मिथिला में साहित्य संस्कार का प्रखर परिचयः यात्री ऊर्फ नागार्जुन

आलेखः मैथिली के यात्री – हिन्दी के नागार्जुन

– प्रवीण कुमार झा, बेलौन, दरभंगा (मिथिला) – हाल दिल्ली से

(साभार फेसबुक, जून ३०, २०१६ यात्री के जन्मदिन पर लिखा लेख)

yatri praveen k jhaमिथिला साहित्य आरम्भ से ही कितना प्रगितिशील रहा है इसका एक उदाहरण मिथिला के कवि वैद्यनाथ मिश्र हैं। आज ही के दिन जन्में श्री मिश्र मैथिलों में ‘यात्री’ और हिंदी साहित्य में ‘नागार्जुन’ के नाम से प्रसिद्ध हुए।

बाबा नागार्जुन प्रगतिवादी विचारधारा के लेखक और कवि हैं। इन्होंने 1945 ई. के आसपास साहित्य के क्षेत्र में क़दम रखा।

बाबा ने अपनी फ़क़ीरी और बेबाक़ी से अपनी अनोखी और अलग सी पहचान बनाई। मधुबनी ज़िलेके ‘सतलखा गाँव’ की धरती बाबा नागार्जुन की जन्मभूमि बन कर धन्य हो गई। ‘यात्री’ आपका उपनाम था और यही आपकी प्रवृत्ति की संज्ञा भी थी। परंपरागत प्राचीन पद्धति से संस्कृत की शिक्षा प्राप्त करने वाले बाबा नागार्जुन हिन्दी, मैथिली, संस्कृत तथा बांग्ला में कविताएँ लिखते थे।

मैथिली भाषा में लिखे गए आपके काव्य संग्रह ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ के लिए आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

हिन्दी काव्य-मंच पर अपनी सत्यवादिता और लाग-लपेट से रहित कविताएँ लम्बे युग तक गाने के बाद 5 नवम्बर सन् 1998 को ख्वाजा सराय, दरभंगा, बिहार में यह रचनाकार हमारे बीच से विदा हो गया।

बाबा के ही हिसाब से, उनकी 40 राजनीतिक कविताओं का चिरप्रतीक्षित संग्रह ‘विशाखा’ आज भी उपलब्ध नहीं है। संभावना भर की जा सकती है कि कभी छुटफुट रूप में प्रकाशित हो गयी हो, किंतु वह इस रूप में चिह्नित नहीं है। सो कुल मिलाकर तीसरा संग्रह अब भी प्रतीक्षित ही मानना चाहिए।

हिंदी में उनकी बहुत-सी काव्य पुस्तकें हैं। यह सर्वविदित है। उनकी प्रमुख रचना-भाषाएं मैथिली और हिंदी ही रही हैं। मैथिली उनकी मातृभाषा है और हिंदी राष्ट्रभाषा के महत्व से उतनी नहीं जितनी उनके सहज स्वाभाविक और कहें तो प्रकृत रचना-भाषा के तौर पर उनके बड़े काव्यकर्म का माध्यम बनी। अब तक प्रकाश में आ सके उनके समस्त लेखन का अनुपात विस्मयकारी रूप से मैथिली में बहुत कम और हिंदी में बहुत अधिक है।

‘युगधारा’, खिचडी़’, ‘विप्‍लव देखा हमने’, ‘पत्रहीन नग्‍न गाछ’, ‘प्‍यासी पथराई आँखें’, इस गुब्‍बारे की छाया में’, ‘सतरंगे पंखोंवाली’, ‘मैं मिलिट्री का बूढा़ घोड़ा’ जैसी रचनाओं से आम जनता में चेतना फैलाने वाले नागार्जुन के साहित्‍य पर विमर्श का सारांश था कि बाबा नागार्जुन जनकवि थे और वे अपनी कविताओं में आम लोगों के दर्द को बयाँ करते थे।

