मिथिलाक हरेक गामक अपन एकटा विशिष्ट स्थान – गरिमा आ पहिचान आइयो जीबित कहि सकैत छी। जखन कि बिहार राज्य अन्तर्गत मिथिलाक्षेत्र केँ गाँथि देला सँ क्रमशः सब महत्व-गरिमा-विशिष्टता लोकपलायन सँ मरणासन्न अवस्था मे पहुँचि गेल अछि, आर एहेन विषादियुक्त वातावरण मे कोनो गामक मान-मर्यादाक स्मृतिक अलगे महत्व बनैत अछि। आजुक जमाना मे एक-एक बच्चा केँ अपन गाम आ मूल केर इतिहास बुझब अत्यन्त आवश्यक अछि। नहि तऽ लोकपलायन सँ जे लोकसंस्कारक नाश होएत छैक, ओ एकटा सनातन संस्कृति आ सभ्यताक अन्त कय देत। मिथिला संभवतः एहि विपन्नताक शिकार मैर नहि जाय, ई डर अछि।
फोटो साभारः सुनीत ठाकुर – एडमिन, हम सब मैथिल छी
मिथिलाक मूल भूमि सीतामढी-मधुबनी-दरभंगा-सहरसा-समस्तीपुर-खगड़िया-बेगुसराय-मुजफ्फरपुर सहित अन्य-अन्य जिला मे पर्यन्त एहेन इतिहास पर प्रकाश देनाय आजुक अनिवार्य आवश्यकता थीक, परन्तु एकरो पूर्ति करबाक लेल बिहारी मिडिया या संचारधर्म सँ पार लागत तेहेन संभव नहि देखाएत अछि। गाम-गाम टूटल-बिखड़ल श्मसान समान प्रतीत होएत अछि। स्वयं गामक कमासूत सेहो उखड़ल मोन सँ कोनो टा योगदान गाम लेल दय रहल अछि, जखन कि मिथिलाक प्रखर स्वरूप आ सनातन पहिचान केँ जोगेबाक लेल एकमात्र कारगर तत्त्व ‘स्वसंरक्षण – स्वयंसेवा’ रहल अछि। एतय लोकमानस मे राज्य पर निर्भरता आ कि कोनो मांग केर पूर्ति हेतु परनिर्भरता लेल मुंहतक्की करबाक स्वभाव नहि अछि, जे ठानि लेलहुँ ओकरा अपन कर्मठता सँ पूर केलहुँ। आउ, मिथिलाक एक एहने गरिमासंपन्न गामक चर्चा करी आय।
कोइलखः माँ कोकिलाक्षी कालीक प्राकट्य स्थल
सर्वविदिते अछि जे मिथिलाक पवित्र धरा संस्थापक ऋषि-मुनि-राजा-प्रजा द्वारा सिद्ध भूमिक रूप मे निर्माण कैल गेल, तैँ स्वयं जगज्जननी सीता बनिकय जनकपुत्रीक रूप मे प्रकट भेलीह। स्वयं परमाधिपति परमेश्वर मर्यादा पुरुषोत्तम राम केर रूप मे एतुका जमाय बनि सीताक पाणिग्रहण केलीह। मिथिलाक जन-गण-मन आ कण-कण धन्य-धन्य भऽ गेल।
देवीक तीन रूप कहल गेल अछि। भोर-दुपहर-साँझ – तिनू बेर मे तीन आराध्या जगज्जननी ब्रह्माणी (सरस्वती) – विष्णुप्रिया (लक्ष्मी) आर शिवप्रिया (पार्वती) केँ मानल जाएत अछि। याज्ञवल्क्य केर वर्णन मुताबिक वेद केँ जीवनचर्या मे समाहित कैल भूमि मिथिला थीक, एतय एहि तीन देवी स्वरूप केँ सदैव मनन कएनिहार सिद्ध ऋषि-मुनि-मनुष्यक समाज रहैत छथि। शाक्त, शैव एवं वैष्णव – तिनू सम्प्रदायक हिन्दू धर्मावलम्बीक मूल डीह मिथिला थीक।
