Search

ब्रजस्थ मैथिल आ नेवारी मैथिल जेकाँ सबकेँ संघर्ष करय पड़त

कि अहाँ केँ पता अछि?
 
editorialमिथिलाक लोक निज राज्य बिहार आ झारखंड केर अलावा नेपाल, नर्थ ईस्ट इंडिया, बंगाल, उड़ीसा, मध्य देशी लगभग संपूर्ण राज्य संग पश्चिमोत्तर भारत धरि अपन पाण्डित्य परंपरा आ बौद्धिकताक संग-संग ईमानदार श्रमसेवा करैत निर्माण सँ लैत संरक्षण-संवर्धन सब कार्य करैत प्रसिद्धि पेने अछि। जेना मणिपुर राज्य केर भाषा ‘मैति’ केर उत्पत्ति मैथिली सँ हेबाक बात अहाँ सुनब तऽ विस्मय मे पड़ि जायब, मुदा ई सच छैक। नेपालक राजसत्ता संचालन कएनिहार विभिन्न राजवंश मे मैथिल बौद्धिकताक वर्चस्व रहल अछि। मध्य प्रदेशक विभिन्न राजवंश मे सेहो मैथिल बौद्धिकताक वर्चस्व आ राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश आदिक लगभग सब राजसत्ता संचालक केर नजरि मे मैथिल बौद्धिकताक स्थान सर्वोच्च रहल तेकर प्रमाण भेटैत अछि। एतेक तक प्रमाण सबहक नजरि मे स्थापित अछि जे प्राचीनकाल सँ लैत वर्तमानकाल धरि मैथिल बौद्धिकता कोन तरहें देशहित मे कार्य करैत रहल, करैत आबि रहल अछि।
 
तखन फेर मैथिली-मैथिलत्व निज राज्य बिहार मे षड्यन्त्रक शिकार कियैक?
 
एखन धरि कइएको बेर मैथिली भाषा केँ मृत्युदान देबाक कूचेष्टा निजराज्य बिहार मे कैल गेल अछि, ई सुनिकय पुनः विस्मित हेबाक संग-संग एक अन्जान भय सँ देह सेहो सिहैत उठैत छैक।
 
यदि अहाँ पटना जायब तऽ कम सँ १० टा चैनल भोजपुरी भाषा मे भेटत, लेकिन मैथिली भाषाक एकोटा चैनल संचालित नहि अछि। गोटेक प्रसार भारती (दूरदर्शन, डीडी बिहार, अल इंडिया रेडियो, आदि) पर प्रसारित कार्यक्रम सँ मैथिली लेल मात्र तुष्टीकरण केर कार्य कैल जाएछ। बिहार मे लगभग सब भाषाक शिक्षक केर बहाली होएछ, मुदा मैथिली पढेबाक लेल शिक्षक भेटिते नहि अछि आर कि-कहाँदैन कहिकय राज्य संचालक मैथिली प्रति घोर विभेद करैत अछि। बुझले होयत जे कोना कर्पूरी जी के समय मे (मैथिली मे शिक्षा प्राप्ति केँ पहिने हँटेनाय आ फेर प्राथमिक शिक्षा आ मैथिली माध्यम सँ पढेबाक व्यवस्था करैत बाद मे सुधार कैल गेल, लेकिन ओहो बहुत समय धरि नहि टीकल), कोना जगन्नाथ जी के समय मे (उर्दू केँ दोसर राजभाषा बनायल गेल आ मैथिली केँ ललीपप दैत अकादमी देल गेल..), कोना लालू जी के समय मे (मैथिली केँ बीपीएससी सँ हँटाओल गेल), कोना नीतीश जी के समय मे (मैथिली केर शिक्षकक नियुक्ति नहि कैल जा रहल अछि)… आ विभिन्न राजनीतिक कूचाइल सँ मैथिली केँ ओहिना मृत्युदान देबाक नीति अछि जेना मिथिलालिपि समान प्राचीन शैली केँ मृत्युवरण करय देल गेल। मैथिली भाषा मे सरकार द्वारा कोनो विज्ञापनो खर्च तक उपलब्ध नहि कराओल जा रहल अछि।
 