विचारक हॉब्‍सबाम ने इस सदी को अतिवादों की सदी कहा है। उन्‍होंने कहा कि नागार्जुन का व्‍यक्तित्‍व बीसवीं शताब्‍दी की तमाम महत्‍वपूर्ण घटनाओं से निर्मित हुआ था। वे अपनी रचनाओं के माध्‍यम से शोषणमुक्‍त समाज या यों कहें कि समतामूलक समाज निर्माण के लिए प्रयासरत थे। उनकी विचारधारा यथार्थ जीवन के अन्‍तर्विरोधों को समझने में मदद करती है।

बाबा का जन्म वर्ष 1911 इसलिए महत्‍वपूर्ण माना जाता है क्‍योंकि उसी वर्ष शमशेर बहादुर सिंह, केदारनाथ अग्रवाल, फैज एवं नागार्जुन पैदा हुए। उनके संघर्ष, क्रियाकलापों और उपलब्धियों के कारण बीसवीं सदी महत्‍वपूर्ण बनी। इन्‍होंने ग़रीबों के बारे में, जन्‍म देने वाली माँ के बारे में, मज़दूरों के बारे में लिखा। लोकभाषा के विराट उत्‍सव में वे गए और काव्‍य भाषा अर्जित की। लोकभाषा के संपर्क में रहने के कारण इनकी कविताएँ औरों से अलग है।

सुप्रसिद्ध कवि आलोक धन्‍वा ने नागार्जुन की रचनाओं को संदर्भित करते हुए कहा कि उनकी कविताओं में आज़ादी की लड़ाई की अंतर्वस्‍तु शामिल है। नागार्जुन के गीतों में काव्य की पीड़ा जिस लयात्मकता के साथ व्यक्त हुई है, वह अन्यत्र कहीं नहीं दिखाई देती। आपने काव्य के साथ-साथ गद्य में भी लेखनी चलाई।

बाबा के अनेक हिन्दी उपन्यास, एक मैथिली उपन्यास तथा संस्कृत भाषा से हिन्दी में अनूदित ग्रंथ भी प्रकाशित हुए। काव्य-जगत को आप एक दर्जन काव्य-संग्रह, दो खण्ड काव्य, दो मैथिली कविता संग्रह तथा एक संस्कृत काव्य ‘धर्मलोक शतकम्’ थाती के रूप में देकर गए। प्रकाशित कृतियों में पहला वर्ग उपन्यासों का है। छः से अधिक उपन्यास, एक दर्जन कविता-संग्रह, दो खण्ड काव्य, दो मैथिली;(हिन्दी में भी अनूदित) कविता-संग्रह, एक मैथिली उपन्यास, एक संस्कृत काव्य “धर्मलोक शतकम” तथा संस्कृत से कुछ अनूदित कृतियों के रचयिता।

कविता-संग्रह – अपने खेत में, युगधारा, सतरंगे पंखों वाली, तालाब की मछलियां, खिचड़ी विपल्व देखा हमने, हजार-हजार बाहों वाली, पुरानी जूतियों का कोरस, तुमने कहा था, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने, इस गुबार की छाया में, ओम मंत्र, भूल जाओ पुराने सपने, रत्नगर्भ।

उपन्यास- रतिनाथ की चाची, बलचनमा, बाबा बटेसरनाथ, नयी पौध, वरुण के बेटे, दुखमोचन, उग्रतारा, कुंभीपाक, पारो, आसमान में चाँद तारे।

व्यंग्य- अभिनंदन

निबंध संग्रह- अन्न हीनम क्रियानाम

बाल साहित्य – कथा मंजरी भाग-1, कथा मंजरी भाग-2, मर्यादा पुरुषोत्तम, विद्यापति की कहानियाँ

मैथिली रचनाएँ- चित्रा, पत्रहीन नग्न गाछ (कविता-संग्रह), पारो, नवतुरिया (उपन्यास)

बांग्ला रचनाएँ- मैं मिलिट्री का पुराना घोड़ा (हिन्दी अनुवाद) ऐसा क्या कह दिया मैंने- नागार्जुन रचना संचयन

बाबा नागार्जुन को 1965 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से उनके ऐतिहासिक मैथिली रचना पत्रहीन नग्न गाछ के लिए नवाजा था। उन्हें साहित्य अकादमी ने 1994 में साहित्य अकादमी फेलो के रूप में नामांकित कर सम्मानित भी किया था।