दिन विशेष – गुरु पूर्णिमा लेल ई आलेख
– भावानुवादः प्रवीण नारायण चौधरी
आइ गुरु पूर्णिमा थीक। शिष्य द्वारा गुरु प्रति समर्पण लेल एक विशेष दिवस थीक। बुझले होयत जे मनुष्य जन्म लेबाकाल एक शिशु स्वरूप मस्तिष्क संग एहि धरा पर अबैत अछि। माथ मे ओतेक बात नहि जतेक कि एहि जीवनक उद्देश्य संग साक्षात्कार लेल हेबाक चाही। एहि सब बात यानि ज्ञान सँ साक्षात्कार करेनिहार केँ गुरु कहल जाएत अछि। अज्ञानरूपी अंधकार सँ प्रकाशक दिशा लऽ गेनिहार ज्ञानी पुरुष केँ गुरु कहल जाएत अछि। एहेन महापुरुष प्रति श्रद्धा आ सत्कारक भाव सदैव राखल जेबाक आवश्यक अछि, यैह अनुशासन थीक आर एहि समर्पण सँ कियो अपन गुरु सँ ओ गूढ तत्त्व केर प्राप्ति कय सकैत अछि। अतः हिन्दू धर्मावलम्बी लेल आजुक पूर्णिमा – आषाढ पूर्णिमा केँ गुरु प्रति समर्पित दिन केर रूप मे गुरु पूर्णिमा कहल जाएत अछि। अपन प्रत्येक गुरु प्रति पूर्ण समर्पण केर भाव सँ आइ किछु आध्यात्म केर बात एतय राखि रहल छी।
स्वामी रामसुखदासजी महाराज केर प्रवचन मनुष्य जीवन लेल अत्यन्त लाभकारी मानल अछि। हुनक लिखल आ कहल भावानुवाद गीता सहित विभिन्न धर्मग्रन्थ प्रति हमरा सब दिन सहज आ सुन्दर लागल अछि। गुरु प्रति लक्षित हुनकर किछु विशेष रचना (पोथी) सब सेहो बेर-बेर देखैत रहल छी। आइ ओही स्मृति सँ एकटा दृष्टान्त एतय उद्धृत कय रहल छी। स्वामी रामसुखदासजी महाराज प्रश्नक उत्तर दैत गुरु के छथि एहि पर अपन विचार रखने छथि।
प्रश्न – वास्तविक गुरु के होएत छथि एवम् हुनकर कि पहिचान होएछ?
उत्तर – जे हृदय सँ हमर कल्याण चाहैत छथि वैह वास्तविक गुरु थिकाह। जिनका शिष्य बनेनाय, धन, आश्रम, मान-बड़ाई, नाम अथवा प्रतिष्ठा पेबाक चाहत अछि अथवा जे अहाँ किछुओ हासिल करय चाहैत छथि ओ कदापि कखनहु अहाँक वास्तविक गुरु नहि भऽ सकैत छथि।
सच्चा महात्मा केर दुनिया केँ गरज होएत छैक, लेकिन जेकरा केकरहु गरन नहि होएत छैक वैह वास्तविक गुरु होएत छथि।
जिनका गुरु बनबाक शख छन्हि वैह कहैत छथि जे गुरु बनेनाय बहुत जरुरी अछि, बिना गुरु केँ मुक्ति नहि भेटत।
चेला जँ सच्चा अछि तऽ ओकरा गुरु अपने आप भेटैत छैक। गुरु खोजबाक जरुरत नहि पड़ैत छैक। वास्तविक गुरु तँ सच्चा शिष्य केँ ढ़ुँढ़ैत छथि। सच्चा गुरु मे शिष्य केँ उद्धार करबाक सामर्थ्य होएत छन्हि।
अधिकांश भगवत्प्राप्त संत केकरहु चेला नहि बनबैत छथि कियैक तऽ चेला भगवान् केँ तऽ पकड़ता नहि, गुरुए केँ पकैड़ लैत छथि। एहि सँ चेला आ गुरु दुनू केर हानि होएत छन्हि। जे भगवान् केर जगह स्वयं केर पूजा करबावैत अछि ओ अत्यन्त गिरल पाखंडी होएछ।
गुरु दोसरो केँ गुरुए बनबैत छथि। जे दोसर केँ चेला बनबैत छथि ओ समर्थ नहि होएत छथि। भगवान् केकरहु अपन चेला नहि अपितु मित्र बनबैत छथि। जे वास्तव मे बड़ पैघ होएत अछि ओकरा छोट बनबा मे कोनो लाज नहि होएत छैक। जेना भगवान् श्रीकृष्ण स्वयं सर्वसमर्थ भगवान् रहितो मित्रवत् अर्जुन केर सारथि बनि गेलाह।
प्रश्न – गुरु के होएत छथि?
उत्तर – कोनो विषय मे जिनका सँ ज्ञानरूपी प्रकाश भेटैछ, ओहि विषय मे वैह हमर गुरु थिकाह। गुरु केर काज मनुष्य केँ भगवान् केर सम्मुख करब होएछ।
शिष्य केँ जखन तत्वज्ञान भऽ जाएत छन्हि, तखन हुनक मार्गदर्शक केर नाम “गुरु” होएत अछि। शिष्य केँ जखन तक ज्ञान नहि भेल तखन तक ओ गुरु सेहो नहि भेलाह।
महिमा ओहि गुरु केर होएछ जेकर संग गोविन्द सेहो ठाढ छथि, अर्थात् भगवान् केर प्राप्ति जिनका भेल होएन्ह हुनक महत्ता होएत अछि। गोविन्द केर परिचय करौलनि नहि आर गुरु बनि गेलाह – ई खाली बेवकूफ बनेनाय वा ठकनाय टा भेल।
असली गुरु मे चेलाक कल्याण केर तथा चेला मे गुरु केर आज्ञा पालन करबाक गंभीर इच्छा होयब आवश्यक अछि।
अस्तु!!
आजुक सोसल मिडिया युग मे हम देखाबटी बहुत कय सकैत छी, मुदा गुरु प्रति समर्पण लेल समय नहि अछि। गुरु माता-पिता-शिक्षक-श्रेष्ट-मित्र एतय तक जे अपना सँ छोटो होएत छथि। बस, ई अनुभूति होयब आवश्यक अछि जे किनका सँ हमरा केहेन ज्ञान भेटल आर ओहि सँ हम परमात्मा प्रति कतेक समीप पहुँचि सकलहुँ। जीवन मे आयब परमात्मा केँ पायब, एहि लक्ष्य केँ पाछू पड़ैत हम सब आगू बढैत रहैत छी, आर एहि मे सब कियो जे सहायक बनैत छथि ओ आदरणीय गुरु समान भेलाह आर सबहक प्रति समर्पण राखि आजुक दिन हुनका सबकेँ स्मृति मे आनी, परमात्माक समीप जेबाक यत्न एना करैत रही।
हरिः हरः!!