कालान्तर मे विदेशी यवन आक्रमणकारी विरुद्ध सशक्त युद्ध करितो अन्ततोगत्वा ओकर हुकुमत केर सम्राज्य विस्तार मिथिला केँ अपन चांगूर मे फँसा लेलक। बहुत दिन धरि एतय जमीन्दारी प्रथाक सामन्त शासक सब हावी रहितो मिथिलाक मौलिकताक रक्षा प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष करिते रहल, परञ्च आखिरकार स्वतंत्र भारत मे बिहार नाम्ना राज्य आर जातिवादी राजनीतिक हुकुमत केर लगायल आगि मे ई मिथिला आइ धू-धू कय केँ जरि रहल अछि। जे सबल-सक्षम जनमानस अछि ओ तऽ कतहु अपन झंडा गारि सकैत अछि, मुदा निरीह-अबला बहुल्य जनमानस एहि विपन्नताक घोर शिकार भऽ सौंसे भारत मे मजदूर बनि बिहारी कहाएत गाएर-माएर खाएत जीवन निर्वाह करय लेल बाध्य अछि। मिथिलाक विपन्नताक गाथा कि कहल जाय, तैयो समाज आपस मे जाति आ धर्मक नाम पर टूटल अछि, समाधानक कोनो टा बाट कतहु सँ नहि देखाएत अछि।
त्रिशक्तिक एक प्रखर स्वरूप कालीक प्राकट्य भूमि थीक कोइलख – हिमालय सँ बहैत आबि रहल कमला-बलान नदीक कछेर पर अवस्थित, जिला मधुबनीक मुख्यालय सँ करीब १५ किलोमीटर दूरी पर पूर्वी भाग मे राजनगर प्रखंड अन्तर्गत ई सुन्दर आ ऐतिहासिक गाम पड़ैत अछि। यैह कमला सँ प्रकट भेली काली केर नाम कोकिलाक्षी – आर हिनकहि नाम पर पुरान बासुदेवपुर केर नाम आइ ‘कोइलख’ सँ प्रसिद्ध अछि।
कोइलख गामः भौगोलिक अवस्था
गामक आरम्भहि मे पश्चिम दिशा मे भगवती भद्रकालीक भव्य मंदिर अवस्थित अछि। एहि प्रांगण मे भद्रकाली नाट्य परिषद केर विशाल रंगमंच सेहो अछि जे एतुका लोकसंस्कृतिक सम्पन्नताक द्योतक मानल जाएछ। मंदिर केर सामने एकटा विशाल पोखैर आर ओकर दक्षिण मे उच्च विद्यालय, पूरब मे चंद्रानन्द मध्य विद्यालय और सामने एकटा बड़का टाक मैदान अछि। पोखरिक उत्तर पक्की सड़क केर पास महादेव केर विशाल प्राचीन मंदिर अछि। सम्पूर्ण परिसर सदैव सुरमय, मनोहर आर पवित्र रहैत अछि। भद्रकाली कोकिलाक्षी जे मंदिर केर पश्चिम प्रवाहित कमला नदी सँ निकलल छथि, हिनकहि नाम पर एहि गामक कोइलख पड़ल अछि। पहिने एहि गाम केँ बासुदेवपुर कहल जाएत छल। खतियान एवं नक्शा मे सेहो बासुदेवपुर उर्फ़ कोइलख अंकित अछि।
मान्यता ईहो अछि जे एहि गाम केँ बसेनिहार आदिपुरुष पंडित बासुदेव झा छलाह, हुनकहि भक्ति सँ प्रसन्न भऽ भगवती एतय प्रकट भेल छलीह। बेसी रास मैथिल ब्राह्मण परिवारक कुलदेवी काली थिकीह। कुलदेवीक आराधना हरेक परिवार लेल अनिवार्य होएत अछि। वर्ष भरि मे कतेको बेर कुलदेवीक विशेष आराधनाक बेर सेहो होएत अछि। आर, कुलदेवी अपन आरधाना मे रत परिवार (कुल) केर रक्षा मे सदैव दहिन होएत छथि। अतः पंडित बासुदेव झा केर समर्पण भक्ति सँ प्रभावित भऽ भगवती एतय प्रकट भेलीह, ई कहल जाएत अछि। आइ ई मंदिर मिथिला भैर मे बहुत प्रतिष्ठा पबैत अछि कारण जे भगवती एतय सँ किनको खाली हाथ नहि पठबैत छथि, जेकर जे मनोकामना रहैत छैक, से पूर होएत छैक।
