कामाख्या मंदिर आओर अम्बुवासी (अम्बुवाची) पर्व
– पूनम झा, गुआहाटी
भारतवर्षक 51 गोट शक्तिपीठ में सँ सर्वाधिक महत्वपूर्ण ‘कामाक्षी’ वा ‘कामाख्या’ शक्तिपीठ! जे अवस्थित अछि प्राचीन प्रागज्योतिषपुर वा आधुनिक गुवाहाटी शहर केर नीलांचल पर्वत पर। मंदिर परिसर वा नीलांचल पर्वत केर आरो भाग में, काली, तारा, बगला, छिन्नमस्ता, भुवनेश्वरी, भैरवी, धुमावती, जयदुर्गा, वनदुर्गा, शीतला आदि कतेक रास भगवती स्थापित छथि। संगहि शिव और विष्णुक संग-संग गणेश, हनुमान आदि देवता लोकनिक मंदिर सेहो एतय अवस्थित अछि।
कामाख्या मंदिरक महत्ता एतेक महत्वपूर्ण अहिलेल जे प्राचीनकाल सँ वर्तमान धरि तंत्र सिद्धि हेतु ई प्रमुख साधना स्थल केर रूप मे विख्यात रहल अछि। संगहि आद्याशक्ति भैरवी कामाख्या सर्वदा कौमारी रुप में विद्यमान छथि एतय। अत: कामाख्याधाम विश्वक सर्वोच्च कौमारी तीर्थ सेहो मानल जाएत अछि। सब जातिक कुमारी वंदनीय छथि। एहिठाम कुमारि पूजन और अनुष्ठानक बड्ड बेसी महत्व अछि। तैं एहिठाम वास्तविक जीवन में सेहो बिना कुनो जातिगत भावना केँ स्त्री शक्ति वंदनीय थिकिह एवं आसाम में स्त्रीक प्रधानता बड्ड बेसी अछि सेहो सर्वविदिते अछि।
किंवदन्ति अछि जें एहि मंदिरक निर्माण राजा नरकासुर द्वारा भेल छल। कहल जाएत अछि जे औरंगजेब केर द्वारा कयल गेल हमला में मंदिर नष्टप्राय भs गेल छल, तकर पुनर्निमाण राजा ‘नर नारायण’ केर द्वारा 1665 में सम्पन्न भेल एहि ठाम कामाख्या देवीक महामुद्रा (योनि कुण्ड) अवस्थित अछि।
कामाख्याधामक स्थापनाक पौराणिक कथा
मानल जाएत अछि जे पिता दक्षकेर यज्ञमें अपमानित भेला उपरांत महादेवक अर्धांगिनी दक्षपुत्री सती ओहि यज्ञकुण्ड मे अपना केँ महादेवकेँ भोग लगबैत कूदिकय आत्मदाह कय लेलनि आ तदोपरान्त देवाधिदेव महादेव – स्वयं शिव सतीक वियोग में उन्मत भऽ मृतदेह केँ कान्ह पर राखि ताण्डव करय लगलाह। सृष्टिक निर्माता स्वयं एहि अवस्थाकेँ प्राप्त भेलापर देवता आ ऋषिक समाज आक्रान्त होएत एकर निराकरण हेतु भगवान् विष्णु सँ विशेष प्रार्थना कएलनि। प्रकृति केर कार्य में व्यवधान होएत देखि भगवान् विष्णु अपन चक्र सँ सतीक ओहि मृत शरीरकेँ खन्डित करब शुरु कएलनि आर एहि तरहें सतीक शरीरक 51 टुकड़ा खन्डित होएत विभिन्न स्थान पर खसैत रहल। जतय जतय सतीक देहक भाग खसल ओ सब सिद्ध शक्तिपीठ बनि गेल – आर ओ सब स्थलक विशेष माहात्म्य आइयो धरि आराधित अछि। एहि क्रम में सतीक “कटिभाग” नीलांचल पर्वत पर खसल, आर यैह शक्तिपीठ कामाख्य भगवतीस्थानक नाम सँ विशेष परिचित एवं चमत्कृत अछि।
अम्बुबाची पर्व
अम्बुवासी शब्दक तात्पर्य सामान्यतया “जलक्षेत्र में निवास करय वाला” होएत अछि। शायद गुवाहाटीक मौसमकेर आधार पर एहि मेलाक नामाकरण “अम्बुवासी मेला” कएल गेल होय, कारण एहि मौसममे पूरा आसाममे जबर्दस्त वर्षा होएत रहैछ। वर्षमे एक बेर होमयवला ई पर्व अपन एक विशेष स्थान रखैत अछि। तंत्र-मंत्र, ज्ञान-योग, भक्ति-भावकेँ मानय वाला लेल अम्बुवासी पर्व अद्भुत अवसर होएत अछि। अम्बूवाची पर्व कामाक्षी (सती) केर रजस्वला धर्मक अति विशिष्ट अवसर पर आयोजित पर्व थिक।
पौराणिक गाथा अनुरुपे ई अवधारणा अछि जे अम्बूबाची पर्वक तीन दिन धरि भगवती रजस्वला धर्म मे रहैत छथि और मां भगवतीक गर्भ गृह स्थित महामुद्रासँ निरंतर तीन दिन तक जल-प्रवाहक स्थान रक्त प्रवाहित होएत रहैत अछि।
कामाख्या तंत्रक अनुसार –
योनि मात्र शरीराय कुंजवासिनि कामदा।
रजोस्वला महातेजा कामाक्षी ध्येताम सदा॥
मानल जाएत छैक जे कामदेवक वाणसँ जहन महादेवक ध्यान टूटि गेलैन्ह आर हुनकर आँखिसँ निकलल क्रोधाग्निमे कामदेव भस्म भए गेलाह, ओहि समय कामदेवक पत्नी ‘रति’केर विलापसँ द्रवित भय नीलशैल (नीलाँचल) पर्वत पर सतीक मृतदेहक गर्भयोनिसँ कामदेवकेँ पुन: ‘अनंग’ केर रुपमे जीवनदान भेटल छलन्हि। जाहि दिन कामदेवकेँ जीवनदान भेटल ओ भगवतीक रजस्वला होयबाक चारिम दिन छल।
जनजीवनमे ई अवधारणा अछि जे तीन दिन तक भगवतीकेर मंदिरक कपाट स्वत: बन्द भऽ जाएत छन्हि। चारिम दिन विशेष पूजा अर्चना कैल जाएत छन्हि।
अम्बुवासी पर्वक समय लगभग पूरा आसाममे हर प्रकारक देव-पितर पूजा-पाठ करब निषेधित होएत अछि। सब मंदिरक कपाट बंद कय देल जाएत अछि, प्रत्येक घरमे पूजा केनाय तीन दिन लेल बंद भऽ जाएत अछि।
रजस्वला पर्वक एतेक महत्व आसामेटामे देखल जाएत अछि। एहि अवसर पर लाखहुँ-लाख लोक एहि पर्वत पर सिमटि जाएत अछि, सबठाम भक्तिभाव केर प्राबल्य दृश्य होएत अछि। देशक अन्य-अन्य भागसँ सेहो लोगबाग दर्शन और व्यापार हेतु एतय अबैत छथि। प्रशासन सेहो पूरा दल-बलकेर संग हरसंभव कोशिशमें रहैत अछि जे तीर्थयात्री एवं भक्तगण आर यात्रीगणकेँ कुनो तरहक असुविधा नहि होइन्ह। एहि मेलाक खास सौन्दर्य सबहक मन मोहि लैत अछि।