मैथिली लघुकथा आ विहनिकथा मे तुलनात्मक विवेचनः मुन्नाजी

आलोचनाः लघुकथा आ विहनिकथा- तुलनात्मक विवेचन

मनोन कर्ण उर्फ मुन्ना जी

manoj karn munnajeeपढ़बा लिखबा सँ पहिने सुनबा गुणवाक परिपाटी छल. जे परिपाटी मनुक्खक पशु सँ भिन्नता पविते प्रारम्भ भ’ गेल हएत. मुदा से आदि मानव मे नै रहल हएत. ई सौभाग्य त’ मनुक्खक विकसीत रूपें के भेटल हेतै. प्रारम्भ मे एक दोसराक बीच कह- सुनी आ ओकरा तेसर – चारिम….. लोक लग कहि के सुनेवाक क्रम बनि गेल. ई क्रम ता धरि चलैत बढ़ैत रहल जा धरि पढवा लिखवाक परिपाटी नै बनल. इएह श्रुति- वाचनक क्रम कोनो घटना विशेष कें एक लोक सँ दोसर लोक तेसर, चारिम……होइत समूह मे पसरल. एक समूहक दोसरा समूहक बीच कथ्ये वा वाक्ये आगाँ बढैत गेल. उएह विभिन्न कथ्य कालान्तरे कथाक रूपें सोझाँ आयल.

मैथिली मे भाषाइ विकास त’ प्रारम्भिके चरण सँ देखार भेल मुदा कथा लेखन सुषुप्त रहल. सुषुप्ते नहि वरन् धुमिल वा पछुआएल रहल. मौखिक कथा त’ पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होइत रहल मुदा लिखित कथाक उपस्थिति शुन्य सन रहल. ऐ सँ ई साबित होइछ जे मैथिली मे साहित्यिक लुरिक अभाव वा शुन्यता पसरल छल. तकर एक कारण इहो भ’ सकैए जे मैथिलीक प्राम्भिक चरण मे बजबाक भाषा त’ मैथिली छल, मुदा पढ़बा – लिखबाक भाषा संस्कृत वा उर्दु छल. सब कागजी काज ओही माध्यमे होइत रहल. समयान्तरे ओकर स्थान अँग्रेजी लेलक. कम पढ़ल- लिखल लोक संस्कृत वा उर्दुक ज्ञान नेने छलाह वेशी पढ़ल – लिखल लोक अँग्रेजी भाषा अंगीकार केने छलाह. जिनका मे साहित्यिक अभिरूचि शुन्य छल.

मैथिली मे संस्कृतक प्रभाव रहल आइयो ओही भाषाक मूल मे मैथिली साहित्य टीकल ऐछ. प्राय: इएह कारण रहल हएत जाहि सँ मैथिलीक प्रारम्भिक लेखन अपन भाषिक मूल रचना सँ नै भेल.

प्रारम्भिक लेखन विद्यापतिक संस्कृत मे लिखल ‘पुरूष परीक्षा’क मैथिली अनुवाद सँ भेल. तकर मुख्य कारण छल- तत्कालीन मिथिला मे जाहि वर्गक प्रभाव छल हुनक शिक्षा आ सनातनी रोजगारक ( यथा- पुजा-पाठ) भाषा संस्कृत छल. गैर पुरोहित वर्गक भाषा मैथिली मात्र छल. मैथिली विद्वानक वा आलोचकक मतानुसार इअह मुख्य वा विशेष कारण रहल जे मैथिलीक पहिल साहित्यिक मूल रचना गैर पौरोहित वर्गक रचनाकार रासबिहारी लाल दासक उपन्यास “सुमति” (1918) सँ प्रारम्भ भेल. समयान्तरे मैथिली साहित्यक विकास भेलोपरान्त ऐ भाषाक साहित्य पर ओही पौरोहित्य वर्गक आधिपत्य भ’ गेल. ओही ठाम सँ एकर विकासक बजाय क्षीणता प्रारम्भ भेल.

विद्यापति संस्कृत मे अनेक ग्रन्थक रचना कएलनि, मुदा चन्दा झा ताहि मे सँ अनुवाद करबाक लेल चुनलनि- ” पुरूष परीक्षा ” के. अहि प्रकारें मैथिलीक पहिल कथापोथी पुरूष परीक्षा मानल जा सकैए. मोहन भारद्वाज, मैथिली कथाक विकास, सा. अकादमी- २००३ सं. वासुकीनाथ झा.