मिथिलाक मध्यकालीन युगक एक प्रसिद्ध विद्वान् आ पारिजात हरण केर लेखक (लगभग १४०० ई.) केर जन्मस्थली कोइलख केँ मानल जाएत अछि। पहिने ई गाम संस्कृत विद्याध्ययनक प्रधान केंद्र छल। एहि गाम मे शरयन्त परीक्षा आयोजित कैल जाएत छल। शरयन्त सबसँ कठिन परीक्षा मानल जाएत छल। एहि मे प्रश्न एवं प्राश्निक केर कोनो सीमा नहि रहैत छल। ई सत्य अछि जे प्राचीनकाल केर विद्वान मे उमापति सबसँ अधिक विख्यात भेल छथि। उमापति उपाध्याय द्वारा सार्वजनिक कार्य मे सेहो खूब रूचि देखाओल गेल। गामक उत्तर मे हुनकहि खुनायल गेल एक विशाल पोखैर आय धरि विद्यमान अछि। एकरा लोक डिघिया (दीर्घिका) कहैत छैक। ‘कवि पंडित मुख्य’ एवं ‘सुमति’ उपाधि सँ विभूषित उमापति केर सर्वश्रेष्ठ मैथिली किर्तनिया नाटक अछि – ‘पारिजात हरण’ जाहिपर कतेको रास शोधकार्य भऽ चुकल अछि आर आइ धरि भऽ रहल अछि।
एक सँ बढिकय इक विद्वान् भेलाह एतय!
महाकवि विद्यापति पर पहिल अनुसंधान एवं समीक्षा ग्रन्थ (विशुद्ध विद्यापति पद्मावली) हिंदी मे लिखनिहार पं० शिवनंदन ठाकुर एवं अंग्रेजी माध्यम सँ इंट्रेंस पास करनिहार प्रथम व्यक्ति काशी नाथ झा कोइलख केर छलाह। मैथिली केर सुप्रसिद्ध कथा ‘आम खैबाक मुँह’ एवं ‘भलमानुष पवित्रा’ उपन्यास केर लेखक योगा नन्द झा कोइलख केर छलाह। ई अंग्रेजी साहित्य केर प्राध्यापक छलाह। बाद मे बिहार प्रशासनिक सेवा मे विभिन्न पद पर रहैत मैथिली अकादमी पटना केर निदेशक सेहो भेलाह। प्रसिद्ध वकील दमन कांत झा हास्य रस केर लेखक सेहो छलाह। ‘गपास्टक’ नाम सँ हिनकर एकटा पुस्तक सेहो प्रकाशित अछि जे काफी चर्चित भेल।
‘धूमकेतु’ नाम सँ प्रख्यात भोला नाथ झा अर्थशास्त्र केर विद्वान भेलाह। ओ मोड़ पर (उपन्यास ) एवं ‘अगुरवान’ कथा जेहेन श्रेष्ठ रचना सँ मैथिली साहित्य केँ संपन्नता देलनि। कवि, निबंधकार, समीक्षक केर रूप मे डा० भीमनाथ झा केर लगभग दुइ दर्जन पोथी प्रकाशित अछि। १९९२ मे ‘विविधा’ नामक पुस्तक पर हिनका साहित्य अकादमी पुरस्कार सँ सम्मानित कैल गेल छन्हि। ओ लगभग १० वर्षों धरि पटना सँ प्रकाशित मिथिला मिहिर केर संपादक रहि चुकल छथि।
निष्कर्षतः ई कहल जा सकता अछि जे कोइलख एकटा महत्वपूर्ण शिक्षित एवं प्रतिष्ठित गाम थीक जाहि ठामक वर्तमान पीढ़ी केँ आइयो धरि अपन पुरखा सँ प्रेरणाक संग ऊर्जा भेट रहल छन्हि। जाहि ठामक भूमि मे आइ धरि पांडित्य एवं साहित्य केर धारा प्रवाहमान अछि ओ गाम थीक कोइलख।
