमरु बजा निज कर में
नाचो, नयन तृतीय तरेरे!
ओर-छोर तक सृष्टि भस्म हो
चिता-भूमि बन जाय अरेरे !
रच दो फिर से इसे विधाता,

तुम शिव, सत्य और सुन्दर !
नाचो, हे नाचो, नटवर !