पहिने पौराणिक खिस्सा लिखाइत छल. साहित्य विधा मे ओकर नाम छल- नाटक. पद्य मे भेल त’ काव्य. कहल गेल त’ खिस्सा, कहबाक शैली मे लिखल गेल त’ उपाख्यान भ’ गेल. श्रुतकथा वा गढ़ल कथा के लेखक जँ अपन शब्द मे लिखलनि त’ ओ कहएल मौलिक रचना. एहि तरहें मौलिक कथाक पहिल रचना- काली कुमार दासक “भीषण अन्याय” (१९२३) केँ मानल गेल.

उपरोक्त स्थिति मैथिली कथासाहित्यक प्रारम्भिक चरण केँ परिलक्षित करैए. कथाक विकास यात्रा के एक टा नव मोड़ देलक- रमानाथ झा द्वारा एकरा अंग्रेजीक SHORT STORY कहि फरिछेवाक पछाति. कथा वा गल्पक आब विकसीत रूप सोझाँ आबय लागल. आ उएह कहएल मैथिली लघुकथा ( Maithili Short Story). ऐ सँ पहिने रचनाकार लोकनि एकरा अंग्रेजी मे Story कहि संबोधित करैत छलाह.

जनतब करबैत चली जे- Story यानी ‘ कथा ‘ वा कहानी त’ साहित्यिक दुहू विधाक सभ प्रकार माने की उपन्यास, कविता , नाटक…..आदि मे उपस्थित रहैछ. बिना कथांशक त’ कोनो रचनाक अस्तित्वे नै मानल जा सकैए. वस्तुत: आधुनिक मैथिली लघुकथाक विकास स्थुलता सँ सुक्षमताक विकास छी, भावुकता सँ तटस्थताक विकास छी, आदर्श सँ यथार्थक विकास छी. परञ्च आधुनिक मैथिली लघुकथाक प्रेरणा भूमि युरोप, विशेषत: अंग्रेजीक लघुकथा साहित्य रहल ऐछ, सेहो निर्विवाद ऐछ.

कथा साहित्य कहला सँ कहानी / कथा/ गल्प ओ उपन्यास दुनूक बोध होइछ. किन्तु मात्र कथा सँ कहानी अथवा गल्प केर बोध होइछ. अंग्रेजी मे ऐ लेल मानक शब्द ऐछ-Short Story. मायानन्द मिश्र- मैथिली कथाक विकास सं. वासुकीनाथ झा.सा.अकादमी- २००३. रमानाथ झाक Short Story केँ लघुकथा कहि विवेचनक पछाति मैथिलीक कथा/गल्प लधुकथाक रूपें प्रकाशित होइत रहल. सब संग्रह पर अंग्रेजी मे Collection of Maithili Short Story लिखल भेटत. एखन धरि मैथिली मे हजारो लघुकथा आ सैकड़ो लघुकथा संग्रह (Collection Of Maithili Short Story) मैथिली मे विद्ययमान ऐछ.

एखन धरि विभिन्न विश्वविद्यालय सँ अाठ गोटे मैथिली लघुकथा (Maithili Short Story) पर शोध क’ चुकलाह ऐछ. लघुकथाक नवम शोधार्थी छथि- अनमोल झा, जे सम्प्रति तिलका माँझी विश्वविद्यालय सँ लघुकथा (Short Story) मे शोधरत छथि (आब शोध पूरा भऽ गेलनि). ओना हुनक लघुकथा कथ्य, शैली एवं लेखकीय तकनीकी व सुक्ष्म दर्शीयें विहनिकथा (Seed Story)क समकक्ष बुझाइए. ओ एकर शोध श्री केष्कर ठाकुर जीक निर्देशन मे क’ रहलाह ऐछ ! (कय लेलनि अछि – चूँकि ई लेख पूर्वहि केर लिखल थीक ताहि हेतु लेखक एहि तरहक वाक्यांश केँ पुनरावृत्ति कएलनि अछि। – संपादक)