(गामक भौगोलिक अवस्था आ परिचय साभारः मिथिलाकनेक्ट डट कम)
कोइलख गाम सँ मिथिलाक अनेकानेक गाम
मैथिल ब्राह्मणक संस्कार आ व्यवहार मे किछु बात बहुत विलक्षण छैक। विवाह सम्बन्ध लेल एकटा कठोर नियम आ सिद्धान्त छैक। जखन कतहु दुइ परिवारक आपसी परिचय आरम्भ कैल जाएत अछि तऽ जाएत-जाएत एकटा एहेन विन्दु अबैत अछि जतय ओ दुनू परिवार आपस मे सम्बन्धी प्रमाणित होएत अछि। तखन फेर नव कुटमैती कोना होयत? ताहि लेल पूर्व निर्धारित नियम – पंजी परम्परा द्वारा अधिकार निर्णय केर पैघ महत्व छैक। हलांकि आइ-काल्हि लोक हड़बड़ी मे बहुत गड़बड़ी जाएन-बुझिकय करैत अछि जेकर दुष्परिणाम सेहो अपनहि भोगैत अछि। कोइलख गामक सेहो एहेन इतिहास अछि जे एतुका महापुरुष लोकनि कतेको गामक पुरखा बनिकय नव समाज बसौने छथि।
एहि गामक इतिहासपुरुष केर महत्ता एतेक बेसी छल जे आन-आन गामक प्रतिष्ठित-कूलीन परिवारक कन्यादान लेल एतय सँ दूलहा कीनिकय (बिकौआ ब्राह्मण) ओ सब लऽ जाएत छलाह। ब्राह्मण परिवार मे विद्वताक मूल्यांकनक ई परंपरा आर कतेक संस्कृति मे भेटैत अछि ई कहब हमरा लेल संभव नहि अछि, परन्तु मैथिल ब्राह्मण मे बिकौआ ब्राह्मणक बहुविवाह आ घरजमैया बनेबाक विचित्र परंपरा देखल जाएत अछि जाहि मे कोइलख गाम सँ कतेको दूलहा ताहि जमाना मे विभिन्न गाम-ठाम मे विवाह कय केँ बसि जेबाक तथ्य भेटैत अछि। एहि मे राज दरभंगा परिवार हो या कुर्सों ड्योढि परिवार हो, नागदह, देवडीहा (वर्तमान नेपाल), देउरीपट्टी (वर्तमान नेपाल), आदि कतेको रास एहेन गाम अछि जतय मूल पुरुष यैह कोइलख गाम सँ जुड़ल देखाएत छथि।
एकटा उदाहरण जे हमर गाम कुर्सों सँ जुड़ल अछि – श्री शिवाकान्त झा, रिटायर्ड आयकर आयुक्त, वर्तमान सर्वोच्च न्यायालयक अधिवक्ता एवं अर्थ सम्बन्धी ऐन एवं अधिनियम पर आधारित कतेको रास शोधपत्र आ पुस्तक केर लेखक। पंजीकार कीर्तिनाथ झा ऊर्फ किर्तू बाबु केर सन्दर्भ दैत ओ उल्लेख कएने छथि अपन पुरखा हरदत्त झा एवं जिनियोलाजी मैप सहित अपन पूरा परिचय रखने छथि। यथार्थतः कुर्सों ड्योढिक भगिनमान गोपीकान्त झा (बाबा) केर पुत्र श्री शिवाकान्त झा अपन मूल कोइलख सँ जुड़ल प्रस्तुत केलनि अछि आ अपन दुनू परिवारक विहंगम गाथा अपन वेबसाइट www.shivakantjha.org पर देलनि अछि।
तहिना स्मृति मे आबैत अछि जनकपुर केर नजदीक बसल गाम देवडीहा – ओतहु हरदत्त झा वंशक कतेक परिवार बसल छथि। देउरीपट्टी पूरा गाम पंडित हरदत्त झा केर परिवार केर रूप मे अपन परिचय दैत छथि। पंजी परंपरा सँ मैथिल ब्राह्मणक वंशावली स्वतः निर्धारित होएत अछि। आर जैड़ मे ई सुन्दर गाम कोइलख केर इतिहास अत्यन्त अनुपम प्रतीत होएत अछि।