राज्य द्वारा कैल जा रहल विभेदक असैर कही आ कि ढेर होशियारी मे तीन ठाम मखबाक प्रवृत्ति कही….. खुद मैथिल जनमानस पर्यन्त अपने सँ अपन भाषाक शत्रु बनि बैसल छथि। अपन निजत्व केँ समाप्त करैत दाँत बिदोरैत अपन धिया-पुता संग हिन्दी मे बतियाएत कहता जे, हें-हें-हें, एकरा सब केँ मैथिली नहि अबैत छैक, जतय (प्रवास-स्थलपर) रहैत अछि ओतुका संस्कार आबि गेलैक। यौ जी! लोक अपन संस्कार केँ बचेबाक लेल घर मे अपनहि भाषाक प्रयोग करैत अछि। अपन विशिष्ट जीवन-पद्धतिक संग सब कार्य-व्यवहार करैत अछि। तखनहि ओकर अपन निजत्व केर रक्षा होएत छैक। मुदा स्वयं अपन निजत्व केँ विनाशक बनि दोसर लंग निर्लज्ज जेकाँ हँसैत बजैत छी, लानत अछि अहाँक एहि बौद्धिकता पर। मिथिलाक दुर्भाग्य मे बहरियाक दोख सँ पहिने अहाँक अपन दोख कहल जाय तऽ कोनो अतिश्योक्ति नहि हेतैक। एहि अवस्था सँ घोर चिन्ता आ उदासी व्याप्त अछि। डर भऽ रहल अछि जे कहीं ई सनातनी जिन्दाबाद संस्कृति मिथिला आगू किछु वर्ष मे पूर्णरूप मे मृत्युक वरण नहि करय।
 
बिसैर गेलहुँ ‘ब्रजस्थ मैथिल’ आ ‘नेवारी मैथिल’ केर हाल?
 
मिथिलावासी लेल दुइ गोट उदाहरण अत्यन्त मनन योग्य देखि रहल छी। एहेन विस्थापित मैथिल आरो क्षेत्र मे होयबाक उदाहरण सुनलहुँ, मुदा दुट समाज संग सहकार्य करबाक अवसर भेटबाक कारण विशेष रूप सँ उल्लेख करब जरुरी बुझैत छी।
 
कोनो समय मुगल सम्राज्य आ अन्य सल्तनत मे अपन पहुँच उच्च राखनिहार गोटेक हजार मैथिल आइ उत्तरप्रदेश, हरियाणा, दिल्ली आदिक क्षेत्र मे ‘ब्रजस्थ मैथिल’ केर वजूद संग अपन निजत्व केँ फेर सँ ग्रहण करबाक घोर संघर्ष कय रहला अछि। आब न हुनका पास अपन भाषा बचल छन्हि, न ओ जीवन पद्धति आ नहिये कोनो प्रकारक विलक्षण संस्कार जेकर बदौलत ओ अपना केँ जनक-जानकीक मिथिला भूमिक संतान होयबाक सद्यह उदाहरण प्रस्तुत कय सकैत छथि। तखन नाम केर अन्त मे ‘मैथिल’ जोड़िकय आब फेर सँ सुसंगठित होयबाक प्रयत्न कय रहला अछि। हुनका सब मे सँ किछु ब्राह्मण समुदाय सब सौराठ सभागाछी मे आबि अपन मूल-जैड़ केँ सोझाँ आनि फेर सँ मिथिलाक जीवन-प्रणाली अपनेबाक मांग कय रहला अछि। किछु एहने उदाहरण ओहि १००० मैथिल ब्राह्मण पंडित परिवार केर अछि जे मल्लकालीन राजकाल मे काठमांडू विशेष आमंत्रण पर गेल छलाह। ओतुका नरबलि प्रथा केँ बन्द कराय कुमारि पूजन प्रथा आरम्भ करौनिहार ओ मैथिल ब्राह्मण मे सँ किछु लोक अकूत दानरूपी जमीन आ संपत्ति पाबि ओत्तहि बसि गेलाह। आइ ओ सब नेवारी संस्कृति मे मिश्रित होएत एकटा अलगे पहिचान बना चुकला अछि। नेपाल मैथिल ब्राह्मण समाज संग कतेको बेर ओ सब अनुरोध कय चुकल छथि जे फेर सँ मैथिल कोना बनब ताहि लेल समाधान ताकल जाय।
स्पष्टे छैक जे जँ भाषा आ भेष बदैल गेल तऽ बुझू जे पहिचानक मौलिकता स्वतः समाप्त भऽ गेल। प्रवास पर रोजी-रोटीक जोगार धरि प्रवासी बनब ठीक छैक, मुदा अपन मौलिक पहिचान केँ जोगेबाक लेल निज-भाषा आ संस्कृति केँ जोगायब बहुत जरुरी छैक। एहि विन्दु पर समस्त मैथिल समाज केँ सजग रहबाक चाही, ओ भले कोनो जातिक लोक कियैक नहि हो।
 
हरिः हरः!!

Related Articles