बियाहक लेल
– राम कुमार मिश्र
कोलकाताक पार्कस्ट्रीट में एक मित्रक बाट जोहैत रही, बगलमें बाघ सन बिलायती कुकुरक सिक्करि धेने एक पांच हाथक नवकबेर मोबाइल पर मैथिलीमें गप्प करैत छलाह, गप्प शेष भेलाक बाद पुछि देलियैन्ह,
“की नाम भेल अपनेक बाऊ ?” !
अपन नाम गुजन कमती आ मधुबनी जिलाक एकटा गामक नाम कहला,
ई बिलायती कुकुरक लालन – पालन में बड्ड खर्च होइत हैत ?
लजाइत आ मुशकियैत गुजन कहलैथ, “भाईजी, ई कुकुर सेठक थिकै, जाहि ठाम हम नौकरी करैत छी । एकरा एक घंटा बाहर हवा-बसात लगबैक लेल टहला-बुला दैत छिेएक ओही लाथे हमहु घुमि फिर लैत छी ।
ओना कोन-कोन काज करै परैत अछि ?
बुझू त’ चौबीसो घंटा ड्यूटी रहैत अछि, झाड़ू पोछा, बर्तन साफ केनाइ, कपड़ा धोनाई, बाग़ बगइचाक चिक्कन चुनमुन केनाइ ।
तखनि त बड्ड मेहनति करय परैत अछि, कतेक टाका भेटैत अछि ?
चारि हजार महिना आ दू टाइम भोजन दैत अछि, रहैक लेल सीढ़ीक निच्चा परबाक खोप सन घर अछि, जाहिमे कोहुनाक राति काटि लैत छी !
गुजन, अहाँ त’ आठ दश हजार टाका गामोमें रहि कमा सकैत छी, एहि ठाम कियैक पेटकांन देने छी ? कोनो कबुला अछि की ?
अहाँ एकदम सच्च कहलियै, भाईजी ! हमरा सभ तरहक लुरि अछि, गाममें रहि हम १४ – १५ हजार टाका महिना कमा लैत रही आ संगे अपन माटि-पानि पर स्वच्छंद जिनगी जिबैत रही, लेकिन अपन समाजक कारणे एही ठाम ईटा-पाथरक बनल बन-खण्ड ओगरने छी ।
से कीएक यौ गुजन ? ! अकचकाइत पुछि देलियैन्ह,
गुजन, कने काल गुम्म भेलाक बाद कहलैथ, “बियाहक लेल ”
हम अबाक रहि गेलौ, गुजनक गप्प सुनि, गुजन गप्पकेँ फरिछबैत कहला,
“हमर बियाहक लेल बहुतो कन्यागत एलाह मुदा जखनि हुनका जनतब होन्हि जे ब’र गाममें रहैत छथि त’ फेर दुबारा वापिस नहि आबथि । हुनका सभकें होन्हि जे गाममें बेटी सुखी नहि रहती, एहि तरहे हमर उमेर ३० बरखक भ’ गेल, अंतमें बाबूजी दुखी भ’ कहलैथ बौआ कलकत्तामें तोहर मामा रहैत छथुन ओ कोनो न कोनो काजक बियौत लगा देथुन । हम अप्पन माए-बाबूजी, भाय-बहिन, संगी-साथी, घर-द्वारि, खेत-पथार, बारी में अपन रोपल तिमन-तरकारी छोरि एहि ठाम आबि गेलहुँ, हम एहि ठाम छ: महीना सं छी, काल्हि खुशखबरी भेटल जे हमर बियाह अगिला महिनाक एगारह तारीख क’ ठीक भ’ गेल अछि, हम हमेशाक लेल ई बनखंड छोरि चलि जायब ।
सोचय लगलहुँ…. ” मिथिलाक ई नव समस्याक समाधान के करता” !
(विहनि कथा)
© राम कुमार मिश्र