मिथिलाक लोकक नोर पोछत मिरानिसे

सिसकियाँ अब नारे बनकर गूँजेगीः मिथिला राज्य निर्माण सेना

– प्रवीण नारायण चौधरी, मिरानिसे की जनजागरण अभियान को समर्पित

mrns logo1हम सब मिलकर जानकी का मिथिला को फिर से भारत की संविधान में स्थापित करेंगे। और इसके लिये एक से बढकर एक वीर पूरे भारतवर्ष से लगनपूर्वक कार्य करने लगे हैं।
 
यह केवल जानकी की प्रेरणा है कि गैर-ब्राह्मण वीर सपुत क्रान्तिकारी नेता डा. रंगनाथ ठाकुर ने पहली बार किसी क्रान्तिकारी मूहिम के बागडोर को अपने हाथों में लेकर नेतृत्व देने का निर्णय किया है। जबकि वे एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल के ओहदेदार नेताओं की छवि भी रखते हैं, परन्तु उन्होंने जनक और जानकी की मिथिला में हो रहे बिहारी अत्याचार और उपेक्षा से आहत होकर फिर से मिथिला राज्य की व्यवस्था को धरा पर उतारने का संकल्प लिया है।
 
आप मान सकते हैं कि फिर से सलहेश और दीना-भद्री, बंठा चमार के साथ वही पुराने मिथिला वीर लोकनायक – लोकदेवता आगे बढकर इस मुहिम को साथ देने लगे हैं। आज ही मधुबनी के बिक्रम मंडल ने आगे बढकर सदस्यता लिया है और संकल्प लिया है कि अपना स्वराज्य लाकर ही साँस रोकूँगा…. बहुत हुआ गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी लादने का बिहार का षड्यन्त्र…. बन्द पड़े हुए मिलों के कारण हमारे घरों के लोगों को अपने घर पर मजदूरी कमाने का अवसर भी नहीं मिल रहा है… जो था वह भी लूट लिया। इससे तो अच्छा वो अंग्रेजी हुकूमत था।
मिथिला राज्य निर्माण सेना के लोगों ने जो नयी आशा जगाया है उससे
 
जनप्रतिनिधियों को शर्म आने लगी है, दिल्ली से हेमन्त झा – राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने मैथिली जिन्दाबाद को बताया। उन्होंने कहा कि वे लोग अपने कीमती सात दसक गृहराज्य और देश के लिये समर्पित किया, परन्तु आज तक कोई बड़ा मेगा प्रोजेक्ट मिथिलाक्षेत्र को नसीब नहीं करा पाये हैं।
 
कहते हैं कि मिथिला में उतना ही क्षेत्र में पानी सालों भर भरा मिलता है जितना कि कनाडा ने अपने यहाँ अरबों रुपया खर्च करके डैम निर्माण करके किया। सच भी है कि यहाँ पर हिमालय से बहकर आनेवाली सैकड़ों छोटी-बड़ी नदियों का पानी इधर-उधर छितराकर खेती योग्य पाँक मिट्टी और मछली तथा अन्य जलजीवों के साथ जलकृषि योग्य रोजगार देकर लाखों जनजातियों के जीने का सहारा देती रही थी। परन्तु हड़बड़ी बियाह कनपट्टी सिनूर वाली मिथिलाकी कहाबत की तरह भारत सरकार ने जिस तरह अंग्रेज के दिये वैभेल प्रोजेक्ट को कोसी प्रोजेक्ट में परिणति दे केवल सरकारी मुलाजिमों, मंत्रियों और सामंती ठेकेदारों को राज्य का खजाना लूटने का एक अच्छा-खासा खाँड़ भर दिया और बाँध बनाकर सारे पानियों को गंगाके रास्ते बंगाल को देकर फरक्का में बिजली उत्पादन करके मैथिलों-बिहारियों को मजदूर आपूर्तिकर्ता भर बनाकर रखा यहाँ।
 
यही दृश्य वर्तमान में पटना में सत्तासीन तथाकथित गरीबों के मसीहा और सामाजिक न्याय के झूठे नारे लगानेवाले नेताओं के हाथों बंधक बनकर अशिक्षा और गरीबी से त्रस्त हो रखा है, अपना घर-बार और अपने ही लोगों को छोड़कर ये लोग पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र और दिल्ली आदि जाकर मजदूरी कमाकर अपने घरवालों को किसी तरह दो जुम का भोजन दे पा रहे हैं; परन्तु इन्हीं से वोट लेकर हमारे मिथिला के ही वो जनप्रतिनिधि केवल जातिवाद का आगमें समाज को झोंक विकास की व अक्षर तक से हमें रुबरू नहीं करा पा रहे हैं। अब तो मिथिला राज्य एकमात्र समाधान है। क्योंकि नेता तो उन्हें ही बनना है, पर तब कम से कम अपने घर की सही सही सुध तो ले सकेंगे वे। लालू-नीतीश जैसे झूठे-छद्म नेताओं से मुक्ति तो मिलेगी उन्हें। यही भावना जन-जन में सुना जाने लगा है। भीख नै अधिकार चाही, हमरा मिथिला राज चाही… गूँजने लगा है सिसकियां अब नारे की आवाज में।
 
गाँव-गाँव के लोग बाँहें चमकाकर कहते मिल रहे हैं, बहुत भेलैक बौआ-नूनू! भगाउ एहि सार निकम्मा सरकार केँ, बनाउ अपन मिथिला राज्य। अब गया वो समय जब यहाँ के लोगों ने जाति के नाम पर अपना वोट देते थे, थोड़़े से पैसों के लोभ में आकर अपना कीमती वोट बेच देते थे… अब मिथिला राज्य निर्माण सेना हर घर में जाकर लोगों से उनके अधिकार और कर्तब्य दोनों के बारे में भलीभाँति समझायेगी। बस जरुरत है कि अपने ही घर में मौजूद कुछ काले लबादा ओढकर घी पीनेवालों से आन्दोलन को बचाने की, केवल समर्पित लोगों से ही मिथिला कुछ उम्मीद कर सकती है।
 
हरिः हरः!!