चराचर संसार मे सब जीवकेँ सीताराममय जानि प्रणाम करू

आइ थीक महाकवि तुलसीदास केर जन्म जयन्ति - पढू विशेष संस्मरण

आध्यात्मिक चर्चाः रामचरितमानस केर मंगलाचरण

आइ थीक महाकवि तुलसीदास केर जन्म जयन्ति - पढू विशेष संस्मरण
Great Poet Writer of Ramacharitmanas

विगत किछु समय सँ सर्जक मैथिल जनमानस हेतु विशेष रूप सँ महाकवि तुलसीदास रचित रामचरितमानस केर मंगलाचरणमे प्रस्तुत शिष्टाचार-संस्कार केर चर्चा अलग-अलग शीर्षक मे करैत आबि रहल छी। कोनो महान कार्य करबा सँ पूर्व लोक कतेक गंभीर बनय, कि-कि करय आ कोन तरहें आशीर्वाद प्राप्त करैत आगू बढय, एकरा लेल रामचरितमानस लेखन सँ पूर्व प्रस्तुत ई मंगलाचरण महाकवि तुलसीदास केर उदाहरण सँ बेसी नीक हमरा आइ धरि दोसर कोनो नजरि नहि पड़ल अछि। अतः अपने लोकनि सँ ई टुकड़ा-टुकड़ा मे राखि अपनो जीवन सकारथ होएत देखि रहल छी। आउ, आय देखी जे तुलसीदासजी संत-असंत केँ प्रणाम केला उपरान्त किनका आ कोना प्रणाम करैत छथि। आशा करैत छी जे सिलसिलेवार – क्रमिक रूप सँ पहिने सँ अहाँ सब पढैत आबि रहल छी। जँ कोनो छूटि गेल हो तऽ पाछू जाय आरो पोस्ट सब फुर्सत सँ आ स्थिर दिमाग सँ मात्र पढब।

रामरूप सँ जीवमात्र केर वंदना

– महाकवि तुलसीदास

जड़ चेतन जग जीव जत सकल राममय जानि।
बंदउँ सब के पद कमल सदा जोरि जुग पानि॥7(ग)॥
जगत मे जतेक जड़ और चेतन जीव अछि, सबकेँ राममय जानिकय हमहुनका लोकनिक चरणकमल केँ सदिखन दुनू हाथ जोड़िकय वन्दना करैत छी॥7 (ग)॥
देव दनुज नर नाग खग प्रेत पितर गंधर्ब।
बंदउँ किंनर रजनिचर कृपा करहु अब सर्ब॥7 (घ)
देवता, दैत्य, मनुष्य, नाग, पक्षी, प्रेत, पितर, गंधर्व, किन्नर और निशाचर सबकेँ हम प्रणाम करैत छी। आब सब कियो हमरा पर कृपा करू॥7 (घ)॥
चौपाई :
आकर चारि लाख चौरासी। जाति जीव जल थल नभ बासी॥
सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥1॥
चौरासी लाख योनि मे चारि प्रकार केर (स्वेदज, अण्डज, उद्भिज्ज, जरायुज) जीव जल, पृथ्वी और आकाश मे रहैत अछि, ओहि सबसँ भरल रहल एहि समूचा संसार केँ हम श्री सीताराममय जानिकय दुनू हाथ जोड़िकय प्रणाम करैत छी॥1॥
हरिः हरः!!