त’ जहिना आन सब प्रोफेसर/आलोचक/ संपादक मैथिली लघुकथाक आधिकारिक आ ऐतिहासिक मानदण्द के बिसरि वा अज्ञानता रहि हिन्दीक लघुकथा के मैथिली मे लघुकथा बुझैत रहलाह तही मे सँ श्री केष्कर ठाकुर जी के सेहो देखल जा सकैए. भारत सरकारक साहित्य अकादमी सबतरि मैथिली कथा/ गल्प के लिखित आ मौखिक (मंचीय उदघोषणा)रूपें मैथिली लघुकथा कहि संबोधित करैत आबि रहल ऐछ. मुदा साहित्य अकादमी सँ मैथिली लघुकथा संग्रह छपेनिहार / पुरस्कार पेनिहार कहियो विरोध नै केलनि आ लाभान्वित होइत रहलाह. तहू सँ हास्यास्पद बात जे मैथिली लघुकथा संग्रह पर देवनागरी मे- कथा संग्रह आ English मे Collection of Maithili Short Story छपबैत रहलाह . आ स्वघोषित विद्वानक दर्जा पबैत रहला.

भारत सरकारक साहित्य अकादमी सँ मैथिली लघुकथा संग्रह के पहिल बेर १९८७ मे पुरस्कृत हेबाक सौभाग्य प्राप्त भेल छल. ई लघुकथा संग्रह छल- ‘ अतीत’ लघुकथाकार छलाह- उमानाथ झा लघुकथा लेखनक प्रारम्भ सँ ९८ वर्षक पछातियो स्वघोषित /पेटपोषित सब अपन इरखे नाङरि कटबैत दोसरो कथ लेखक के दिशारहित…..करैत रहलाह.

मैथिली मे लघुकथाक स्पष्टीकरणक पछाति आब विचार करी ऐ सँ विलग ‘ बिहनिकथा ‘ पर ‘ बिहनि’ माने बीया. जेना एक टा बिहनि अपन कतेको प्रक्रिया सँ गुजरि एक टा संपुर्ण गाछक सामर्थ्य रखैए. तहिना बिहनिकथा (माने- बीजकथा- हिन्दी, Seed Story in English) अपन सब रूपें यथा- कथ्य, शिल्प एवं सिरखारी सँ एक टा संपुर्ण कथाक प्रतीक ऐछ. ने ओ लघुकथाक छोट रूप छी, ने छेँट ने अखरकट्टु. अपन सब कशीदाकारीक संग पुर्णत: भरल- पुरल कथाक सामर्थ्यवान रूप ऐछ विहनिकथा (Seed Story) एत’ जाहि बिहनिकथाक विवेचन क’ रहल छी ओहि नामक पदार्पण भेल ऐछ- बीसम सदीक अन्तिम दशक मे. एकर खगता हमरा ऐ दुआरे भेल जे पहिने सँ मैथिली मे कथा/ गल्प लघुकथा लिखाइते छल आ किछु मैथिलीक अज्ञानी विद्वान हिन्दीक लघुकथा के सेहो मैथिली मे लघुकथा लिखै छलाह जाहि सँ दुनूक पहिचान संकट मे बुझएल. अही खगता के पुर करब लेल वा दुनू के विलगा दुनूक अस्तित्व बचा के रखबा लेल भिन्न नाम द’ आगाँ बढ़ाओल गेल.

बिहनिकथाः शिकार
– मुन्ना जी
आंइ….! — की भेल ? — इ च’र त’ छ: मास पानिये मे डुबल रहै छल, आब ‘ त’ सगरो धुरा उड़़ियाइए ! — हँ .. — वाह ! एते जल्दी सब टा बिकाइयो गेलै आ घर दुआरि सेहो ठाढ.भ’ रहल छै ? — यौ,घर दुआरि नै, फैक्ट्री बनतै ! एतुका लोक के अाब डुबल जमीनक असली मालिकाना भेटतै ! — सत्ते ? — त’ की ! — उँह….! सब के बन्धुआ मजदूर बना खटेतै ! मालिक त’ उएह रहतै…..पाइ बला . — पानि सुखने सींगही- मांगुर, टेंगड़ा- पोठी सब उजहि गेलै ? — सब टा सुनै छी समुन्दर मे चल गेलै. — ठीके ? — कहबी मोन नै ऐछ- ” छोटका सदिखन बड़कवा के शिकार भ’ जाइ छै .” — ओह….!