राज्यक आन्दोलनक संग अप्पन भाषा मे पढाई करेबाक मांग हो

विचार आलेख

satya narayan jha– सत्यनारायण झा, पटना

दुनियाक उच्च कोटिक 200 विश्वविद्यालय मे भारतवर्षक एकोटा विश्वविद्यालय नहि अछि, ई बात हम नहि कहि रहल छी अपितु भारत के राष्ट्रपति महोदय दीक्षान्त समारोह मे कहलनि अछि । एहि उच्च कोटिक विश्वविद्यालय मे अप्पन मातृभाषा मे पढ़ाइ होयत छैक । बच्चा आ कि जवान अपन भाषा मे कोनो चीज तुरन्त सिख जाय छैक । हम त देखैत छियैक कोनो बच्चा दोसर भाषा मे तह तक नहि जा पबैत छैक मुदा वैह चीज अपना भाषा मे तह तक जाइत छैक । आइ तक कोनो बच्चा के घर मे ब्याकरण नहि सिखेलाक बादो ओ स्वतः व्याकरण सिखतेटा नहि छैक बल्कि ओकर सही प्रयोग घर मे करैत छैक । वैह चीज अन्य भाषा मे ओकरा सिखय परैत छैक आ तैयो गलतीक सम्भावना रहैत छैक ।

हम त कतेक प्रोफेसर के देखैत छलियैन जे ओ पहिने कोनो विषय के अंग्रेजी मे पढ़बैत छलखीन आ बाद मे हिन्दी मे सेहो समझा देलौं । भारतक इतिहास रहलैक, जाबे अपन संस्कृत भाषा रखने छल तखन गणित रहौ, ज्योतिष रहौ वा कोनो भाषा, दुनिया मे डंका बजैत छलैक मुदा अंग्रेजी जहिया सँ अपनेलक दुनिया मे कोनो स्थान नहि ।

आइ हमर मैथिली केँ अपना घरो मे निरादर कयल जा रहल छनि, मैथिली मैथिले द्वारा अपमानित भए रहल छथि । दुख होयत अछि जखन मैथिली केर अलख जगाबय बाला सभक घर मे हिन्दी बजैत घरक लोक केँ देखैत छियैन । ठामहि बंगाल, उड़िसा, असाम अथवा कोनो अन्य राज्य केर लोक केँ देखब जे कतेक छैक अपन भाषा सँ प्रेम ।

आइ कतेको संस्था अछि, ऊपर झापर काज मे लागल अछि मुदा मूल काज जे अपन भाषा केँ घर-घर पहुचायब तिमहर ध्यान केकरो नहि । बड़का बड़का पर्व कय लिअ, मिथिला विभुतिक सम्मान सँ लोट पोट भए जाउ मुदा भाषाक अपमानक आगाँ सभ बेकार ।

एक दिन एकटा मैथिल ओहिठाम गेलौ, ओ मैथिलीक मानल सेवक छथि । कतेको सम्मान सँ अलंकृत छथि । एकटा मित्र छथि कहलनि चलू फल्लाँ बाबू ओहिठाम ।समान्य गपसप भेल । कनेक कालक बाद हुनकर पोता जे पाँच बरखक रहनि से कोम्हरो सँ अयलनि । मैथिलीक सेबक हमरा सब केँ कहलनि – “पोता छथि, बड़ मेधाबी छथि ।” पोता केँ कहलखीन, “खोखाबाबू इनलोगों को कविता सुना दो ।” पोता चुपचाप ठाढ़, किछु बजबे नहि करनि । कनेक काल त दुलारे सँ कहलखीन मुदा तुरते तमसा कय हिन्दी मे डाँटय लगलखीन । ताहू सँ एक डेग आगा बढ़ि एक चटकन धय देलखीन । पोता कनैत भागल । सोचलों देखू हिनका, बच्चो संग हिन्दी ।

कहबाक माने मैथिली केर टोप टहंकारक ओतेक जरुरत नहि छैक जतेक ओकर जड़ि मजबूत करक छैक । तैँ विद्यापति कहलखीन, देसिल बअना सब जन मिठ्ठा,
मिठ्ठे नहि होयत छैक, सुगम, सरल सेहो होयत छैक ।

मैथिली केँ समाप्त करक लेल, बज्जिका, अंगिका केर बलात् आयात कैल गेलैक अछि । मैथिली चिर प्राचीन भाषा थिकैक । भाषायी प्रतियोगिता मे भारतक अष्टम अनुसूची मे मैथिलीक नाम अन्य भाषाक संग समान रुप मे छैक ।

एम्हर मिथिला राज्य बनेबाक अभियानी लोकनि अपन मातृभाषा मे मिथिला मे शिक्षा देमय लेल सरकार पर समान दबाव बनबितथि त कतेक बढ़िया होयतैक, ओहि सँ आन्दोलनक जड़ि मजबूत सेहो हेतैक । 

दुनियाक हर देश अपना भाषा मे शिक्षा दय एतेक उपर गेल अछि । जँ हमहू सभ अप्पन भाषा मे शिक्षाक प्रवधान करबितौ त कतेक उपयोगी रहितैक मुदा ………!!